– कमलेश पांडेय
युद्ध पाशविक प्रवृत्ति है। मनुष्य ने पशुओं के संसर्ग में आकर यह प्रवृत्ति सीखी है। हालांकि पशु तो महज भोजन के लिए एक-दूसरे पर आक्रमण करते हैं, लेकिन मनुष्य तो सिर्फ अपने अहंकार की संतुष्टि के लिए और कभी कभार गुटबंदी के लिए ऐसा करता है। इसलिए किसी भी संभावित युद्ध से बचने का बस एक ही उपाय यह है कि खुद को इतना मजबूत और शक्तिशाली बना लिया जाए कि हमलावर आक्रमण करने से पहले सौ बार सोचे। केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार पिछले नौ वर्षों से यही कर रही है, जिससे दुनिया का शक्ति-संतुलन गड़बड़ाने लगा है।
यह सरकार अपने राष्ट्रीय हितों और वैश्विक जरूरतों के बारे में इतनी सजग है कि वसुधैव कुटुम्बकम के शाश्वत व अकाट्य भारतीय सिद्धान्तों, जिससे गुटनिरपेक्षता भी ओत-प्रोत है, के आगे अमेरिकन लॉबी और रशियन लॉबी की एक नहीं चलने दे रही है। यहां पर अमेरिकन लॉबी का मतलब अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी जैसे नाटो देशों से है। जबकि रशियन लॉबी का मतलब रूस, चीन, उत्तर कोरिया, ईरान, तुर्की जैसे सीटो देशों से है। भारत तीसरी दुनिया के देशों को साधकर दुनिया के बहके हुए विकसित देशों के निरंकुश व्यक्तिगत और सामूहिक स्वार्थों को संतुलित करने की जद्दोजहद में जुटा हुआ है और अपने लक्ष्यों को धीरे- धीरे ही सही, लेकिन दृढ़तापूर्वक प्राप्त कर रहा है। इन मसलों पर फ्रांस, इजरायल और जापान जैसे देश भारत की खुलकर मदद भी करते हैं।
इन वार लव ट्रायंगल जैसे त्रिकोणीय युद्ध हालातों के बीच भले ही तीसरा विश्व युद्ध टलता जा रहा हो, लेकिन अमेरिकी गुट और रूसी गुट की वैश्विक बादशाहत को बनाये रखने के लिए जो छोटे-छोटे युद्ध हो रहे हैं, वो इस बात की चुगली कर रहे हैं कि प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध को झेल चुकी यह दुनिया आखिरकार कबतक तीसरा विश्व युद्ध टाल पाएगी। क्या प्रथम विश्व युद्ध के गोला बारूद, द्वितीय विश्व युद्ध के परमाणु बम की तरह तीसरे विश्व युद्ध में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी कोई नया गुल खिलाएगी और इस बार जल, थल, नभ के अलावा अन्तरिक्ष में भी युद्ध होगा।
यदि अंतरिक्ष युद्ध की नौबत आई तो अमेरिका-ब्रिटेन गुट और रूस-चीन गुट की तरह क्या भारत को भी जापान और फ्रांस के साथ मिलकर कोई अंतरिक्ष गुट तैयार कर लेना चाहिए। यह सब बातें मैं इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि हाल ही में अमेरिकी सेना के एक अधिकारी ने कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो हम अंतरिक्ष में भी युद्ध करने के लिए तैयार हैं। आपकी याददाश्त ताजा करा दें कि रूसी और चीनी अधिकारी भी पूर्व में ऐसी धमकियां दे चुके हैं। यदि ऐसा हुआ तो जल, थल, नभ युद्ध से ज्यादा बर्बादी अंतरिक्ष युद्ध से होगी, क्योंकि सूचना तकनीक और सूचना क्रांति के सहारे तेजी से आगे बढ़ती हुई यह दुनिया सेटेलाइट गिरते ही अचानक ठहर जाएगी और सबकुछ अस्त-व्यस्त हो जाएगा। इससे जनजीवन इतना प्रभावित होगा कि बिना मारे ही अन्य कारणों से लोग बर्बाद हो जाएंगे। भूख-प्यास-तनाव से मर जायेंगे।
यदि उपर्युक्त अमेरिकी अधिकारी की बातों पर गौर करें तो उसने साफ बताया कि रूस के लगातार आक्रामक रवैये और चीन की अंतरिक्ष में ताकत बनने की महत्वाकांक्षा से अमेरिका सशंकित है और अपनी वैश्विक बादशाहत पर मंडराता खतरा देख वह किसी भी हद से गुजर सकता है। इतिहास साक्षी है कि जब-जब राजाओं को अपनी गद्दी छिनने का खतरा होता था तो वो युद्ध का बिगुल फूंक देते थे। लोकतांत्रिक वाकयुद्ध और चुनावी साल में छिड़े सीमाई युद्ध की वजह भी प्रायः यही बताए जाते हैं।
अमेरिका के अंतरिक्ष नियंत्रण में नीति, योजना और रणनीति विभाग में उपनिदेशक ब्रिगेडियर जनरल जेसी मोरहाउस मई 2023 के तीसरे सप्ताह में दो देशों की अंतरिक्ष संचालन शिखर सम्मेलन 2023 में शिरकत करने लंदन पहुंचे थे। जहां ब्रिटेन और अमेरिका की अंतरिक्ष में संयुक्त क्षमताओं पर खुलकर चर्चा की गई थी। इसके बाद अमेरिकी दूतावास में मोरहाउस ने जो कुछ कहा, वह रूस-चीन के लिए स्पष्ट संकेत है कि अगर रूस-यूक्रेन युद्ध नहीं थमा और फिर चीन-ताईवान युद्ध भड़का तो फिर अमेरिका वह कर सकता है, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।
उन्होंने दो टूक कहा कि यदि हमें जरूरत पड़ी तो हम आज रात में भी अंतरिक्ष में युद्ध लड़ने के लिए तैयार हैं। अगर कोई भी देश अमेरिका को धमकाता है या हमसे सम्बन्ध रखने वाले अथवा हमारे साथ रक्षा सम्बन्धों पर समझौते कर चुके देशों को किसी तरह से परेशान करने की कोशिश करता है या उनके किसी हित में बाधा पहुंचाता है तो हम आज रात ही लड़ने को तैयार हैं। यदि आपको अंतरिक्ष युद्ध की बरीकीपूर्वक समझ है तो यह अमेरिका का ऐसा मास्टर स्ट्रोक साबित होगा, जिससे रूस के दो मजबूत और करीबी देश चीन-भारत की अर्थव्यवस्था व जनजीवन तबाह हो जाएगा। फिर रूस के सामने हथियार डालने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचेगा।
इसलिए भारत को चाहिए कि वह अंतरिक्ष युद्ध के संभावित दुष्प्रभावों को रोकने के लिए एक मजबूत रणनीति बनाए। साथ ही, अमेरिका-रूस के बीच ऐसी नौबत न आने दे कि अमेरिका को एक बार फिर से अपना रौद्र रूप दिखाना पड़े, जैसा कि वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 6 अगस्त 1945 को जापान के दो महत्वपूर्ण शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर दो परमाणु बम गिराकर दे चुका है। वियतनाम, लीबिया, इराक पर अमेरिकी भूमिका जगजाहिर है। अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच चले हिंसक दांवपेच में भी वह बदनाम रहा है।
ऐसे दुर्दांत देश को यूक्रेन में उसकी हद बताने के लिए रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन द्वारा किया जा रहा यौद्धिक प्रयत्न सराहनीय है। उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मिल रहा चीन-भारत का साथ भी दुनियावी संतुलन बनाए रखने के लिए उचित है। लेकिन अमेरिकी और नाटो की ताजा बौखलाहट किसी तीसरे विश्व युद्ध (अंतरिक्ष युद्ध) का बीजारोपण न कर दे, इसके लिए कूटनीतिक और सामरिक दोनों प्रयास करने होंगे और अचानक सेटेलाइट ठप हो जाने के बाद भी भारतीय जनजीवन अप्रभावित रहे, इसके लिए ठोस उपाय करने में ही बुद्धिमानी है। कहा भी गया है कि अग्र सोची, सदा सुखी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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