नई दिल्ली: आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में देशभर आजादी का अमृत महोत्सव पर्व मनाया जा रहा है, आज हम आपके लिए देश की आजादी के समय से जुड़ी ऐसी ही एक कहानी लेकर आए हैं, जो दिल्ली के पुराने रेलवे स्टेशन से जुड़ी हुई है. इसे पहले दिल्ली जंक्शन के नाम से जाना जाता था.
ये अपने पहलू में गुलामी की दासता और बंटवारे सहित कई जख्मों को समेटे हुए है. 1947 से अभी तक देश में कई बदलाव आए हैं, लंबी-चौड़ी सड़कें, नए स्टेशन, फ्लाईओवर, मेट्रो स्टेशन सहित कई चीजें बनकर तैयार हो गई हैं लेकिन पुरानी दिल्ली का ये स्टेशन आज भी कुछ वैसा ही है.
बंटवारे की कई कहानियां
देश के बंटवारे के बाद हर दिन हिन्दू- सिख शरणार्थी पाकिस्तान से भारत इसी स्टेशन पर आते थे और इन सबके साथ आती थी दर्द की एक नई कहानी. किसी ने अपने आंखों के सामने अपने परिवार को उजड़ते देखा तो कोई अपनी जान बचाते हुए यहां आ गया. उस दौर में हर दिन यहां ऐसे लोग देखने को मिल जाते थे. आजादी के 75 साल पूरे हो जाने के बाद आज भी कई ऐसे परिवार हैं, जिन्होंने बंटवारे में अपना सब कुछ खो दिया.
मिल्खा सिंह भी इसी बंटवारे के बाद भारत आए
मिल्खा सिंह के नाम को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं लेकिन एक दौर वो भी था जब वो अनाथ और असहाय अवस्था में अपनी बहन को खोजते हुए 16 साल की उम्र में दिल्ली स्टेशन पर पहुंचे थे. दंगे के दौरान उन्होंने अपनी आंखों के सामने अपने पिता का कत्ल होते देखा, उस दौरान उनके पिता ने उन्हें कहा था कि ‘भाग मिल्खा भाग’. पिता को खोने के बाद मिल्खा सिंह अपनी बहन को खोजते हुए दिल्ली स्टेशन पहुंचे थे और फिर यहीं के हो कर रह गए.
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