उज्जैन। जिले में वन विभाग द्वारा हर साल लाखों पेड़ लगाकर बदलते पर्यावरण पर काबू पाने का प्रयास तो किया जा रहा है, लेकिन विभाग की ओर से पुराने पेड़ों को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा हैं। यानी जिन इलाकों में वन क्षेत्र फैला हुआ है, वो सब भगवान भरोसे ही है। अग्रिबाण ने जब वन विभाग के डीएफओ किरण बिसेन से उज्जैन जिले में पेड़ों की संख्या पूछी तो उनके पास इसका भी जवाब नहीं था। जब बारिश-आंधी-तूफान में गिरने वाले पुराने पेड़ों का रिकॉर्ड पूछा तो पता चला कि वे तो ऐसे पेड़ों को गिनते ही नहीं हैं।
उल्लेखनीय है कि एक तरफ सरकार सहित सामाजिक संस्था पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर गिफ्ट देने के बदले पौधों को उपहार में देकर पर्यावरण की रक्षा का संदेश दे रहे हैं। दूसरी तरफ वन विभाग भी प्रतिवर्ष लाखों पेड़ लगाकर बदलते मौसम को काबू में पाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन विभाग पेड़ की सुरक्षा और संरक्षा पर ध्यान नहीं दे रहा है। इस कारण पौधे सूख रहे हैं। पेड़ काटकर चोर ले जा रहे है। बाकी पेड़ आंधी-तूफान और बरसात में टूट कर गिर रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि बर्बाद हो रहे पेड़ों का विभाग के पास आंकड़ा भी नहीं है और न ही इस बात की उन्हें जानकारी है कि उनके द्वारा लगाए गए लाखों पेड़ों में से अब तक कितने पेड़ सही-सलामत पर्यावरण की सुरक्षा कर रहे हैं। विभाग ने पिछले पांच वर्षों में कितने पेड़ लगाए है और उनमें कितने बचे हैं, विभाग को इसका पता ही नहीं है। मतलब साफ है सरकार द्वारा प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए पर्यावरण की सुरक्षा और पौधे लगाने के उद्देश्य से जिला वन विभाग को उपलब्ध हो रहे हैं, लेकिन सरकार के इस राजस्व का सही से उपयोग नहीं हो पा रहा है। यह हाल तब है जब हरियाली बढ़ाने और उसे बचाने के लिए तीन से ज्यादा सरकारी एजेंसियां सक्रिय हैं। वन विभाग, पर्यावरण वानिकी वन मंडल और नगर निगम सहित कई अन्य सरकारी एजेंसियां इस पर काम कर रही हैं। बावजूद पुराने पेड़ों को बचाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
मात्र 3 साल करते हैं देखरेख
वन विभाग के अफसरों की माने तो सरकार द्वारा विभाग को जब पौधे को लगाने की राशि उपलब्ध कराई जाती है तो लगाए गए पौधे की संख्या भी लक्ष्य के रूप में चिह्नित होती है। इस लक्ष्य के अनुरूप विभाग द्वारा पेड़ लगाए जाते है, लेकिन लगाए गए पेड़ की सुरक्षा, संरक्षा और संवर्धन विभाग द्वारा मात्र अधिकतम 3 वर्षों तक ही की जाती है। इसके बाद पेड़ की क्या स्थिति है। इसका भौतिक सर्वेक्षण नहीं हो पाता है। जानकार कहते हैं कि यदि ऐसे पेड़ों की वक्त रहते देखरेख की जाए तो वे गिरने से बच सकते हैं। वहीं प्रतिवर्ष या 3 वर्ष बाद भी अगर लगाए गए पेड़ों की गणना हो तो बचे हुए पेड़ों का सही आंकड़ा दिखेगा लेकिन पेड़ों की गणना का ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इसके कारण आंकड़ा विभाग के पास उपलब्ध नहीं है।
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