फिर भी पुलिस रही बेखबर…क्राइम ब्रांच के अलावा एसटीएफ ने भी जेल से लाकर बनाया था डोजियर
इंदौर। विष्णु उस्ताद हत्याकांड (Vishnu Ustad Massacre) के बाद चर्चा में आए गैंगस्टर सतीश भाऊ (Gangster Satish Bhau) का पुलिस कई बार डोजियर (Dossier) बना चुकी है। हर बार घटना होने के बाद डोजियर (Dossier) बनता है और हर बार उसके डोजियर (Dossier) में गुर्गों की संख्या बढ़ रही है। एक बार फिर गोलीकांड (Shooting) के बाद पुलिस उसका डोजियर (Dossier) बना रही है।
शहर में दस साल से गैंगस्टर सतीश भाऊ (Gangster Satish Bhau) सक्रिय है। उसके खिलाफ शहर के थानों में 26 मामले दर्ज हैं। इनमें वसूली, गुंडा टैक्स, जमीन के मैटर, केबल विवाद और अब शराब अहातों को लेकर वर्चस्व की लड़ाई है। पुलिस ने उसे कल कोर्ट में पेश कर रिमांड पर लिया है। भाऊ के खिलाफ पुलिस अब तक पांच से अधिक बार डोजियर (Dossier) तैयार कर चुकी है, ताकि उसकी आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके। हालांकि हर बार वह वारदात को अंजाम देकर फरार हो जाता और पुलिस डोजियर (Dossier) बनाती रहती। क्राइम ब्रांच (Crime Branch) के अलावा एसटीएफ ने भी कुछ साल पहले उसे जेल से लाकर डोजियर (Dossier) तैयार किया था, जिसमें उसके गुर्गों और मददगारों के नाम, उसके रिश्तेदार, उसकी प्रॉपर्टी, उसके गिरोह के सभी बदमाशों के मोबाइल नंबर का खाका तैयार किया था। बताते हैं कि पहले डोजियर (Dossier) में उसके लगभग दस गुर्गों के नाम थे, लेकिन हर बार इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। बताते हैं कि अब उसकी गैंग में सौ से अधिक छोटे-मोटे बदमाश हैं।
जीतू ठाकुर की हत्या के बाद उसके सभी गुर्गे भाऊ के पाले में
सूत्रों के अनुसार यूं तो विष्णु उस्ताद हत्याकांड (Vishnu Ustad Massacre) के बाद ही भाऊ के कई गुर्गे तैयार हो गए थे, लेकिन महू जेल में जीतू ठाकुर (Jitu Thakur) की हत्या के बाद उसकी गैंग के सभी बदमाश भाऊ के पाले में आ गए। इसके चलते उसके गुर्गों की संख्या बढ़ गई। यही नहीं, उसका नेटवर्क इंदौर के अलावा उज्जैन, देवास, धार और महाराष्ट्र तक फैला हुआ है। बताते हैं कि विष्णु उस्ताद हत्याकांड में ज्यादातर आरोपियों की हत्या हो चुकी है तो कुछ को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। मनोज खापर्डे की लाश नर्मदा में मिली थी तो तरुण साजनानी ने गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। भाऊ और युवराज के बीच महाराष्ट्र के संपर्क के कारण ही समझौता हो गया था।
सिंडिकेट के ऑफिस में आए दिन आता था भाऊ, विजयनगर पुलिस पर उठे सवाल
सिंडिकेट (Syndicate) के जिस ऑफिस में भाऊ ने अहातों को लेकर अर्जुन ठाकुर (Arjun Thakur) को गोली मारी इस ऑफिस में भाऊ आए दिन आता था, लेकिन विजयनगर पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी। उसका खुफिया तंत्र (Intelligence Network) पूरी तरह फेल रहा। गोलीकांड के बाद अस्पताल और सिंडिकेट के ऑफिस में तोडफ़ोड़ के दौरान भी विजयनगर पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही। इस दौरान एएसपी राजेश रघुवंशी को खुद मैदान में उतरकर लट्ठ चलाने पड़े। इसको लेकर भी अफसर विजयनगर थाने से नाराज हैं, जिसके चलते थाने पर गाज गिर सकती है। इसके अलावा सबसे अधिक धोखेबाज एडवाइजरी कंपनियां, ड्रग्स के अड्डे भी इस क्षेत्र में बने हुए हैं। वाहन चोरी और दूसरी वारदातें अलग हैं। ऐसा नहीं है कि यहां किसी गैंगस्टर ने पहली बार वारदात को अंजाम दिया है। इसके पहले सटोरिए संदीप तेल (Sandeep Tel) की भी कुख्यात गैंगस्टर सुधाकर मराठा (Sudhakar Maratha) ने हत्या कर दी थी। एक हत्या तो थाने के ठीक सामने मैदान में हो गई थी, जहां लाश को कचरे में जला दिया गया था। इस मामले में तो मृतक की आज तक शिनाख्त तक नहीं हो सकी है।
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