भोपाल। वाटर शेड मिशन (water shed mission) के तहत मप्र में चल रही परियोजनाओं में कार्यरत 300 से अधिक अधिकारियों-कर्मचारियों (Officers-Employees) पर बेरोजगारी की तलवार लटक रही है। इसकी वजह यह है कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना,
(Prime Minister’s Agriculture Irrigation Scheme) वाटर शेड विकास (Water Shed Development) के अंतर्गत प्रचलित प्ररियोजनाओं की कार्य अवधि तीस सिंतबर 2021 को समाप्त हो रही है। इस योजना के तहत संचालित होने वाली परियोजनाओं के बंद करने संबंधी आदेश राज्य सरकार ने जून में जारी कर दिया था। इस संबंध में सभी कलेक्टरों को निर्देश दिए गए थे। प्रदेश के वाटर शेड मिशन (water shed mission में काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों का भविष्य अब केंद्र सरकार (Central Government) के फैसले पर टिका है।
केंद्र सरकार ने मंजूरी नहीं दी, तो वाटर शेड मिशन का पूरा अमला बेरोजगार हो जाएगा। गौरतलब है कि राज्य सरकार द्वारा जून में जारी आदेश में कहा गया था कि सभी परियोजनाएं केंद्र सरकार द्वारा संचालित हो रही हैं। केंद्र सरकार ने उक्त योजनाओं को 30 सितंबर को बंद करने का फैसला कर लिया है। संचालित होने वाली सभी परियोजनाओं को तीस सितंबर तक पूरा करने का निर्देश भी दिया गया था। परियोजनाएं लगभग पूरी हो गई हैं। बड़ा सवाल यह उठता है कि अब वाटर शेड योजना में काम करने वाले अमले का क्या होगा?
प्रोजेक्ट की अवधि बढ़ाने का आग्रह
उधर, राज्य सरकार ने इस संबंध में केंद्र सरकार को पत्र लिखा है। पत्र में दो महीने के लिए प्रोजेक्ट की अवधि बढ़ाने का आग्रह किया है। यानी कर्मचारी तीस सितंबर की बजाय 30 नवंबर तक काम करेंगे। राजीव गांधी जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन मिशन की संचालक निधि निवेदिता कहती हैं कि प्रोजेक्ट तीस सितंबर को बंद होना है। इसे दो महीने बढ़ाने पर राज्य सरकार ने विचार किया है। इसको लेकर केंद्र सरकार को पत्र लिखा गया है। उसके बाद उनका भविष्य क्या होगा, इसको लेकर कोई योजना तैयार नहीं है। अगर केंद्र ने मंजूरी नहीं दी, तो कार्यरत कर्मचारी 30 सितंबर को बेरोजगार हो जाएंगे। अगर केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट की अवधि दो महीने के लिए बढ़ा भी देती है, तो उनका कैरियर दांव पर ही लगा रहेगा।
वाटरशेड मिशन के कर्मचारियों के साथ भेदभाव
मध्यप्रदेश सरकार का नियम कहता है कि जो विभाग या प्रोजक्ट बंद होंगे, उनमें कार्यरत अधिकारियों और कर्मचारियों को दूसरे विभागों में मर्ज किया जाएगा, किसी को बाहर नहीं किया जाएगा। बहरहाल वाटरशेड मिशन के कर्मचारियों के साथ ऐसा नहीं है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि संविदा से नियमितीकरण की राज्य सरकार की योजना कितनी सफल है। मध्यप्रदेश में वाटर शेड मिशन में तकरीबन साढ़े छह सौ से अधिक इंजीनियर और कर्मचारी काम करते थे। तकरीबन तीन साल पहले 350 से अधिक कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। इनमें करीब 150 इंजीनियर शामिल हैं। वर्तमान में 315 कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इनमें करीब 65 इंजीनियर भी हैं। सभी कर्मचारी 30 सितंबर के बाद बेरोजगार हो जाएंगे। राज्य सरकार तीन सौ से अधिक कर्मचारियों के भविष्य को लेकर पूरी तरह से केंद्र सरकार पर निर्भर हो गई है।
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