इंदौर। गृह निर्माण संस्थाओं (house building institutions) के पीडि़तों को इंदौर प्रशासन ने पिछले एक साल में सबसे ज्यादा राहत दिलवाई है। बावजूद इसके अभी भी कई पीडि़तों को भूखंड मिलना है, लेकिन भोपाल में बैठे आला विभागीय अधिकारी पर्दे के पीछे से भूमाफियाओं (land mafia) के मददगार साबित हो रहे हैं। माफिया अभियान को लेकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद आयुक्त सहकारिता (cooperative) एवं पंजीयक सहकारी संस्थाओं ने चर्चित संस्थाओं की वरीयता सूची, आमसभा बुलाने की मंजूरी सहित अन्य मामलों को उलझाए रखा है। यहां तक कि कविता गृह निर्माण संस्था के प्राधिकरण से मिलने वाले 33 भूखंडों के साथ जागृति की आमसभा बुलवाने की भी मंजूरी अभी तक भोपाल ने नहीं दी, जबकि इस संबंध में कई पत्र इंदौर से भेजे जा चुके हैं।
वर्षों से भोपाल (Bhopal) में बैठे विभागीय मंत्री और अफसर (departmental ministers and officers) इंदौरी भूमाफियाओं (Indori land mafia) के मददगार साबित होते रहे हैं। जब भी अभियान चलता है उसके बाद येेन-केन-प्रकारेण उसे ठप करने के प्रयास शुरू हो जाते हैं। कुछ समय पूर्व उपायुक्त के तबादले से लेकर अन्य कर्मचारियों को भी हटाया गया। हालांकि कलेक्टर मनीषसिंह ने उपायुक्त मदन गजभिये की पुन: इंदौर में पदस्थापना करवा ली, लेकिन अन्य निरीक्षकों और ऑडिटरों का भी टोटा कायम है। दूसरी तरफ संघवी के दबाव-प्रभाव के चलते कविता गृह निर्माण के असल 33 सदस्यों को प्राधिकरण से मिलने वाले भूखंड अभी तक आवंटित नहीं हो सके हैं। योजना 114 पार्ट-2 निरंजनपुर में प्राधिकरण लगभग 173 भूखंडों का आवंटन पूर्व में कर चुका है और 33 का आवंटन शेष बचा है। पीडि़तों की शिकायत पर कलेक्टर मनीषसिंह ने सहकारिता विभाग को पात्र सदस्यों की सूची तैयार कर भूखंड उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए, मगर इसकी अनुमति अभी तक भोपाल से नहीं मिल सकी है, जबकि इंदौर के संयुक्त आयुक्त सहकारिता ने 22.09.2021 को आयुक्त सहकारिता एवं पंजीयक भोपाल को इस संबंध में पत्र भी लिखा और यहां तक कि स्थानीय आला अधिकारियों ने भी फोन पर बात की।
इस पत्र में स्पष्ट कहा गया कि हाईकोर्ट (High Court) के निर्देश पर 2015 में तत्कालीन संयुक्त आयुक्त सलिल कटारे (Salil Katare) ने संस्था के सदस्यों की वरीयता सूची तैयार की थी, लेकिन वर्तमान में प्रासंगिकता न होने के चलते पुन: वरीयता सूची बनाने के आदेश दिए जाएं। दरअसल, इस संस्था पर काबिज भूमाफिया ने अपनी मनमर्जी से नए सदस्यों की सूची तैयार करवाकर पहले प्राधिकरण को भिजवा दी थी, मगर हल्ला मचने पर भूखंड आवंटित नहीं हो सके। वर्तमान में 33 भूखंड के विपरीत 262 सदस्य बचे हैं। हालांकि इनमें 33 ही पात्र हैं। अन्य अपात्रों को अलग-अलग तरीकों से सदस्य बनाया गया, मगर इनमें से कुछ सदस्य विभिन्न न्यायालयों, उपभोक्ता फोरम से भी अपने पक्ष में आदेश करवा लाए, जिसके चलते 2015 की वरीयता सूची को नए सिरे से बनाने के लिए भोपाल से अनुमति मांगी गई, ताकि 33 भूखंड प्राधिकरण से प्राप्त कर पात्र सदस्यों को आवंटित किए जा सकें। मगर आयुक्त सहकारिता एवं पंजीयक नरेश पाल ने अभी तक इस संबंध में अनुमति चार महीने बीतने के बाद भी नहीं दी है। इसी तरह का मामला बॉबी छाबड़ा से जुड़ी जागृति गृह निर्माण का भी है, जिसकी राजगृही कॉलोनी में जमकर फर्जीवाड़े हुए हैं। कलेक्टर मनीषसिंह ने पिछली संस्थाओं की मीटिंग में स्पष्ट किया कि जो 1500 स्क्वेयर फीट के वास्तविक भूखंड आवंटन हैं उन्हीं को मान्य किया जाएगा और बाद में जो भूखंडों की साइज घटाकर साढ़े 1200 स्क्वेयर फीट की गई उसे मान्य नहीं करेंगे।
दरअसल जागृति के संबंध में हाईकोर्ट की डीबी (High Court’s DB) का आदेश है, जिसमें साढ़े 1200 स्क्वेयर फीट के मुताबिक मंजूर अभिन्यास के आधार पर आवंटन करने के निर्देश दिए गए थे। लिहाजा अब नए सिरे से आमसभा बुलाकर उसमें ठहराव प्रस्ताव मंजूर करना होगा, ताकि 1500 स्क्वेयर फीट के मान से असल आवंटन किया जा सके, लेकिन महीनों बाद जागृति की आमसभा बुलाने की मंजूरी भी अभी तक भोपाल से नहीं मिली है, जिसके चलते जागृति के 500 से ज्यादा पीडि़तों को भूखंड उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। इनमें भी सविता गृह निर्माण और दीप गणेश में अन्य अपात्रों को जो भूखंडों का आवंटन हुआ उसे भी सरेंडर करवाने की प्रशासन की प्रक्रिया जारी है। मगर आमसभा न हो पाने के चलते उन निर्णयों को अमल में नहीं लाया जा सका है, जबकि इंदौर में ही भूखंड पीडि़तों के बीच मौजूद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इंदौर कलेक्टर मनीषसिंह की प्रशंसा करते हुए अन्य जिला कलेक्टरों की बैठक में उन्हें प्रजेंटेशन देने को भी कहा, ताकि इंदौरी मॉडल की तर्ज पर प्रदेशभर की गृह निर्माण संस्थाओं के पीडि़तों को न्याय दिलवाया जा सके। मगर मुख्यमंत्री की मंशा पर भी भोपाली अफसर पानी फेर रहे हैं और पहले की तरह पर्दे के पीछे से इन संस्थाओं पर काबिज भूमाफिया-रसूखदारों का दबाव-प्रभाव कायम है।
स्टाम्प ड्यूटी छूट की मंजूरी भी विधि विभाग ही देगा
अभी तमाम गृह निर्माण संस्थाओं की जमीनें अपात्रों ने खरीद लीं। हालांकि कई जमीनों को कलेक्टर की सख्ती के चलते सरेंडर भी करवा लिया और कोर्ट में प्रकरण प्रस्तुत कर रजिस्ट्रियों को शून्य करवाया जा रहा है, मगर कई रजिस्ट्रियां ऐसी हैं, जो गलत हुईं और उन्हें अब निरस्त करवाना है, लेकिन उसके लिए स्टाम्प शुल्क जमा करना पड़ता है। इस संबंध में कलेक्टर के साथ सहकारिता विभाग ने भी स्टाम्प शुल्कमुक्ति के पत्र भोपाल भिजवाए थे। हालांकि इस संबंध में सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव ने विधि विभाग (Principal Secretary Law Department) को पत्र लिखा था, जहां से तय हुआ कि जिन रजिस्ट्रियों को शून्य करवाना है उसके अलग-अलग प्रकरण विधि विभाग को भेजे जाएं और वहां से मंजूरी के बाद सक्षम न्यायालय में स्टाम्प ड्यूटी छूट के साथ उन्हें प्रस्तुत किया जा सकेगा। इसके चलते अब इंदौर से ऐसे प्रकरणों को एक-एक कर विधि विभाग को भेजा जा रहा है।
जिलों से जांच प्रतिवेदन न भेजने का मचाया हल्ला
मुख्यमंत्री द्वारा पिछले दिनों सहकारिता विभाग की समीक्षा के दौरान भी पीडि़तों को भूखंड दिलवाने के निर्देश दिए गए, जिसके चलते सहकारिता आयुक्त नरेश पाल ने दिखावटी नाराजगी व्यक्त करते हुए जिला अधिकारियों को कहा कि वे जल्द से जल्द जांच प्रतिवेदन संस्थाओं के मामलों में भिजवाएं, ताकि 5 हजार से ज्यादा लंबित पड़ी शिकायतों का निराकरण किया जा सके। प्रदेश में 2 हजार से अधिक सहकारी समितियां हैं। इनमें सबसे ज्यादा शिकायतें इंदौर की संस्थाओं की हैं, जिसके चलते सहकारिता आयुक्त ने सभी जिलों के उपपंजीयकों (sub-registrars) को निर्देश दिए कि अवैधानिक रूप से जिन संस्थाओं की जमीनें बेची हैं उनकी जांच कर रिपोर्ट भेजें। जबकि हकीकत यह है कि इंदौर से जो रिपोर्ट भेजी गई उन्हीं पर आज तक भोपाली अफसरों ने कोई निर्णय नहीं किया।
त्रिशला गृह निर्माण की केवाईसी पर भी ले ली आपत्ति
भूमाफिया दीपक मद्दा व अन्य की कब्जे वाली त्रिशला गृह निर्माण संस्था की ग्राम खजराना स्थित जमीन को कलेक्टर मनीषसिंह (Collector Manish Singh) ने पिछले दिनों सरकारी घोषित करते हुए नगर निगम के हवाले कर दिया। इस 15 एकड़ जमीन पर निगम ने अपने स्वामित्व का बोर्ड भी लगा दिया। सीलिंग एक्ट से छूट लेते हुए त्रिशला गृह निर्माण में इसे शामिल कर लिया, जिसके चलते कलेक्टर ने इसे सरकारी घोषित करते हुए संस्था की योजना 140 सहित अन्य जमीनों की भी जांच शुरू करवाई और इसमें जो कागजी सदस्य बनाए उनकी केवाईसी शुरू करवाई। अपर कलेक्टर डॉ. अभय बेड़ेकर ने जब त्रिशला गृह निर्माण के सदस्यों की जांच शुरू की तो उस पर भी भोपाल ने रोक लगा दी। हालांकि प्रशासन का स्पष्ट कहना है कि बोगस और फर्जी सदस्यों की जांच करते हुए आवश्यक कार्रवाई अवश्य की जाएगी।
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