नई दिल्ली (New Dehli)। पश्चिम बंगाल (West Bengal)में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान के बीच तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress)अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान (announcement)कर चुकी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि भाजपा को हराने के लिए वह हर मुमकिन प्रयास करेंगी। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस मजबूत है। वर्ष 2021 विधानसभा में वह भाजपा को शिकस्त भी दे चुकी है, पर लोकसभा की राह आसान नहीं है। चुनाव में भाजपा विरोधी वोट के बंटवारे से तृणमूल और कांग्रेस दोनों को नुकसान हो सकता है।
कांग्रेस भले ही बड़े-बड़े दावे करे, पर जमीन पर पार्टी की स्थिति बेहद कमजोर है। पिछले चार चुनाव में पार्टी की सीट और वोट प्रतिशत लगातार कम हुआ है। यही वजह है कि कांग्रेस गठबंधन के लिए आखिरी कोशिश में जुटी है। पार्टी रणनीतिकार मानते हैं कि लोकसभा में कांग्रेस के पास खोने के लिए बहुत ज्यादा नहीं है, पर भाजपा पूरी आक्रामकता के साथ चुनाव मैदान में उतरती है तो ममता बनर्जी के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है।
वर्ष 2019 के चुनाव में तृणमूल और भाजपा के बीच बहुत ज्यादा फर्क नहीं था। इन चुनाव में ममता बनर्जी को 22 सीट के साथ 43.3 प्रतिशत और भाजपा को 18 सीट के साथ 40.6 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि, 2021 विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस अपना वोट बढ़ाने में सफल रही। वहीं, भाजपा को दो फीसदी के नुकसान के साथ 38 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को तीन फीसदी वोट मिलने के बावजूद कोई सीट नहीं मिली।
प्रदेश नेता मानते हैं कि लोकसभा में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों पार्टी गठबंधन करती है, तो इसका दोनों को लाभ मिल सकता है। वर्ष 2009 के चुनाव में दोनों पार्टियों ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। इसमें दोनों पार्टियों को 45 फीसदी वोट के साथ 26 सीट मिली थी। ऐसे में दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ती है, तो वोट प्रतिशत बढ़ सकता है। इसलिए, कांग्रेस पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन बचाने का प्रयास करेगी।
लगातार कमजोर हुआ है कांग्रेस का प्रदर्शन
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार कमजोर हुआ है। वर्ष 2004 में पार्टी को 14.56 फीसदी वोट के साथ छह सीट मिली थी। 2009 में 13 प्रतिशत वोट के साथ पार्टी छह सीट जीतने में सफल रही, पर 2014 में उसका वोट प्रतिशत घटकर 9.7 फीसदी रह गया और वह सिर्फ चार सीट जीत पाई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 5.6 प्रतिशत वोट के साथ दो सीट जीत पाई।
तृणमूल को 2019 में लगा झटका
तृणमूल कांग्रेस ने वर्ष 2004 में एनडीए घटकदल के रूप में चुनाव लड़ा था। इसमें पार्टी को 21.04 प्रतिशत वोट के साथ सिर्फ एक सीट मिली थी। पर 2009 में कांग्रेस के साथ गठबंधन से तृणमूल को फायदा हुआ। इस चुनाव में पार्टी ने गठबंधन में 27 सीट पर चुनाव लड़कर 31.2 फीसदी वोट के साथ 19 सीट जीती। वर्ष 2014 के चुनाव में तृणमूल ने अकेले किस्मत आजमाई और 39.8 प्रतिशत वोट के साथ 34 सीट जीती। पर 2019 में पार्टी को झटका लगा और 43.3 प्रतिशत वोट हासिल करने के बावजूद 22 सीट जीत पाई।
खड़गे ने ममता से की बात, डेरेक ने अधीर को जिम्मेदार ठहराया
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद कांग्रेस हरकत में आ गई है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुरुवार को ममता बनर्जी से बातचीत की। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि सीट बंटवारे से जुड़े गतिरोध पर तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलकर बीच का रास्ता निकाल लिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि ममता इंडिया गठबंधन की सह-निर्माता हैं। उनकी इस गठबंधन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने अभी किसी तरह के सकारात्मक संकेत नहीं दिए हैं। रमेश ने यह भी कहा कि अगर ममता बनर्जी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में कुछ मिनट के लिए भी शामिल होती हैं तो इससे खड़गे और राहुल गांधी को बहुत खुशी होगी। उनका कहना था कि यात्रा में ममता के शामिल होने से इसे मजबूती मिलेगी।
तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इंडिया गठबंधन की पटना में हुई पहली बैठक में एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी बंद करने का मुद्दा उठा था। उस वक्त राजद सुप्रीमो लालू यादव ने अधीर रंजन चौधरी का नाम लेकर कांग्रेस से चुप करने को कहा था, पर कांग्रेस नेतृत्व ने इस बारे में कोई कार्रवाई नहीं की। चौधरी लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। यही वजह है कि तृणमूल कांग्रेस नेता भी पश्चिम बंगाल में गठबंधन नहीं चल पाने के लिए अधीर रंजन चौधरी को जिम्मेदार मानते हैं। टीएमसी नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि इंडिया गठबंधन के दो मुख्य विरोधी थे। एक भाजपा और दूसरे अधीर रंजन चौधरी। अधीर पर भाजपा की भाषा बोलने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि सिर्फ अधीर की वजह से गठबंधन नहीं हो पाया।
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