– योगेश कुमार गोयल
सामाजिक असमानता की खाई निरंतर बढ़ रही है। जिससे आम आदमी की आय में बेहद कम बढ़ोतरी हो रही है जबकि अमीर वर्ग की सम्पत्ति कई गुना बढ़ी है। न केवल भारत बल्कि दुनिया के कई देशों में आर्थिक असमानता की खाई लगातार चौड़ी हो रही है। गरीबी उन्मूलन के लिए कार्यरत गैर सरकारी संगठन ‘ऑक्सफैम इंटरनेशनल’ ने पिछले महीने विश्व आर्थिक मंच की बैठक में आर्थिक असमानता पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी करते हुए बताया था कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान अमीरी और गरीबी की खाई पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ी है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कई चिंताजनक बातें उभर कर सामने आई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि आर्थिक असमानता के दृष्टिगत पिछले कुछ वर्ष बहुत खराब साबित हुए हैं और विगत चार वर्षों के दौरान कोरोना महामारी, युद्ध और महंगाई जैसे पैमानों ने विश्वभर में अरबों लोगों को गरीब बनाया है। 2020 के बाद से अब तक दुनिया में करीब 5 अरब लोग गरीब हुए हैं। रिपोर्ट में चिंता जताते हुए कहा गया था कि एक ओर जहां गिने-चुने लोगों की बेतहाशा कमाई हो रही है, वहीं दूसरी ओर अरबों लोग गरीब होते जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के शीर्ष 5 अमीरों की दौलत बीते चार वर्षों के दौरान 405 अरब अमेरिकी डॉलर से दोगुनी से अधिक बढ़ कर 869 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई, जिसका स्पष्ट अर्थ है कि इन चार वर्षों के दौरान इन पांच सबसे अमीर लोगों की हर घंटे 14 मिलियन डॉलर (करीब 116 करोड़ रुपये) की कमाई हुई।
ऑक्सफैम के मुताबिक सबसे अमीर लोगों ने सांठ-गांठ वाले पूंजीवाद और विरासत के जरिये बनाई गई सम्पत्ति का एक बड़ा हिस्सा हड़प लिया है जबकि गरीब अभी भी न्यूनतम वेतन अर्जित करने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जो लगातार कम निवेश से पीड़ित हैं। ये बढ़ती दूरियां और बढ़ती असमानताएं महिलाओं और बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं। रिपोर्ट में चिंता जताते हुए कहा गया कि एक ओर जहां दुनिया के कुछ गिने-चुने लोगों की दौलत रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रही है, अमीर लगातार और ज्यादा रईस होते जा रहे हैं, वहीं गरीबों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है, लोगों की आमदनी घट रही है।
ऑक्सफैम का कहना है कि यदि दुनिया के सभी अरबपतियों की नेटवर्थ जोड़ लें तो इसमें 4 वर्ष में कई बड़े देशों की जीडीपी से भी ज्यादा वृद्धि हुई है। दुनियाभर के अरबपतियों की सम्मिलित दौलत पिछले चार वर्षों में 3.3 ट्रिलियन डॉलर बढ़ी है जबकि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत की जीडीपी करीब 3.5 ट्रिलियन डॉलर है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 148 शीर्ष घरानों ने 1800 अरब अमेरिकी डॉलर का मुनाफा कमाया, जो तीन वर्षों के औसत से 52 फीसद अधिक है। जहां अमीर शेयर धारकों को भारी भुगतान किया गया, वहीं करोड़ों लोगों को वास्तविक अवधि के वेतन में कटौती का सामना करना पड़ा। ऑक्सफैम के मुताबिक यदि यही मौजूदा रुझान जारी रहा तो दुनिया से गरीबी आगामी 229 वर्षों तक भी नहीं मिटाई जा सकेगी।
ऑक्सफैम ने सरकारों पर सवाल उठाते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दुनियाभर में निजी क्षेत्र कम कर दरों, व्यवस्था की खामियों और अपारदर्शिता को बढ़ावा दे रहे हैं। करों को लेकर नीति निर्धारण में होने वाली लॉबिंग से कर दरों को कम रखा जा रहा है, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हो रहा है जबकि यही पैसा गरीबों के कल्याण पर खर्च हो सकता था। 1948 में कॉरपोरेट टैक्स ‘ओईसीडी’ (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) देशों में 48 प्रतिशत थे, जो 2022 में घटकर केवल 23.1 प्रतिशत रह गए। ऑक्सफैम इंटरनेशनल के अंतरिम कार्यकारी निदेशक अमिताभ बेहार का दो टूक शब्दों में कहना है कि असमानता की यह स्थिति कोई दुर्घटनावश उत्पन्न नहीं हुई है बल्कि अरबपति वर्ग यह सुनिश्चित कर रहा है कि मौजूदा व्यवस्था बाकी सभी की कीमत पर उन्हें अधिक सम्पत्ति प्रदान करें। उनका सीधा सा आरोप है कि कॉरपोरेट का रवैया और एकाधिकारवादी शक्तियों के कारण ही दुनिया में असमानता बढ़ रही है। दरअसल कामगारों को दबाकर, टैक्स छूट का फायदा लेकर, सरकारी कम्पनियों का निजीकरण करके, जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देकर अमीर लोग अपनी सम्पत्ति को बढ़ा रहे हैं, साथ ही वे सत्ता का दुरुपयोग करके भी हमारे अधिकारों और लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं।
ऑक्सफैम का भारत के संदर्भ में कहना है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है लेकिन यह सबसे असमान देशों में से भी एक है। भारतीय आबादी के शीर्ष 10 फीसद लोगों के पास कुल राष्ट्रीय सम्पत्ति का 77 फीसद हिस्सा है। 2017 में उत्पन्न 73 फीसद सम्पत्ति सबसे अमीर 1 फीसदी के पास चली गई थी जबकि 670 मिलियन भारतीय, जो आबादी का सबसे गरीब आधा हिस्सा हैं, उनकी सम्पत्ति में केवल 1 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी। ऑक्सफैम के अनुसार देश में एक दशक में अरबपतियों की सम्पत्ति करीब 10 गुना बढ़ गई और उनकी कुल सम्पत्ति वित्त वर्ष 2018-19 के लिए भारत के पूरे केंन्द्रीय बजट से अधिक है, जो 24422 बिलियन रुपये थी। कई आम भारतीय अपनी जरूरत की स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच पाने में सक्षम नहीं हैं, जिनमें से 63 मिलियन (हर सैकेंड दो) लोग प्रतिवर्ष स्वास्थ्य देखभाल की लागत के कारण गरीबी में धकेल दिए जाते हैं। भारत सरकार अपने सबसे धनी नागरिकों पर बमुश्किल कर लगाती है, सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल पर इसका खर्च दुनिया में सबसे कम है जबकि अच्छी वित्त पोषित स्वास्थ्य सेवा के स्थान पर इसने तेजी से शक्तिशाली वाणिज्यिक स्वास्थ्य क्षेत्र को बढ़ावा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप अच्छी स्वास्थ्य देखभाल केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध विलासिता है, जिनके पास इसके लिए भुगतान करने के लिए पैसे हैं।
बहरहाल, विश्व के कई अन्य देशों के साथ भारत में भी बढ़ती आर्थिक असमानता काफी चिंताजनक है क्योंकि बढ़ती विषमता का दुष्प्रभाव देश के विकास और समाज पर दिखाई देता है और इससे कई प्रकार की सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियां भी पैदा होती हैं। आर्थिक विषमता आर्थिक विकास दर की राह में भी बहुत बड़ी बाधा बनती है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र जैसी कुछ वैश्विक संस्थाओं के अलावा कुछ देशों की सरकारें भी गरीबी उन्मूलन, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए वर्षों से प्रयासरत हैं लेकिन बेहतर परिणाम सामने आते नहीं दिख रहे। यही कारण है कि ऑक्सफैम द्वारा प्रतिवर्ष दुनियाभर में सरकारों से यह आव्हान किया जाता रहा है कि वे धनी लोगों पर उच्च सम्पत्ति कर लगाते हुए श्रमिकों के लिए मजबूत संरक्षण का प्रबंध करें। दरअसल बड़े औद्योगिक घरानों पर कर लगाकर सार्वजनिक सेवाओं के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकते हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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