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    झारखंड में लिव-इन में रह रहीं 1320 जोड़ियों के रिश्ते को फरवरी-मार्च में मिलेगी सामाजिक-कानूनी मान्यता

  • February 12, 2022


    रांची । झारखंड (Jharkhand) में लिव-इन में रह रहीं (Living in Live-in) 1320 जोड़ियों के रिश्ते (Relationship of 1320 Couples) को फरवरी-मार्च (February-March) में सामाजिक-कानूनी मान्यता मिलेगी (Will get Socio-Legal Recognition) । जनजातीय इलाकों में लिव-इन के इस रिश्ते को लोग ‘ढुकु’ के नाम से जानते हैं।


    लिव इन रिलेशनशिप के नाम पर जहां बड़े महानगरों में भी लोग एक बार भौंहें ऊंची कर लेते हैं, वहां इस सच्चाई पर आप चौंक सकते हैं कि झारखंड में हजारों जोड़ियां इसी तरह के रिश्ते के साथ साल-दर-साल से रहती चली आ रही हैं। ऐसे कई रिश्तों की उम्र तो चालीस-पचास साल हो चुकी है। झारखंड में अब ऐसे रिश्तों को कानूनी और सामाजिक मान्यता दिलाने की मुहिम चल रही है।

    जनजातीय इलाकों में लिव-इन के इस रिश्ते को लोग ‘ढुकु’ के नाम से जानते हैं। ऐसी जोड़ियां एक छत के नीचे एक साथ बरसों-बरस गुजारने के बाद भी अपने रिश्ते को शादी का नाम नहीं दे पातीं। कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं की पहल पर पिछले चार-पांच वर्षों से ऐसे रिश्तों को कानूनी और सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए ऐसी जोड़ियों के सामूहिक विवाह का अभियान शुरू हुआ है। इसी कड़ी में इस साल फरवरी-मार्च में झारखंड के खूंटी और गुमला जिले में 1320 जोड़ियों का सामूहिक विवाह कराया जाना है। इसकी शुरूआत 13 फरवरी को खूंटी के फुटबॉल स्टेडियम में आयोजित होने वाले कार्यक्रम के साथ होगी।

    स्वयंसेवी संस्था ‘निमित्त’ की पहल पर हो रहे कार्यक्रम में ढुकु रिश्ते वाली जोड़ियां सामाजिक और कानूनी तौर पर शादी के बंधन में बंधेंगी। संस्था की सचिव निकिता सिन्हा ने बताया कि खूंटी के बाद इस जिले के मुरहू और कर्रा ब्लॉक में भी जगह-जगह पर सामूहिक विवाह के कार्यक्रम तय किये गये हैं। गुमला जिले के बसिया में भी ऐसी कई जोड़ियां चिन्हित की गयी हैं, जो सालों से ढुकु रिश्ते के नाम पर एक घर में रह रही हैं, लेकिन आज तक सामाजिक और कानूनी तौर पर उनकी शादी मान्य नहीं है।

    ढुकु परंपरा के पीछे की सबसे बड़ी वजह आर्थिक मजबूरी है। दरअसल, आदिवासी समाज में यह अनिवार्य परपंरा है कि शादी के उपलक्ष्य में पूरे गांव के लिए भोज का इंतजाम करता है। भोज के लिए मीट-चावल के साथ पेय पदार्थ हड़िया का भी इंतजाम करना पड़ता है। कई लोग गरीबी की वजह से इस प्रकार की व्यवस्था नहीं कर पाते और इस वजह से वे बिना शादी किए साथ में रहने लगते हैं।

    ऐसी ज्यादातर जोड़ियों की कई संतानें भी हैं, मगर समाज की मान्य प्रथाओं के अनुसार शादी न होने की वजह से इन संतानों को जमीन-जायदाद पर अधिकार नहीं मिल पाता। ऐसे बच्चों को पिता का नाम भी नहीं मिल पाता। ढुकु शब्द का अर्थ है ढुकना या घुसना। जब कोई महिला बिना शादी किए ही किसी पुरुष के घर में घुस जाती है यानी रहने लगती हैं तो उसे ढुकनी के नाम से जाना जाता है और ऐसे जोड़ों को ढुकु कहा जाता है। ऐसी महिलाओं को आदिवासी समाज सिंदूर लगाने की भी अनुमति नहीं देता।

    अब स्वयंसेवी संस्थाएं ऐसे रिश्तों को मान्यता दिलाने में जुटी हैं। स्वयंसेवी संस्था निमित्त की सचिव निकिता सिन्हा के अनुसार, पिछले पांच सालों से चलाये जा रहे अभियान के तहत दर्जनों ऐसी जोड़ियों के विवाह को भी मान्यता मिली है, जो 40-50 साल से एक साथ रह रहे थे।

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