रामेश्वर धाकड़
भोपाल। मप्र में विधानसभा चुनाव के चलते भाजपा संगठन में 15 साल पुरानी सह संगठन मंत्री की व्यवस्था को फिर से बहाल किया जा सकता है। संभवत: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस)की होली बैठक से पहले मप्र को लेकर यह निर्णय हो सकता है। संगठन की इस व्यवस्था के लागू होने के बाद प्रदेश संगठन महामंत्री के अलावा 2 या 3 सह संगठन मंत्री बनाए जा सकते हैं। जिन्हें संघ के प्रांत वार दायित्व सौंपा जा सकता है। चूंकि सह संगठन मंत्री का निर्णय संघ को लेना है। इसलिए मप्र भाजपा की इसमें कोई भूमिका नहीं है।
यहां तक जिन प्रचारकों को सह संगठन मंत्री का दायित्व दिया जाएगा, उसका निर्णय भी संघ करेगा। यह भी संभावना है कि 3 सह संगठन मंत्री आ सकते हैं। जिन्हें संघ के प्रांत मध्य भारत, महाकौशल और मालवा दायित्व सौंपा जा सकता है। यदि दो मिलते हैं तो उनके बीच संभागों का बंटवारा होगा। संघ की परंपरा के अनुसार प्रचारकों की सेवाएं अनुषांगिक संगठन भाजपा में दी जाती हैं। कार्यकाल पूरा होने के बाद उनकी सेवाएं वापस ली जाती हैं। मप्र भाजपा के 5 साल से अधिक समय तक संगठन मंत्री रहे सुहास भगत की सेवाएं संघ में वापस ली गई थीं। सुहास भगत के समय अतुल राय को सह संगठन मंत्री का दायित्व मिला था। हालांकि बाद में संघ को राय की सेवाएं भाजपा से वापस लेनी पड़ी थीं। उल्लेखनीय है कि भाजपा में 15 साल पहले माखन सिंह जब संगठन महामंत्री थे, तब अरविंद मेनन और स्व भगवत शरण माथुर को सह संगठन मंत्री का दायित्व सौंपा गया था। दोनों के बीच मप्र के अलग-अलग हिस्सों को बांटा गया था। यह व्यवस्था 2011 तक चली। इसके बाद अरविंद मेनन को मप्र भाजपा के संगठन महामंत्री का दायित्व मिल गया था।
संभागीय संगठन मंत्रियों की व्यवस्था खत्म
भाजपा में लंबे समय से संभागीय संगठन मंत्रियों की व्यवस्था चल रही थी। जिसे पिछले साल खत्म कर दिया है। इसके पीछे की वजह यह बताई जा रही थी संभागीय मंत्री सत्ता और संगठन के पॉवर सेंटर बन गए थे। जिलाध्यक्ष से लेकर मंत्री, विधायक और नेता इनके इर्दगिर्द हो गए थे। तबादलों से लेकर हर तरह की नियुक्तियों में इनकी भूमिका अहम हो गई थी। इसकी जगह फिर से सह संगठन मंत्री व्यवस्था लागू करने पर मंथन जारी है।
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