दो दिन पहले दिनदहाड़े लूट हो गई… वो तो शुक्र मनाओ कि लुटेरों ने केवल शरीर के गहने उतारे…गोलियों से शरीर छलनी नहीं किया… चाकुओं से नहीं गोदा… बुराई में भी भलाई सोचकर यही कह सकते हैं कि जान बची तो लाखों पाए…लुटे गहने भाड़ में जाएं…लेकिन सोचने वाली बात सरकार के लिए…प्रशासन के लिए…पुलिस के लिए… और सारे शहरियों के लिए है… हम पुलिस कप्तान को चाहे जितना कोसें… पुलिस पर चाहे जितनी तोहमतें लगाएं… प्रशासन को निशाना बनाएं, लेकिन पढ़े-लिखे शहर के शहरी होकर भी यदि समस्या की जड़ को नहीं समझ पाएंगे तो लूट-खसोट… हमलों-मौत… चोरी-डाके से कैसे बच पाएंगे…यह सच भी है और गर्व की बात भी है कि इंदौर को बढ़ाने में इंदौरियों ने अपना कर्त्तव्य निभाया… जहां-जहां सरकार और प्रशासन ने हाथ बढ़ाया वहां-वहां हमने सर झुकाया… शहर की स्वच्छता के लिए निगम आगे आया तो हमने अपने हाथों से कचरा उठाया…सड़कें चौड़ी करने के लिए निशान लगाया तो अपने आशियानों पर खुद हथौड़ा चलाया… जहां जिसने जितना टैक्स बढ़ाया हमने सर पर झुकाकर चुकाया… लेकिन उसके बाद भी यदि हमारे इस शहर में भय… मौत… लूटपाट… दहशत… डाकेजनी और अपराध बढ़े हैं… हम असुरक्षित हुए हैं तो उसका कारण पुुलिस नहीं, बल्कि पुलिस फोर्स की कमी है… शहर की जनसंख्या चालीस लाख को पार कर गई है और पांच लाख लोग हर दिन बाहर से इंदौर आते हैं… शहर का घनत्व तीन गुना बढ़कर जहां सांवेर, महू, उज्जैन की सीमाएं छूने लगा है, वहीं बायपास से आगे निकलकर कनाड़िया, बिचौली, नायता मुंडला जैसे गांव को भी शहर में समेट चुका है… हातोद हो या गांधीनगर… देपालपुर हो या गौतमपुरा…पीथमपुर हो या राऊ सभी इंदौर के सीमा क्षेत्र बन चुके हैं…लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि इतने बड़े इंदौर की कानून व्यवस्था को संभालने के लिए पूरे शहर में केवल 4700 जवान हैं… और देहात सांवेर, महू, देपालपुर, गौतमपुरा जैसे ग्रामीण इलाकों के लिए पुलिस फोर्स में मात्र 800 जवान हैं… इससे बड़ी बात यह है कि यह जवान भी दो शिफ्टों में 12-12 घंटे की ड्यूटी करते हैं… यानी एक समय में इनमें से आधे जवान शहर या देहात में मौजूद रहते हैं… इनमें से भी कुछ जवान तो अफसरों की अर्दली में लगे रहते हैं… इन्हीं जवानों के जिम्मे नेताओं की जिम्मेदारी… वीआईपी का प्रोटोकॉल, धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रमों की व्यवस्था से लेकर आंदोलन व प्रदर्शन की ड्यूटी शामिल रहती है… यही आलम यातायात पुलिस का है… पूरे शहर में ट्रैफिक के लिए केवल 600 जवान हैं… जिनमें से आधे यानी 300 जवान एक समय में पूरे शहर का यातायात संभालते हैं…जिनमें कई तो केवल बिगड़ैल चौराहों पर ही डटे रहते हैं… अब मुट्ठीभर नहीं, बल्कि उंगलीभर जवानों के जिम्मे यदि शहर की सुरक्षा होगी तो किसी का भी गला कटना… दम घुटना… लुटना… पिटना और मुफ्त की मौत मरना तय है…अखबार चाहे जितना चिल्लाए…अफसरों पर तोहमत लगाए…पुलिस को भ्रष्ट बताए…जवानों को मक्कार या कामचोर बताए… लेकिन कभी यह समझने में भी बुद्धि लगाए कि सालभर बिना छुट्टी के 12-12 घंटे बेल की तरह जुतकर जो पुलिस का जवान, हवलदार या अफसर काम करेगा वो अपना गुस्सा जनता पर क्यों न निकालेगा और अपराध पर कैसे अंकुश लगा पाएगा…नेता हों या मंत्री यदि बिगड़ते यातायात और चरमराती कानून व्यवस्था पर उंगली उठाने के बजाय पुलिस बल बढ़ाने… बढ़ते शहर की जरूरतों को पूरा करने में अपनी शक्ति और सामर्थ्य का उपयोग करते…उंगली उठाने वाले सरकार से सवाल पूछते… कार्यक्रमों में तालियां बजाने के बजाय शहर की सुरक्षा पर सवाल उठाते तो जान और जहान दोनों सुरक्षित रहते… शहर के विस्तार…. विकास और विन्यास का जिम्मा उठाने वाले इंदौर के प्रभारी स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं…जनता और जनप्रतिनिधि अपराध की जड़ को समझें…. पुलिस महकमे में इजाफा करवाएं तो शहर सुरक्षित रह पााए … इंदौर में पुलिस कमिश्नरी तो लागू कर दी… अफसरों की कतार लगा दी… अब अफसर जवानों की ड्यूटी कर रहे हैं… यदि शहर शांत और सुरक्षित न रहा तो इंदौर में जितने बड़े-बड़े कारोबारी आ रहे हैं…देश के नामी-गिरामी स्कूल… अस्पताल खुलते जा रहे हैं…ज्वेलरी के ब्रांडेड शोरूम जगमगा रहे हैं… कार्पोरेट सेक्टर कदम बढ़ा रहे हैं… हैदराबाद, बेंगलुरु छोड़कर आईटी वाले इंदौर आ रहे हैं…बड़े-बड़े शोरूम… मॉल.. होटल सब इस शहर को अपनाने की होड़ मचा रहे हैं… लेकिन यदि कानून का खून इस शहर में नजर आएगा… तो हर कोई उलटे पैर लौट जाएगा…
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