नईदिल्ली बीज की ताकत उसका समर्पण है। बीज से वृक्ष बनता है। बीज को मिट्टी में मिल जाना पड़ता है। डॉक्टर हेडग़ेवार ने ऐसे ही प्रतिभाशाली तरुणों की पहचान की और उन्हें यह समर्पण सिखाया। मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी ऐसे ही बीज थे। उन्होंने ध्येय के प्रति समर्पित होकर अपना जीवन जिया।
यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने प्रख्यात पत्रकार एवं विचारक मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी के जन्मशताब्दी वर्ष का समापन समारोह में व्यक्त किए। समारोह का आयोजन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नईदिल्ली में आयोजित हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने की। मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी जन्मशताब्दी समारोह समिति के अध्यक्ष प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि विश्व को अपना बनाना है तो पहले भारत को अपना बनाना होगा। अपने जीवन में भारत झलकना चाहिए। विश्वगुरु भारत या महाशक्ति भारत यानी दण्डा चलाने वाला भारत नहीं, बल्कि मानवों हृदय जीतने वाला भारत। ऐसा भारत बनाना है तो ऐसे भारतीयों को खड़ा होना होगा, जो आत्मीय भाव से समर्पित होकर कार्य करें। मामाजी ने इसी आत्मीय भाव से अपना सारा कार्य किया। उन्होंने बताया कि भारत विभाजन के समय देशभर में दंगे चल रहे थे। तब मामाजी भिंड के जिला प्रचारक थे और वे यह चिंता कर रहे थे कि भिंड जिले के एक भी गाँव में दंगा नहीं होना चाहिए। दंगे के डर से जब मुस्लिम परिवारों ने भिंड छोड़ा तो वे अपने घरों की चाबियां मामाजी को सौंप कर गए। अपने व्यवहार और कार्य से मामाजी ने यह विश्वास अर्जित किया। जब संघ पर प्रतिबंध लगा और पुलिस मामाजी को ढूंढ रही थी, तब वे मुस्लिम परिवारों में ठहरे। यह आत्मीयता मामाजी ने अपने संघकार्य से बनाई थी।
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि आदमी ने क्या किया और क्या बना, दुनिया इसको गिनती है। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि आदमी क्या है? यश और सार्थकता दोनों अलग बाते हैं। जीवन सार्थक होना चाहिए। मामाजी का जीवन सार्थक था। मामाजी जैसे लोगों के कारण ही संघ चल रहा है। उन्होंने कहा कि मामाजी के संपर्क में जो भी आया, उसे उनसे प्रेम और प्रकाश ही मिला, चाहे उसकी कोई भी विचारधारा रही हो।
राजमाता और नरसिंह राव जोशी उनके विरुद्ध चुनाव लड़े लेकिन बाद में उनके साथ ही आ गए। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी मामाजी ने उच्च आदर्श स्थापित किए। उन आदर्शों को आज सबको अपने पत्रकारीय जीवन में उतारना चाहिए। मामाजी के विचारों के अनुसरण से पत्रकारिता के समूचे वातावरण में आ सकता है।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि मामाजी राष्ट्रीय पत्रकारिता के ब्रांड थे। उन्होंने एक विरासत छोड़ी है, हमें उसका सम्मान करना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ता निर्माण की जो पद्धति है, वह अद्भुत है। मामाजी संघ की उसी पद्धति से तैयार हुए स्वयंसेवक थे। उन्हें जो कार्य दिया गया, उसे पूरी प्रामाणिकता से पूरा किया। एक प्रखर पत्रकार, संपादक एवं चिंतक के नाते उनकी पहचान है। भारत विभाजन के दौरान संघ ने कितना महत्वपूर्ण कार्य किया, इस संबंध में उन्होंने बहुत परिश्रम से पुस्तक की रचना की है।
हरियाणा और त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा कि संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी के आदर्श को मामाजी ने अपने जीवन में उतारा था। वह सादगी से जीते थे। अपने जीवन का सर्वस्व उन्होंने देश की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। प्रो. सोलंकी ने कहा कि मामाजी ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के अद्वितीय उदाहरण थे। उन्होंने जो आलेख और पुस्तकें लिखीं, वे आज भी प्रासंगिक हैं। वे स्वदेशी की आग्रही थे। जम्मू-कश्मीर और राम जन्मभूमि आंदोलन पर मामाजी ने जो लिखा, उसे हमने आज सच होते देखा है। मामाजी ने अपने चिंतन से राष्ट्र का पुनर्जागरण किया था।
इस अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने कहा कि भाषायी पत्रकारिता में मामाजी का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने पत्रकारिता में एक बड़ी लकीर खींची थी। मामाजी की पत्रकारिता जीवन के प्रति दृष्टिकोण सिखाती है। हम सबको उनकी पुस्तक ‘आपातकाल की संघर्षगाथा’ अवश्य पढऩी चाहिए। आज की पत्रकारिता को मामाजी की पत्रकारिता से प्रेरणा लेनी चाहिए।
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