नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण के समय में दुनियाभर में कई बीमारियां पहले की अपेक्षा काफी तेजी से बढ़ी हैं। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के मामले में भी पिछले डेढ़ साल में काफी इजाफा देखने को मिला है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना संक्रमण और इससे उत्पन्न स्थितियों के कारण लोगों के दिमाग पर गहरा असर पड़ा है, आने वाले वर्षों में यह समस्याएं स्वास्थ्य विभाग पर दबाव डाल सकती हैं। इस बीच हालिया अध्ययन चिंता को और बढ़ाने वाली है।
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया है कि सामान्य लोगों की तुलना में मानसिक विकार से ग्रसित व्यक्तियों में कोविड संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु का खतरा दो गुना तक अधिक हो सकता है।
यूरोपियन कॉलेज ऑफ न्यूरोसाइकोफार्माकोलॉजी के इम्यूनो-न्यूरोसाइकियाट्री नेटवर्क द्वारा किए गए इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने स्वास्थ्य संगठनों को आगाह किया है। अध्ययन के लेखकों ने अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थाओं से गंभीर मानसिक बीमारी और बौद्धिक अक्षमता के शिकार लोगों का जल्द से जल्द टीकाकरण कराने की अपील की है, जिससे कोरोना की तीसरी लहर से इन्हें सुरक्षित किया जा सके।
मानसिक रोग और कोरोना संक्रमण का खतरा
‘लैंसेट साइकियाट्री’ में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 22 देशों में किए गए 33 अध्ययनों से डेटा संकलित किया। यह अध्ययन कोविड-19 के 1,469,731 रोगियों पर किए गए थे जिनमें से 43,938 रोगी मानसिक समस्याओं के शिकार थे। अध्ययन के विश्लेषण के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि मानसिक रोग के शिकार या एंटीसाइकोटिक्स दवाओं का सेवन कर रहे लोगों में कोविड-19 से संबंधित मृत्यु दर अधिक हो सकती है। इसके अलावा मादक द्रव्यों के सेवन संबंधी विकार वाले मरीजों को भी कोविड-19 के कारण अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता अधिक हो सकती है।
मानसिक रोगियों का जल्द से जल्द कराया जाए टीकाकरण
बेल्जियम स्थित यूनिवर्सिटी साइकियाट्रिक हॉस्पिटल कैंपस डफेल के प्रोफेसर और अध्ययन के प्रमुख लेखर डॉ लिविया डी पिकर कहते हैं, दुनियाभर में मानसिक रोगों के शिकार लोगों की संख्या पिछले एक दशक में काफी बढ़ी है। कोरोना की तीसरी लहर ऐसे रोगियों के लिए काफी गंभीर हो सकती है, ऐसे में किसी विकट समस्या से बचने के लिए मानसिक रोग के शिकार लोगों का जल्द से जल्द वैक्सीनेशन कराना बहुत आवश्यक है। अगर इस दिशा में तेजी से काम नहीं किया गया तो कोरोना की तीसरी लहर में अस्पतालों पर बड़ा दबाव पड़ सकता है।
एंटीसाइकोटिक्स दवाओं का ज्यादा सेवन भी नुकसानदायक
फ्रांस स्थित पेरिस एस्ट क्रेटिल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन के लेखकों में से एक प्रोफेसर मैरियन लेबॉयर कहते हैं, मानसिक रोगियों के उपचार के लिए प्रयोग में लाई जा रही साइकोफार्माकोलॉजिकल उपचार विधियों के प्रभाव को जानने के लिए और अध्ययन की आवश्यकता है। हमने अध्ययन में पाया है कि कई तरह की मानसिक रोग की दवाइयां गंभीर रूप से स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं। एंटीसाइकोटिक्स दवाइयां हृदय और थ्रोम्बोम्बोलिक समस्याओं के खतरे को बढ़ा देती हैं, जिन्हें भी कोरोना के महत्पूर्ण कारक के रूप में देखा जा रहा है। यह दवाइयां प्रतिरक्षा प्रणाली को भी प्रभावित कर रही हैं।
क्या है अध्ययन का निष्कर्ष?
अध्ययन के निष्कर्ष में प्रोफेसर मैरियन लेबॉयर कहते हैं, हमने यह भी देखा है कि मानसिक रोगों में दी जाने वाली बेंजोडायजेपाइन ग्रुप की दवाइयां श्वसन संबंधी जोखिमों को बढ़ाने के साथ बढ़े हुए मृत्यु दर का कारण बन सकती हैं। इसके अलावा सामाजिक और जीवनशैली से संबंधी कारक जैसे आहार, शारीरिक निष्क्रियता, सोशल आइसोलेशन, शराब और तंबाकू का अधिक उपयोग और नींद में कमी भी, न सिर्फ कोरोना संक्रमण के खतरे को बढ़ा सकती हैं, साथ ही यह संक्रमण की स्थिति को गंभीर बनाने का कारक भी साबित हो सकती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों को इस बारे में भी अलर्ट रहने की आवश्यकता है।
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