भोपाल। सोया प्रदेश मप्र में सोयाबीन की उपज दिन पर दिन कम होती जा रही है। प्रदेश में मालवा के पठार की उपजाऊ मिट्टी सोयाबीन की खेती के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु परिवर्तन के चलते उज्जैन समेत मालवा की माटी सोयाबीन के लिए मुफीद नहीं रहेगी। यह चौंकाने वाला खुलासा कृषि वैज्ञानिक कर रहे हैं। मालवा में खरीफ की सबसे बड़ी फसल सोयाबीन है। लेकिन लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन से बदलते मौसमी मिजाज के चलते अब मालवा की माटी सोयाबीन के लिए मुफीद नहीं है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को अब केवल एक फसल वाली खेती करने के बजाय इसके साथ मक्का, ज्वार, धान आदि की खेती को शामिल करना चाहिए। इससे नुकसान की भरपाई होती रहेगी।
गौरतलब है कि औद्योगिक क्षेत्र से उत्सर्जित नुकसान दायक कार्बन, मिथेन और नाइट्रेस ऑक्साइड के साथ ईंधन व धूल मिट्टी से हो रहे वायु प्रदूषण के कारण बारिश का मौसम भी बदलता जा रहा है। किसी वर्ष तय समय में मानसूनी बारिश शुरू हो जाती है तो किसी वर्ष बहुत देर हो जाती है। इसके साथ ही बारिश के दिनों में भी अंतर देखा जा रहा है, जो ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है। इससे फसल में नुकसान की संभावनाएं बढ़ती जा रही है। कृषि वैज्ञानिक के अनुसार 1 जून से शुरू होने वाले मानसून में अमूमन 10 जून तक बारिश शुरू हो जाना चाहिए, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बारिश के आगमन की तारीखें बता रही है कि आने वाला समय सोयाबीन के लिए मुफीद नहीं है। खासकर मालवा की माटी, जो खरीफ के सीजन में केवल सोयाबीन खेती का बड़ा केंद्र है, अब बदलते मौसम से प्रभावित हो रही है। वैज्ञानिक के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र के साथ सड़कों पर दौड़ रहे वाहनों से उत्सर्जित विभिन्न प्रकार की गैसों के कारण ही जलवायु में परिवर्तन आ रहा है। इन्ही गैंसों का उत्सर्जन के चलते ग्लोबल वार्मिंग हो रही है।
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