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    कोरोना के कारण बच्‍चों में बढ़ रहा इस बीमारी का खतरा, आप भी जरूर जान लें

  • June 02, 2021


    कोरोना वायरस केवल डायबिटीज (diabetes) से ग्रसित लोगों के लिए ही घातक नहीं है बल्कि ये कई लोगों को डायबिटीज की समस्या भी दे रहा है. अमेरिका(America) के वेटरन्स अफेयर्स सेंट लुइस हेल्थ केयर सिस्टम में क्लिनिकल एपिडोमोलोजी सेंटर के निर्देशक जियाद अल-एली ने बताया कि शुरुआत में यह विश्वास करना कठिन था कि कोविड के कारण ऐसा हो सकता है.

    कोरोना वायरस (corona virus) की कई लहरों ने देश को ही नहीं बल्कि विश्व को भी झंझोर कर रख दिया है. इस बीच, वैश्विक स्तर पर डायबिटीज लोगों के लिए घातक साबित हो सकती है. कहा जा रहा है कि डायबिटीज को बढ़ावा देने वाले फैक्टर्स अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं. हालांकि, कुछ डॉक्टरों को संदेह है कि SARS-CoV-2 वायरस पैंक्रियाज के साथ-साथ इंसुलिन (insulin) बनाने वाली ग्रंथि को भी नुकसान पहुंचा सकता है. कोरोना काल के चलते लॉकडाउन की वजह से लोगों की जीवनशैली में कई बदलाव आए हैं. जैसे समय पर डॉक्टर से संपर्क ना होने पर बीमारी का देर से पता लगना. ऐसे में बीमारी का खतरा ज्यादा बढ़ सकता है. वैज्ञानिकों (scientists) के अनुसार, कुछ बच्चों में कोरोना वायरस के हल्के लक्षण पाए जाने पर भी उनमें डायबिटीज की शुरुआत तेजी से हो सकती है.

    महामारी के शुरुआती दिनों में कोरोना वायरस को विशेष रूप से फेफड़ों की बीमारी माना जाता रहा है. कोरोना वायरस शरीर के कई अंगों को और शारीरिक प्रणालियों को खराब करने की अपनी क्षमता के लिए तेजी से पहचाना जाता है. ऐसे में कोरोना से पूरी तरह से ठीक होने पर भी 10 में से 1 एक मरीज में इसके लक्षण लगातार बने रहते हैं. मेटाबॉलिक (metabolic) संबंधी समस्याओं में कभी-कभी इंसुलिन की उच्च खुराक की आवश्यकता होती है. इससे व्यक्ति में डायबिटीज का खतरा विकसित हो सकता है. शोध के अनुसार, जो लोग पहले से डायबिटीज से जूझ रहे हैं, उनमें से कई लोगों में सूजन देखी गई.



    डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन या उसका ठीक से उपयोग करने में विफल रहता है. ये इंसुलिन हार्ट स्ट्रोक और गुर्दे की विफलता से लेकर पैर के अल्सर और अंधेपन के खतरे को पैदा करता है. अल-एली और उनकी टीम ने अमेरिका में वेटरन्स अफेयर्स विभाग (US Department of Veterans Affairs) के राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल डेटाबेस के साक्ष्य के आधार पर पहली बार इस प्रभाव को महसूस किया था. उन्होंने पाया कि कोविड संक्रमण से बचे लोगों की तुलना में कोविड से ठीक हुए लोगों में छह महीनों के अंदर डायबिटीज होने की संभावना लगभग 39% अधिक थी. प्रत्येक 1,000 कोविड मरीजों पर 6 लोगों में डायबिटीज होने का खतरा है.

    अल-एली के अनुसार, अमेरिका में सर्दियों के दौरान, 130,000 से ज्यादा कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. विश्व स्तर पर, 15.3 करोड़ से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं. इसमें भारत के 2 करोड़ से ज्यादा लोग शामिल हैं. चीन के बाद, भारत (India) एक ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं. अल-एली का डेटा पिछले महीने नेचर में प्रकाशित किया गया था. इसमें उन्होंने इंग्लैंड के एक अस्पताल में कोविड से संक्रमित 50,000 मरीजों पर तीन सप्ताह तक अध्ययन किया. इसमें डिस्चार्ज के लगभग 20 सप्ताह बाद उन मरीजों में डायबिटीज होने की संभावना 50% ज्यादा पाई गई.

    किंग्स कॉलेज लंदन में मेटाबॉलिक और बेरिएट्रिक सर्जरी के प्रमुख फ्रांसेस्को रुबिनो ने कहा, हमें दो महामारियों के टकराव का खतरा दिख रहा है. शोधकर्ताओं ने ऐसे फैक्टर्स खोजे हैं जिनमें कोविड डायबिटीज के खतरे को बढ़ा सकता है. इसमें यह संभावना भी शामिल है कि पैंक्रियाज की इंसुलिन-उत्सर्जक बीटा सेल्स या तो वायरस द्वारा या संक्रमण के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया से नष्ट हो जाती हैं. हांगकांग विश्वविद्यालय (University of Hong Kong) में पैथोलॉजी के क्लिनिकल ​​प्रोफेसर जॉन निकोल्स के अनुसार, कोविड मरीजों में डायबिटीज होने की कई वजहें हैं- संक्रमण के प्रति एक्यूट स्ट्रेस रिस्पॉन्स, स्टेरॉयड का अधिक प्रयोग जो ब्लड में शुगर के लेवल को बढ़ाता है, या केवल डायबिटीज के वो मामले जिनका पहले से पता नहीं लग पाया था.

    दुनिया भर के लगभग 500 डॉक्टर रुबिनो की डायबिटीज रजिस्ट्री के माध्यम से डेटा साझा करने के लिए सहमत हुए हैं. अब तक, रजिस्ट्री के माध्यम से लगभग 350 मामलों को दर्ज किया गया है. इसके अलावा, इससे संबंधित मरीजों और माता-पिता के ईमेल के माध्यम से लगभग हर दिन इसकी जानकारी मिल रही है. इस जानकारी के मुताबिक, लगभग 8 साल के बच्चे को जिसे 2 महीने पहले कोविड हुआ था, उसमें भी डायबिटीज पाई गई.

    यह कहना मुश्किल है कि SARS-CoV-2 से डायबिटीज हो सकती है. मेलबर्न के बेकर हार्ट एंड डायबिटीज इंस्टीट्यूट के उप निदेशक जोनाथन शॉ ने कहा, जनसंख्या-आधारित डेटा पर डायबिटीज का पता लगाने के लिए कोविड महामारी के प्रभाव को आंका जा सकता है. इस बीच, लॉस एंजिल्स के डॉक्टर्स की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों में टाइप -2 डायबिटीज के नए मामले देखे गए. डायबिटीज का खतरा बढ़ते वजन वाले बच्चे या कम फिजिकल एक्टीविटीज करने वाले बच्चों में ज्यादा देखा गया है.

    उन्होंने पाया कि पिछले साल टाइप -2 डायबिटीज के पांच मामलों में से एक को डायबिटिक केटोएसिडोसिस के लिए अस्पताल में भर्ती की आवश्यकता थी. केटोएसिडोसिस में इंसुलिन की आपूर्ति के कारण ब्लड में एसिड का निर्माण हो जाता है. इसके विपरीत, 2019 में केवल 3% नए मरीजों को इस जानलेवा समस्या का सामना करना पड़ा. जबकि 2020 में किसी भी बच्चे में सक्रिय कोविड -19 नहीं था.

    टाइप- 1 डायबिटीज ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया के कारण होता है जो पैंक्रियाज में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नष्ट कर देता है. कनाडा में डॉक्टरों का कहना है कि महामारी की वजह से टाइप 1 डायबिटीज वाले बच्चों की देखभाल में देरी हो सकती है.

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