नई दिल्ली: पूरी दुनिया ने वर्ष 2022 को अलविदा कहते हुए 2023 का नए साल के तौर पर स्वागत किया है. दुनिया के 200 से ज्यादा देश ग्रेगोरियन कैलेंडर ही मानते हैं. मतलब वहां सारे काम काज सरकारी तौर पर जनवरी से शुरू होकर दिसंबर तक चलते हैं. हर प्रक्रिया में सबकुछ इसी कैलेंडर से चलता है. यहां तक की विक्रम संवत कैलेंडर की रचना करने वाला भारत भी हर कामकाज में ग्रेगोरियन कैलेंडर को ही प्राथमिकता देता है लेकिन दुनिया का एक ऐसा देश भी है, जहां ग्रेगोरियन नहीं बल्कि हिंदू कैलेंडर के हिसाब से कामकाज चलता है.
हालांकि वर्ष 1954 से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने हिंदू कैलेंडर यानि विक्रम संवत को ग्रेगोरियन फारमेट के साथ अपना लिया था लेकिन देश का सारा कामकाज ग्रेगोरियन कैलेंडर फारमेट से ही होता है. नेपाल ने हमेशा हिंदू कैलेंडर को ही माना है. इसे विक्रमी कैलेंडर भी कहते हैं. ये ग्रेगोरियन कैलेंडर से 57 साल आगे चलता है. इसे विक्रम संवत कैलेंडर भी कहते हैं.
करीब 57 ईसा पूर्व से ही भारतीय उपमहाद्वीप में तिथियों एवं समय का आंकलन करने के लिए विक्रम संवत, बिक्रम संवत अथवा विक्रमी कैलेंडर का प्रयोग किया जा रहा है. ये यह हिन्दू कैलेंडर नेपाल का आधिकारिक कैलेंडर है. वैसे भारत के कई राज्यों विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल भी किया जाता है.
नेपाल में 1901 से आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल
नेपाल में आधिकारिक तौर पर विक्रम संवत कैलेंडर का इस्तेमाल 1901 ईस्वी में शुरू किया गया.नेपाल के राणा वंश द्वारा बिक्रम संवत को आधिकारिक हिंदू कैलेंडर बनाया गया. नेपाल में नया साल बैशाख महीने (ग्रेगोरियन कैलेंडर में 13-15 अप्रैल) के पहले दिन से शुरू होता है. चैत्र महीने के आखिरी दिन के साथ समाप्त होता है. नए साल के पहले दिन नेपाल में सार्वजनिक अवकाश होता है.
ये चांद की स्थितियों के साथ सौर नक्षत्र वर्ष का भी उपयोग करता है. विक्रम संवत कैलेंडर का नाम राजा विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया था, जहां संस्कृत शब्द ‘संवत’ का प्रयोग “वर्ष” को दर्शाने के लिए किया गया है. विक्रमादित्य का जन्म 102 ईसा पूर्व और उनकी मृत्यु 15 ईस्वी को हुई थी. 57 ईसा पूर्व में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था. उसी विजय की स्मृति में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से विक्रम संवत की भी शुरुआत हुई थी.
इसमें भी 12 महीने का एक साल और 07 दिन का हफ्ता
इस संवत् का आरम्भ गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से और उत्तरी भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है. बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ. महीने का हिसाब सूर्य व चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है. ये 12 राशियां 12 सौर मास हैं. पूर्णिमा के दिन, चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है. चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है, इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है.
क्यों ये बेहतर है
विक्रम संवत में कई ऐसी बातें हैं जो इसे अंग्रेजी कैलेंडर से ज्यादा बेहतर बनाती हैं. हिन्दुओं के सभी तीज-त्यौहार, मुहूर्त, शुभ-अशुभ योग, सूर्य-चंद्र ग्रहण, हिन्दी पंचांग की गणना के आधार पर ही तय होते हैं. इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक हर एक महत्वपूर्ण काम की शुरुआत हिन्दी पंचांग से मुहूर्त देखकर ही की जाती है.
तब संवत शुरुआत के लिए विक्रमादित्य ने माफ किया पूरी प्रजा का ऋण
विक्रम संवत के जनक विक्रमादित्य राजा भर्तृहरि के छोटे भाई थे. भर्तृहरि को उनकी पत्नी ने धोखा दिया तो उन्होंने राज्य छोड़कर संन्यास ले लिया. राज्य सौंप दिया विक्रमादित्य को. ऐसा माना जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने अपनी प्रजा का पूरा ऋण माफ कर दिया था, ताकि लोगों की आर्थिक दिक्कतें खत्म हो जाएं. उस समय जो राजा अपनी प्रजा का पूरा कर्ज माफ कर देता था, उसके नाम से ही संवत प्रचलित हो जाता था. इस कारण उनके नाम से विक्रम संवत प्रचलित हो गया.
विक्रम संवत से पहले कौन सा पंचांग चलता था
करीब 5 हजार साल पहले यानी द्वापर युग से भी पहले सप्तऋषियों के नाम से संवत चला करते थे. द्वापर युग में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ. इसके बाद श्रीकृष्ण के नाम से संवत प्रचलित हुआ. द्वापर युग के बाद कलियुग शुरु हुआ था. श्रीकृष्ण संवत के करीब 3000 साल बाद विक्रम संवत की शुरुआत हुई, जो आज तक प्रचलित है.
इस साल हिंदू कैलेंडर 12 की बजाए 13 महीनों का
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक नया साल 12 महीनों के बजाए 13 महीनों का हो सकता है. दरअसल ये अधिमास के कारण होगा. शिव का पवित्र माह सावन 30 दिन नहीं, बल्कि 59 दिनों का होगा. मतलब सावन का महीना दो माह तक रहेगा. सावन के महीने में 8 सोमवार पड़ेंगे.
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