इन्दौर। प्रदेश सरकार द्वारा महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाने का अध्यादेश वापस लेने के बाद असमंजस की स्थिति बनी हुई है। फिलहाल जो स्थिति बनी हुई है, उससे पार्षद बनने के बाद ही महापौर का चुनाव पार्षद करेंगे। कांग्रेस से अगर संजय शुक्ला को प्रत्याशी बनाया जाता है तो उन्हें विधायक रहते पहले पार्षद का चुनाव लडऩा पड़ेगा, वहीं भाजपा के महापौर पद उम्मीदवार को भी सुरक्षित सीट से लड़ाना पड़ेगा। पार्टी इस मामले में 2 से 3 नेताओं को चुनाव लड़ा सकती है।
अध्यादेश सरकार वापस पेश करेगी या नहीं, इसको लेकर सरकार में ही दो फाड़ है। एक गुट अप्रत्यक्ष तो दूसरा गुट प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराना चाहता है। पार्टी सूत्रों के अनुसार अब अध्यादेश वापस पेश नहीं किया जाएगा। अगर ज्यादा दबाव आया तो ही सरकार इस पर निर्णय कर सकती है कि प्रत्यक्ष चुनाव का अध्यादेश एक बार फिर राज्यपाल को भेजा जाए। इस बीच दोनों ही पार्टियों में महापौर पद के चुनाव के लिए असमंजस की स्थिति बनी हुई है। भाजपा में महापौर पद के ढेरों दावेदार हैं। फिलहाल तो हर बड़ा नेता चाह रहा है कि वह महापौर का चुनाव लड़े, लेकिन अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होने की आशंका के चलते वे अब अपने लिए सुरक्षित वार्ड ढंूढने लगे हैं, क्योंकि अगर वे पार्षद का चुनाव हार गए तो स्वत: ही महापौर की दौड़ से बाहर हो जाएंगे।
कई नेता तो अध्यादेश को लेकर कल भोपाल के नेताओं को फोन लगाते रहे, लेकिन भोपाल के नेता भी असमंजस में हैं कि कहीं सरकार अध्यादेश वापस पेश नहीं कर दें। वैसे अब अधिसूचना जारी करने का समय नजदीक आने के कारण अध्यादेश पेश करने में कम समय ही बचा है। भाजपा के महापौर पद के दावेदार नेताओं ने भी भागदौड़ शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि पार्टी जिसे महापौर का प्रत्याशी तय करेगी, उसके अलावा एक-दो नाम और तय करके रखेगी और उन्हें पार्षद का चुनाव लड़ाएगी, ताकि अधिकृत प्रत्याशी के चुनाव हारने की स्थिति में किसी दूसरे को मौका मिल सके। दूसरी ओर कांग्रेस के एकमात्र प्रत्याशी संजय शुक्ला भी अपने लिए सुरक्षित वार्ड तलाश रहे हैं। वे एक नंबर के किसी भी वार्ड से पार्षद का चुनाव लड़ेंगे। हालांकि विधायक रहते पार्षद का चुनाव लडऩे के मामले में वे राजनीतिक सलाहकारों से भी राय ले रहे हैं। इस मामले में वे पिछले दिनों प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ से भी मिल चुके हैं।
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