बेंगलुरु. कर्नाटक (karnataka) से एक अनोखा मामला सामने आया है. कोप्पल कोर्ट (koppal Court) के जज (judge) ने चपरासी ( peon) के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं. जज ने जब चपरासी की 10वीं की 99 प्रतिशत (99.5% marks) की डिग्री देखी तो वह हैरान रह गए क्योंकि चपरासी पढ़ने और लिखने (read and write) में सक्षम नहीं था. जज ने चपरासी की 10वीं की मार्कशीट पर संदेह जताते हुए जांच के निर्देश दिए हैं.
जांच में सामने आया सच
एफआईआर के बाद पुलिस ने प्रभु की मार्कशीट और स्कूली शिक्षा की जांच की, जिसके बाद सच सबके सामने आया. जांच में पाया गया कि रायचूर जिले के सिंधनूर तालुक के प्रभु ने केवल 7वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी और कोप्पल अदालत में सफाईकर्मी के रूप में काम किया था. इसके बावजूद, उनका नाम चपरासी के पद के लिए 22 अप्रैल, 2024 को जारी अंतिम योग्यता चयन सूची में दर्ज किया गया, जिससे उनकी पोस्टिंग यादगीर में जिला और सत्र न्यायालय में हो गई.
अन्य कर्मियों की भी होगी जांच
प्रभु के सर्टिफिकेट के अनुसार, उन्होंने एसएसएलसी परीक्षा (Secondary School Leaving Certificate) में 625 में से 623 अंक प्राप्त किए. प्रभु को सालों से जानने वाले जज को पता था कि वह कन्नड़, हिंदी और अंग्रेजी भाषा लिख या पढ़ नहीं पाते हैं. जज को इस बात का संदेह हुआ कि फिर प्रभु सफाईकर्मी से चपरासी कैसे बना. न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि फर्जी शैक्षणिक उपलब्धियों से मेधावी छात्रों को नुकसान होता है और इस बात की जांच करने की बात कही कि क्या अन्य लोगों ने भी इसी तरह से सरकारी नौकरियां हासिल की हैं या नहीं.
दिल्ली शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित परीक्षा से मिली है 10वीं की डिग्री
न्यायाधीश ने प्रभु की लिखावट की तुलना उनकी एसएसएलसी उत्तर पुस्तिकाओं से करने का भी अनुरोध किया. प्रभु ने दावा किया कि उन्होंने 2017-18 में बागलकोट जिले के बनहट्टी में एक संस्थान में एक निजी उम्मीदवार के रूप में कक्षा 10 की परीक्षा दी थी और परीक्षा दिल्ली शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित की गई थी. पुलिस आगे की जांच में जुटी हुई है.
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