– रंजना मिश्रा
डब्ल्यू एच ओ के मुताबिक भारत में 20 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन सहित अन्य मानसिक बीमारियों के शिकार हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में काम करने वाले लगभग 42 प्रतिशत कर्मचारी डिप्रेशन और एंग्जाइटी से पीड़ित हैं। डिप्रेशन और अकेलापन भारत सहित पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है और इसे केवल समाज की जिम्मेदारी मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अकेलेपन में घिरा हुआ व्यक्ति स्वयं अपने विनाश का कारण बन जाता है, वह जीवन के बारे में न सोचकर, मृत्यु के बारे में सोचने लगता है। डॉक्टर से अपने मर्ज की दवा पूछने की बजाए, मृत्यु की तारीख पूछने लगता है। इस बीमारी का पता न तो किसी ब्लड टेस्ट से चलता है, न सीटी स्कैन से और न ही एक्स-रे से। इस बीमारी की गंभीरता और इससे होने वाली पीड़ा को वही समझ सकता है, जो खुद इसका शिकार हो। यह अकेलापन व्यक्ति को डिप्रेशन की ओर धकेल देता है और फिर उसे आत्महत्या करने की ओर प्रेरित करता है। अकेलेपन का शिकार व्यक्ति जीवन भर परेशान रहता है और उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया भर के युवाओं की मौत की तीसरी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है और इसका सबसे बड़ा कारण अकेलापन ही है। यूं तो अकेलापन कहने को केवल एक शब्द है, लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते, किंतु इधर हाल की स्थितियों को देखते हुए दुनिया भर के देशों और सरकारों ने अब इसे गंभीरतापूर्वक लेना शुरू कर दिया है।
अकेलेपन का शिकार केवल वही व्यक्ति नहीं होते जो समाज में अकेले रह रहे हों, बल्कि इसका शिकार कई बार ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो भरे-पूरे परिवार, सगे-संबंधियों और मित्रों से घिरे हुए हों और इसके बावजूद स्वयं को अकेला अनुभव करते हों। अकेलेपन से ग्रसित व्यक्ति अपने जीवन का उद्देश्य भी भूल जाता है। न तो उसका कोई लक्ष्य होता है और न ही कुछ पाने की कामना। वह समाज और परिवार से कटता चला जाता है, हर रिश्ते और हर भावना से उसका मन उचट जाता है, किंतु ऐसे रोगियों के लक्षणों की पहचान करने की कोई तकनीक अभीतक विकसित नहीं हुई है। ऐसे व्यक्ति ठीक भी नहीं होना चाहते क्योंकि वे जीवन से पूरी तरह ऊब चुके होते हैं।
रिपोर्टों से पता चला है कि कुंवारों की अपेक्षा शादीशुदा लोगों में अकेलेपन की समस्या 60 प्रतिशत ज्यादा होती है। हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू की रिसर्च के मुताबिक अकेलेपन की वजह से एक व्यक्ति की उम्र तेजी से घटती है और यह उतना ही खतरनाक है जितना कि एक दिन में 15 सिगरेट पीना। बड़ी-बड़ी समस्याओं और संकटों से घिरे हुए व्यक्ति अक्सर अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं, बड़ी-बड़ी महामारियों और युद्ध के समय भी लोगों के जीवन में अकेलेपन की असुरक्षा बढ़ जाती है। कोरोना काल और विशेषकर लॉकडाउन के समय सभी ने इस अकेलेपन को महसूस किया है। इस अवधि में लोगों के व्यवहार में अनेकों बदलाव आए, उनमें गुस्सा, निराशा और घुटन बढ़ गई। ये भावनाएं ही व्यक्ति को अकेलेपन के अंधेरे में धकेल देती हैं।
अकेलेपन और एकांत में बहुत फर्क है, अकेलापन मन की वह अवस्था है, जिसे हम मानसिक बीमारी का नाम दे सकते हैं। जबकि एकांत व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास की अवस्था है। हमारे ऋषि-मुनि एकांत में ही साधना करके अपना आध्यात्मिक विकास करते थे। बड़े-बड़े साहित्यकार, कलाकार, लेखक, पत्रकार और वैज्ञानिक अपने सृजनात्मक कार्यों के लिए एकांत की तलाश में रहते हैं। अर्थात एकांत सृजन की जरूरत है किंतु अकेलापन विनाश का कारण बनता है। एक योगी एकांत में ही योग की चरम अवस्था तक पहुंच सकता है इसलिए हमें अपनी आत्मा का विकास कर अकेलेपन से एकांत तक की यात्रा स्वयं ही करनी होगी और विनाश का मार्ग छोड़कर सृजन के रास्ते पर चलना होगा।
हाल ही में जापान ने अकेलेपन को दूर करने के लिए “मिनिस्ट्री ऑफ लोनलीनेस” नामक एक मंत्रालय का गठन किया है। वैसे तो जापानी लोग अपने काम को लेकर कर्मठ व ईमानदार माने जाते हैं लेकिन अकेलापन उन्हें अंदर ही अंदर खोखला करता जा रहा है। जापान की जनसंख्या साढ़े बारह करोड़ है इसमें करीब 63 लाख बुजुर्ग हैं और 6 करोड़ से ज्यादा युवा हैं यानी कुल जनसंख्या का 5% बुजुर्ग हैं और 50% युवा हैं। ये बुजुर्ग ही जापान के लिए चिंता का विषय हैं क्योंकि इनके पास इनके अकेलेपन को दूर करने के लिए कोई साथी नहीं रहता। लोग अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए रोबोट डॉग और रोबोट फ्रेंड्स का सहारा लेते हैं किंतु उनका कोई जीवित साथी नहीं होता। ऐसे में वर्ष 2020 में आत्महत्या के आंकड़ों को देखकर वहां की सरकार परेशान है। सन 2020 में आत्महत्या के आंकड़े 2019 की अपेक्षा करीब 4 प्रतिशत बढ़ गए, यानी वहां हर एक लाख नागरिकों में से 16 नागरिक आत्महत्या कर रहे थे। जांच में पाया गया कि इसकी सबसे बड़ी वजह अकेलापन है, तब वहां की सरकार ने इस मंत्रालय का गठन किया। यह मंत्रालय जापान में अकेलेपन की समस्या को दूर करने के लिए काम करेगा। देश के स्कूल, क्लब, कॉलेज और मंत्रालयों के साथ मिलकर अकेलेपन के लक्षणों की पहचान करेगा और उसे दूर करने की योजना बनाई जाएगी।
वर्ष 2018 में इंग्लैंड में ब्रिटेन ने भी इस प्रकार का एक मंत्रालय बनाया था। किंतु दो साल बाद पता चला कि इस मंत्रालय से ब्रिटेन के लोगों को कोई फायदा नहीं पहुंचा है। क्या अब समय आ गया है कि भारत में भी अकेलेपन के लिए एक मंत्रालय बनाया जाए। जैसे जापान में बनाया गया है, क्योंकि आत्महत्या जैसी गंभीर समस्या अब महामारी का रूप लेती जा रही है, जो देश के साथ-साथ पूरी दुनिया में फैल रही है।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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