उज्जैन। पिछले कई वर्षों से पौराणिक महत्व वाले सप्त सागरों पर अतिक्रमण था और उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा था। साधुओं द्वारा कल दूसरे दिन भी चेरिटेबल अस्पताल के सामने धरना जारी रखा गया। रामादल अखाड़ा परिषद के सदस्य महंत हरिहरदास, महंत रूपकिशोरदास, महंत बलरामदास ने बताया कि संतों का यह धरना तब तक जारी रहेगा जब तक कि सप्तसागर विकास कार्ययोजना पर प्रशासनिक स्तर पर अमल आरंभ नहीं कर दिया जाता है। गोवर्धन सागर तट पर धरने के दूसरे दिन भी संतो ने रामधुन गाई और कीर्तन किया। धरने को रामादल अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत डा. रामेश्वरदास, समाजसेवी जयप्रकाश शर्मा, सुनील जैन, पं. राजेश त्रिवेदी आदि ने संबोधित किया। महंत जयरामदास ने हा प्रति 3 वर्ष में पडऩे वाले पुरुषोत्तम मास (अधिक मास) में हजारों की संख्या में श्रद्धालुजन सप्तसागर की धर्मयात्रा कर दान-पूजन आदी करते है, इनमें बड़ी संख्या महिलाओं की होती है।
सबसे अहम बात यह है कि इन प्राचीन सप्तसागरों के जल के प्रचूर भंडारण की वजह से पुण्य सलिला मां शिप्रा भी सदा प्रवाहमान रहा करती थी। समय के साथ अदूरदर्शिता और देख-रेख के अभाव में सप्तसागरों की दशा बदहाली की ओर अग्रसर है। समय रहते यदि मध्यप्रदेश शासन इन्हें संरक्षित व संवर्धित करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाएगा तो धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सप्तसागर तीर्थ समाप्त होते चले जाएंगे। संतों की प्रमुख मांग है कि प्राचीन सप्तसागरों की भूमियों का सीमांकन कर इन्हें शासन के आधिपत्य में लिया जाए। सप्तसागरों की भूमी को अतिक्रमण से मुक्त कराएं व भविष्य में इन पर अतिक्रमण नहीं होने पाए। यहाँ व्याप्त गंदगी को साफ कर, इनका गहरीकरण कराया जाए। प्रत्येक सागर पर स्नान, पूजन-अर्चन, दान-पुण्य आदि धार्मिक क्रियाकलापों के लिए घाट निर्माण, पुजारियों व श्रद्धालुओं के लिए शेड का निर्माण आदि कार्य कराए जाएं।
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