खरगोन (Rabbit!)। जंगल के बीच कटीली झाड़ियां, कांटों भरा रास्ता और चारों ओर सन्नाटा. जैसे-जैसे कदम आगे बढ़ते हैं, लगता है कोई साथ चल रहा है या फिर पीछा कर रहा है. करीब 1 KM पैदल चलने के बाद आखिर में खंडहर में तब्दील (turned into ruins) हो चुकी एक पुरानी स्मारक नजर आती है. इसी जगह पर 150 से ज्यादा लोगों को एक साथ फांसी पर लटकाया गया था और बाद में उनके शवों को मगरमच्छों को खिला दिया गया था.
यह दृश्य और कहानी किसी हॉरर फिल्म की स्टोरी से कम नहीं है. आज भी यहां रात के अंधेरे में लोग जाने से कतराते हैं. दरअसल, जिस जगह के बारे में हम बात कर रहे हैं, वह मध्य प्रदेश के खरगोन जिला मुख्यालय से 50 KM दूर मंडलेश्वर के एक जंगल में मौजूद है. क्षेत्र में यह स्थान फांसी बैडी के नाम से जाना जाता है. सालों पहले यहां अंग्रेजों ने मौत का तांडव किया था. लोग कहते हैं कि जैसे आज भी यहां कुछ है.
निमाड़ रेंज का मुख्यालय था मंडलेश्वर
इतिहासकार दुर्गेश राजदीप ने बताते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत में मंडलेश्वर निमाड़ रेंज का मुख्यालय था. ब्रिटिश रेजिडेंट यहां निवास करते थे. घुड़सवार और पैदल दोनों सेनाएं यहां मौजूद थी. 1857-58 में अंग्रेजों ने मंडलेश्वर किले पर आक्रमण कर कब्जा किया. निमाड़ के क्रांतिकारी भीमा नायक के 150 से भी ज्यादा साथियों को हिरासत में ले लिया गया और उन्हें इसी जगह लाकर फांसी पर चढ़ा दिया.
पेड़ों पर लटका कर दी फांसी
आगे बताया कि पहले यहां बहुतायत में नीम के विशाल पेड़ थे. सभी क्रांतिकारियों को इन्हीं नीम के पेड़ों पर सामूहिक फांसी दी गई. मौत के बाद शवों को घसीटते हुए नर्मदा नदी के किनारे मगरडाब में फेंक दिया गया, जहां मगरमच्छों ने शवों को खाकर अपनी भूख मिटाई. उस समय यहां बड़ी संख्या में मगरमच्छ देखे जाते थे.
जीर्णोद्धार की मांग
दुर्गेश राजदीप ने कहा कि शासन-प्रशासन की अनदेखी से यह स्थान दुर्दशा का शिकार हो गया है. क्षेत्र के जीर्णोद्धार सहित पर्यटन की दृष्टि से इस क्षेत्र को विकसित करने शिवराज सरकार को प्रस्ताव भेजकर मांग कर चुके हैं. अभी वर्तमान क्षेत्रीय विधायक राजकुमार मेव से भी फांसी बैडी के विकास की मांग की है.
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