नई दिल्ली। कोरोना महामारी (corona pandemic) और फिर रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) से बढ़ी महंगाई का असर केवल भारत पर ही नहीं है बल्कि दुनिया का एकमात्र महाशक्ति कहा जाने वाला अमेरिका भी इस समस्या से जूझ रहा है. वहां पर इन दिनों महंगाई का स्तर पिछले 40 सालों के रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया है. हालात को बिगड़ने से बचाने के लिए बाइडेन प्रशासन(Administration) ने ब्याज दरें बढ़ाने का कदम उठाया है. बड़े कारोबारियों और आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से महंगाई को कंट्रोल करने में मदद तो मिलेगी लेकिन लोगों तक पैसे की पहुंच कम होने के कारण अमेरिका और दुनिया में वैश्विक मंदी (Global Economic Slowdown) फैलने का खतरा भी रहेगा.
कोरोना और रूस-यूक्रेन युद्ध से मंदी का खतरा
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज में से एक नैसडैक की सीईओ एडेना फ्रीडमैन का कहना है कि अभी तो मंदी शुरू नहीं हुई है लेकिन जिस तरह इसकी चर्चा चलने लगी है, उससे लोगों के मन में संदेह गहरा सकता है. जिससे कारोबारी गतिविधियों को धक्का लगेगा और यह मंदी (Global Economic Slowdown) शुरू होने का बड़ा कारण बन सकता है.
माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स भी मंदी की आहट से चिंतित हैं. वे कहते हैं कि कोरोना की वजह से दुनियाभर की इकॉनॉमी पिछले 2 साल से पहले ही स्लो चल रही थी. अब रूस-यूक्रेन युद्ध ने रही-सही कसर पूरी कर दी है. इस युद्ध के चलते दुनिया में कई जरूरी चीजों की कमी हो गई है, जिसकी वजह से महंगाई का लेवल बढ़ा है. इस महंगाई को कंट्रोल करने के लिए दुनिया के कई देशों ने अपनी ब्याज दरें बढ़ा दी हैं. इसके चलते दुनिया में वैश्विक मंदी(Global Economic Slowdown) का खतरा बढ़ रहा है.
गोल्डमैन सैक्स के सीनियर चेयरमैन लॉयड ब्लैंकफीन ने एक इंटरव्यू में बताया कि आर्थिक मंदी (Global Economic Slowdown) पर बात की. उन्होंने बताया कि जोखिम तो है लेकिन फेडरल रिजर्व बैंक चाहे तो इसे कंट्रोल कर सकता है. इसके लिए उसे ब्याज दरों पर की गई बढ़ोतरी वापस लेनी होगी. साथ ही कारोबारी गतिविधियों पर लोन की सुविधा को आसान बनाना होगा.
2008 में आई ऐसी मंदी से चली गई थी लोगों की नौकरियां
जापान के इन्वेस्टमेंट बैंक नमूरा ने भी अमेरिका मे आर्थिक मंदी (Global Economic Slowdown) शुरू होने की आशंका जताई है. बैंक का कहना है कि इस साल के अंत तक अमेरिका में मंदी शुरू हो सकती है, जिसका असर केवल अमेरिका पर ही नहीं बल्कि भारत-चीन समेत दुनिया के तमाम देशों पर पड़ सकता है. वर्ष 2008 में भी ऐसी ही आर्थिक मंदी आई थी, जिसके चलते दुनिया में मांग काफी कम हो गई थी. इसके चलते लोगों को बड़े पैमाने पर नौकरियों से हाथ धोना पड़ा था और आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हो गई थी.
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