नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में अभी दो साल का वक्त बाकी है, पर राजनीतिक दलों (Political parties) ने सियासी बिसात बिछानी (political chessboard) शुरू कर दी है। बिहार (Bihar) में एक बार फिर महागठबंधन सरकार (Mahagathbandhan government) के गठन के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) इस पूरी मुहिम के केंद्र में हैं। नीतीश कुमार तीसरे मोर्चे के बजाए कांग्रेस को शामिल कर महागठबंधन बनाने की कवायद में जुटे हैं, पर कांग्रेस अभी तक नीतीश के साथ पूरी तरह खड़ी नजर नहीं आई है। हालांकि, पार्टी विपक्षी एकता की पक्षधर है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू यादव की कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात से पहले विपक्ष के कई नेता हरियाणा के फतेहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय लोकदल की रैली में शामिल हुए। ताऊ देवीलाल की 109वीं जयंती पर आयोजित इस रैली में इनेलो कई विपक्षी नेताओं को एक मंच पर लाने में सफल रहा। पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव शामिल नहीं हुए। यह दोनों नेता तीसरे मोर्चे के गठन की वकालत कर रहे हैं।
जेडीयू महासचिव केसी त्यागी के मुताबिक, कोई तीसरा मोर्चा का गठन नहीं हो रहा है। वर्ष 2024 में भाजपा को हराना है, तो सभी विपक्षी दल चाहे वह कांग्रेस, टीएमसी या टीआरएस हो या कोई अन्य दल हो। सभी को एक होना पड़ेगा। उनके मुताबिक, नीतीश कुमार पहले ही साफ कर चुके हैं कि वह प्रधानमंत्री के दावेदार नहीं हैं। वे सिर्फ विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं। ताकि, वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त दी जा सके।
क्यों आसान नहीं है विपक्षी एकता की राह?
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि विपक्षी एकता आसान नहीं है। सबसे पहले तो यह कि क्षेत्रीय दलों का जन्म कांग्रेस के खिलाफ हुआ है। ऐसे में ममता बनर्जी और के चंद्रशेखर राव का साथ आना आसान नहीं है। यह हो गया तो नेता और कौन पार्टी कितनी सीट पर चुनाव लड़ेगी, इस पर सहमति बनना आसान नहीं है। इसलिए, कांग्रेस बहुत संभलकर चल रही है। भारत जोड़ो यात्रा के जरिए वह विपक्षी खेमे में खुद को मजबूत करने में जुटी हुई है।
राजद-कांग्रेस की कम होगी दूरी?
वहीं, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात को दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते बेहतर करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है। वर्ष 2020 के चुनावों के बाद राजद और कांग्रेस के बीच कुछ दूरियां पैदा हो गई थीं। भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस ने बिहार में महागठबंधन का साथ दिया, पर वह सरकार में हिस्सेदारी से खुश नहीं है। ऐसे में इस मुलाकात के बाद दोनों पार्टियों के बीच दूरी कम हो सकती हैं।
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