– ऋतुपर्ण दवे
देश में एक बार फिर कोरोना दस्तक दे चुका है? लेकिन सच यही है कि कोरोना आने के बाद से ही कभी गया ही नहीं? हां, पाबंदियां हटती गईं और दबा संक्रमण धीरे-धीरे पसरता रहा और हम सब बेफिक्र रहे। देश हो या प्रदेश, जिले हों या नगर या गांव हों या पंचायतें लोग इतनी जल्दी उस दर्दनाक मंजर को भूल भी गए जो हफ्ते, महीने दिन नहीं पूरे दो साल तक दुनिया में तबाही मचाता रहा! वो वाकये भी याद नहीं रहे जो जिन्दगी भर का दर्द दे गए? शायद इसी गलती, चूक या लापरवाही का नतीजा है, जो कोरोना की डरावनी रफ्तार फिर उसी अंदाज में बेखौफ बढ़ती जा रही है।कोविड-19 द्वारा लोगों की जान को लीलना कभी थमा नहीं था। हां, कम या बीच में कुछ वक्त ब्रेक लगने का भ्रम जरूर था। अब दिसंबर आखिरी हफ्ते में आई तेजी ने जनवरी 2020 की याद दिला दी।
अभी गंभीर संक्रमण या अस्पताल में भर्ती होने के मामले ज्यादा नहीं होने के कारण लोग हल्के से ले रहे हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि नया वैरिएंट जेएन.1 धीरे-धीरे हावी होता जा रहा है जो अधिक संक्रमणीय होकर बहुत तेजी से फैल रहा है। इसके मुख्य लक्षण मुख्य रूप से बुखार के साथ लगातार या रुक-रुक कर हल्की-तेज खांसी, सांस लेने में तकलीफ या सांस नली में दिक्कत, थकान, मांसपेशियों और शरीर में दर्द के साथ ही सिरदर्द, गले में खराश, नाक बहना या बंद रहना है। ये लक्षण इतने आम होते हैं कि लोग जल्द समझ ही नहीं पाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों को खुद को संक्रमित होने से बचना-बचाना होगा। विशेषज्ञों ने भी वरिष्ठ नागरिकों को खास एहतियात बरतने की सलाह दी है।इस संक्रमण के ताजे रिसर्च ने सबको हैरान कर दिया है। नया वैरिएंट गले को बुरी तरह से प्रभावित करता है जिससे आवाज तक जा सकती है। यह बात भी सामने आई है कि इससे मौतों के बढ़ने के मामले और अस्पतालों में भर्ती होने की संख्या में वैसी बढ़ोतरी नहीं हुई, जैसी कि डेल्टा वैरिएंट के वक्त थी। लेकिन अब इस संक्रमण से स्वाद और गंध के साथ आवाज जाने की संभावना चिकित्सक बता रहे हैं। 15 साल की एक बच्ची ने इस वायरस के चलते अपनी आवाज गंवा दी, जिसके बाद चिकित्सक काफी गंभीर हैं।
इस सच्चाई को स्वीकारना ही होगा कि बीते एक पखवाड़े में इससे भले ही चंद मौतें हुईं लेकिन ये चिंताजनक हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में 24 दिसंबर की सुबह तक 656 केस नए मामले मिले जबकि 23 दिसबंर को 752 मिले थे यह 21 मई, 2023 के बाद अब तक मिले सबसे अधिक हैं। इन मामलों के बाद देश में इस समय कोरोना के सक्रिय मामले 4 हजार के लगभग हो गए हैं। हालांकि पिछले 24 घंटों में केवल एक ही मौत हुई। इधर आंकड़े बताते हैं कि 20 नवंबर से 17 दिसंबर यानी 28 दिनों में विश्व में कोविड के 8.50 लाख से अधिक नए मामले सामने आए और इसी अवधि में इस संक्रमण से 3,000 से अधिक मरीजों की मौतें हुईं। वहीं 17 दिसंबर तक दुनिया भर में कोविड के 77 करोड़ 20 लाख से अधिक मामलों की पुष्टि हो चुकी थी। वहीं लगभग 70 लाख मौतें भी दर्ज हो चुकी हैं। ताजे आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में 13 नवंबर से 10 दिसंबर के दौरान 1 लाख 18 हजार से अधिक ऐसे मामले सामने आए जिन्हें अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ा तो 1,600 से अधिक को आईसीयू में दाखिल करना पड़ा। इस तरह जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वो चिन्ताजनक हैं।
जाहिर है यह गंभीर या लगातार खांसी, फ्लू या फेफड़ों से संबंधित ज्यादा पीड़ितों के आंकड़े हैं। वास्तविक आंकड़े इससे कई गुना अधिक होंगे जो इस मुगालते में होंगे कि उनको सर्दी, खांसी या फ्लू जैसी साधारण तकलीफ है। पहले भी यही साधारण बीमारियां असाधारण बन गईं थीं। दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में एकाएक 5 मरीजों की मौतों से सभी घबरा गए हैं। हालांकि शनिवार को हुई एक मृत्यु के बाद देश में कोरोना से हुई मौतों की संख्या 5,33,333 पहुंच गई इस तरह मामले की मृत्यु दर 1.19 प्रतिशत दर्ज की गई है जबकि ठीक होने वालों की संख्या 4,44,71,212 हो गई जिससे राष्ट्रीय रिकवरी दर 98.81 प्रतिशत है।
आंकड़े और जानकार बताते हैं कि पिछले तीन साल में सर्दियों के दौरान कोरोना बहुत तेज फैला। ठंड बढ़ी नहीं कि फिर कोरोना की शह दिखने लगी। कमोबेश वही ट्रेंड अभी भी बना हुआ है। इस बार भारत में पहला सब वैरिएंट सिंगापुर से आया तिरुचिरापल्ली निवासी था। 25 अक्टूबर को सिंगापुर से लौटा था। उसके संपर्क में कितने लोग आए होंगे और सिंगापुर से कितने कहां-कहां आए-गए होंगे किसे पता? निश्चित रूप से सब जानते हैं कि कोविड टेस्ट तो दूर एयरपोर्ट पर साधारण जांच तक नहीं हुई। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों से आने वाले लोग बेखौफ भारत आते-जाते रहे। अब यही बड़ा खतरा है।
भारत की सबसे पहली कोरोना मरीज वुहान से आई मेडिकल छात्रा थी जो कोरोना फैलते ही घबरा कर लौटी। 21 जनवरी 2020 को वुहान से कोलकता होते हुए कोच्चि पहुंची। उसमें दोनों एयरपोर्ट पर थर्मल स्क्रीनिंग में वायरस के लक्षण नहीं दिखे। लेकिन 27 जनवरी 2020 को तबियत बिगड़ते ही समझते देर नहीं लगी कि माजरा क्या है? टेस्ट पॉजिटिव निकला। उधर 28 जनवरी तक देश में करीब 450 लोग चपेट में आए जिसमें ज्यादातर केरल से ही थे। फिर तो कोरोना ने कैसे पैर पसारा, हालात किस तरह बेकाबू हुए एक बुरे सपने जैसा था।
निश्चित रूप से कोरोना का नया सबवैरिएंट जेएन-1की पूरी प्रकृति नहीं मालूम है। यह बेहद खतरनाक व डराने वाली स्थिति है। सिंगापुर, अमेरिका चीन के बाद यह एसएआरएस-कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (सार्स कोव-2) यानी आईएनएसएसीओजी की निगरानी से भारत में पकड़ आया जो केरल की एक 79 वर्षीय महिला में मिला। यही कोविड-19 का नया वैरिएंट है जिसे जेएन-1 कहते हैं। अब स्वास्थ्य एजेंसियों की खानापूर्ति कहें या सुस्ती या फिर शासन-प्रशासन की खामोशी या सरकार की व्यस्तता से कहीं वैसे हालात तो फिर नहीं बन जाएंगे? हालांकि यह प्रश्न अभी भविष्य के गर्त में है और वहीं रहा भी आए वही बेहतर है। फिलहाल भारत सरकार ने गाइडलाइन जारी कर दी है और 20 दिसंबर को सभी राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों की दिल्ली में बैठक के बाद और भी सतर्कता बढ़ाने के सभी राज्यों को निर्देश हुए हैं। हालांकि कागज, ई-मेल और सोशल मीडिया पर दौड़ते आदेश वैसे प्रभावी हो पाएंगे जितने होने चाहिए? जरूरत है पहले जैसी सतर्कता, जनजागरण और स्थानीय पुलिस व पालिका-पंचायत और स्वास्थ्य महकमें के संयुक्त अभियान की जो चेतावनी व कड़ाई दोनों दिखाएं।
इधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नए जेएन-1 कोविड स्ट्रेन को चिंताजनक माना है। इसके देश में22 मामले ही सामने आए हैं। इस वैरिएंट से निपटने खातिर पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जल्द ही महामारी के एक और उछाल को रोकने के लिए टीके बनाने और बेचने की तैयारी में है जिसके नए वेरिएंट के खिलाफ वैक्सीन खातिर लाइसेंस के आवेदन की चर्चा है। इसी ने 2020 में महामारी के दौरान एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ साझेदारी में कोविशील्ड टीकों का उत्पादन कर लोगों की जान बचाने में मदद की थी।
सच है कि पहले भी दुनिया जहान में कोई भी देश कोविड से अछूता नहीं था। सुरक्षा एहतियातों से ही अधिकतर जानें बचीं। लेकिन सभी ने किसी अपने या जान-पहचान वाले को खोने का दर्द झेला है। हैरानी की बात है कि हम साल, सवा साल या कहें चंद महीनों में ही सब भूल गए? बेफिक्री के आलम में ऐसे मशगूल हुए कि याद तक नहीं रखा कि कभी कोरोना था?कोविड-19 के सच को सबने देखा और शायद ही कोई भूल पाया हो। अब मानना ही होगा कि कोरोना अभी जिंदा है जिससे निपटने में मास्क संग दो गज की दूरी और हाथ धोना जरूरी है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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