भोपाल। देश का सबसे ताकतवर संगठन राष्ट्रीय स्वयं संघ (आरएसएस)इनों दिनों समाज के बीच राष्ट्र निर्माण के बीज बोने का काम कर रहा है। इसके लिए संघ के पदाधिकारी देश-प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में व्याख्यानमालाएं आयोजित कर रहे हैं। संघ की बढ़ती पैठ के बीच मप्र कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पीयूष बबेले की किताब ‘कांग्रेस और राष्ट्र निर्माण की गाथाÓ ने सियासी बवाल पैदा कर दिया है। बबेले ने किताब में दावा किया है कि आरएसएस की 1925 से लेकर 1947 में आजादी मिलने तक आजादी की लड़ाई में कोई भागीदारी नहीं रही। न ही अभी तक ऐसे कोई साक्ष्य आया है। किताब में दावा है कि आरएसएस स्थापक डॉ हेडगेवर की गिरफ्तारी का जो साक्ष्य देती है, वह 1920 के असहयोग आंदोलन का है। जिसमें हेडगेवर एक कांग्रेस कार्यकर्ता की हैसियत से जेल गए थे। तब आरएसएस का अस्तित्व ही नहीं था। किताब में दावा है कि आरएसएस ने खुद को 1942 के भारत छोड़ों आंदेालन से अलग रखा था। बबेले की किताब पर भी आरएसएस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, न ही किसी अनुषांगिक संगठन के किसी पदाधिकारी ने इस पर कोई बयान दिया है। बबेले की किताब पर विरोध के सुर धीरे-धीरे उठना शुरू हो रहे हैं।
फिर उठाया सावरकर की माफी का मामला
बबेले की किताब ‘कांग्रेस और राष्ट्र निर्माण की गाथाÓ में यह भी दावा है कि विनायक दामोदर सावरकर दक्षिणपंथ के दूसरे बड़े नेता था। शुरूआती जीवन में उन्होंने देशभक्त के नाते अंगे्रजों से लड़ाई लड़ी। कालापानी की सजा होने के बाद उन्होंने अपनी रिहाई के लिए अंग्रेजों से बार-बार माफी मांगी। काला पानी से निकलकर उन्होंने हिंदुत्व नाम की किताब लिखी। हिंदु-मुस्लिम एकता का विरोध किया। जिन्ना की तरह सावरकर भी हिंदु और मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र के पक्ष थे।
मुस्लिम लीग सरकार में डिप्टी सीएम थे मुखर्जी
किताब ‘कांग्रेस और राष्ट्र निर्माण की गाथाÓ में यह भी दावा है कि हिंदु दक्षिणपंथ के तीसरे बड़े नेता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल में मुस्लिम लीग सरकार में उप मुख्यमंत्री थे। तब उन्होंने भारत छोड़ों आंदोलन में अंग्रेज सरकार का समर्थन किया। यहां तक कि अंग्रेज सरकार को पत्र लिखकर भारत छोड़ो आंदोलन को सख्ती से कुचलने के लिए कहा था। आरएसएस ने भी आंदेालन से खुद को दूर रखा था।
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