भोपाल। खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई की मार से आम मध्यमवर्गीय परिवार परेशान है। देश की थोक महंगाई दर के आंकड़े जारी होने के साथ आम लोगों की इस शिकायत पर सरकारी मुहर भी लग गई है। देश में अब तक आमधारणा रही है कि खाने-पीने की वस्तुओं के दाम एक सीमित दायरे में रहेंगे, भले ही सब कुछ महंगा हो जाए, लेकिन खाना महंगा नहीं होगा। लोगों की इस धारणा को ताजा दौर ने तोड़ दिया है। गेहूं जैसा रोजमर्रा का अनाज जिसके दाम लगभग स्थिर बने रहते थे वह भी महंगाई की चपेट में है। नतीजा यह है कि आटा अब तक के सबसे ऊंचे दाम पर बिक रहा है। चावल के दाम भी सर्वोच्च स्तर पर हैं। चावल व्यापारी एसोसिएशन के उपाध्यक्ष दयालदास अजीत कुमार के अनुसार आम मध्यम वर्ग के बीच में प्रचलित बासमती दुबार और तिबार किस्म के चावल के दाम भी बीते वर्षों में सबसे ऊंचे हैं। दो वर्षों में दामों में 20 से 15 रुपये प्रति किलो की बढ़ोत्तरी बासमती चावल में दिख रही है। चावल के दामों में इतनी तेजी आना बाजार के लिहाज से भी बड़ी बात है। कोरोना का दौर बीतने के बाद की यह महंगाई लोगों को हैरान कर रही है। हालांकि इसकी वजह भारतीय अनाज और चावल का विदेश में हो रहे निर्यात को माना जा रहा है। दाम बढऩे से लोगों की खरीदी सीमित हो रही है।
सोयाबीन तेल के दाम भी बढ़े
खाने का तेल लगातार ऊंचे दामों का रिकार्ड बना रहा है। खाने के तेल के कीमतों पर नियंत्रण की सरकारी कोशिशें भी विफल नजर आ रही है। खाद्य तेलों के दलाल राजीव कपूर के अनुसार इससे पहले किसी भी वर्ष में सोयाबीन तेल 90 रुपये ऊपर नहीं बिका। दामों का यह स्तर भी उस वक्त देखा जाता था जब सोयाबीन का स्टाक खत्म होता था। आमतौर पर गर्मियों में खाने के तेल की मांग कम रहती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इस बार दाम ऊंचे स्तर पर बने हुए हैं। खाद्य तेल की महंगाई ने कोरोना के दौर में रफ्तार पकड़ी थी। जो अब तक थम नहीं रही। खाने-पीने की इन आम और जरुरी वस्तुओं की मंहगाई के असर से किचन के बजट में सीधे-सीधे 25 से 30 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। रसोई गैस की महंगाई भी इसमें जोड़ ली जाए तो किचन में होने वाले खर्च का आंकड़ा एक वर्ष में ही 35 से 40 प्रतिशत तक उछल गया है।
छोटे परिवार की रसोई का बजट 5 हजार रुपये तक बढ़ा
महंगाई का हाल यह है कि छोटे (चार सदस्य वाले) परिवार का बजट तीन साल में पांच हजार रुपये तक बढ़ चुका है। 2020 तक एक मध्यमवर्गीय परिवार की रसोई का खर्च 5 से 7 हजार रुपये प्रतिमाह तक होता था लेकिन वर्तमान में बढ़ते दामों के चलते यह 10 से 13 हजार रुपये प्रतिमाह तक पहुंच गया है। खास बात यह कि इन तीन सालों में मध्यमवर्गीय परिवार की आमदनी में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। इसका असर यह है कि परिवार की बचत लगभग खत्म हो गई है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved