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कश्मीर में वंशवादी राजनीति का अगला दौर, नेताओं के तीसरी-चौथी पीढ़ी के बच्चे लड़ रहे

August 31, 2024

डेस्क: वंशवाद (Dynasticism) की राजनीति (Political) लोगों में चर्चा के लिए पसंदीदा विषय है. वंशवादी राजनीति की शुरुआत देश के सबसे उत्तरी राज्य जम्मू और कश्मीर (Jammu and Kashmir) से होती है, जहां दो परिवारों, अब्दुल्ला और मुफ्ती ने दशकों से सार्वजनिक जीवन पर दबदबा बनाए रखा है. कश्मीर में इस समय चुनावी माहौल है. राजनीतिक वंशजों की नई पीढ़ी यहां के अशांत राजनीतिक परिदृश्य में अपनी जगह बनाने के लिए तैयार है. इनके कंधों पर अपने प्रभावशाली माता-पिताओं की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है.

जम्मू-कश्मीर का प्रमुख राजनीतिक परिवार अब्दुल्ला हैं, जिनकी तीन पीढ़ियों में कम से कम चार मुख्यमंत्री रहे हैं. अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) नेता उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. जबकि उनके पिता फारूक अब्दुल्ला 2009 और 2014 के बीच यूपीए-2 सरकार में केंद्रीय मंत्री होने के अलावा कई बार राज्य की कमान संभाल चुके हैं. उमर के दादा शेख अब्दुल्ला हैं जिन्हें लोकप्रिय रूप से ‘शेर-ए-कश्मीर’ (कश्मीर का शेर) कहा जाता है, उन्होंने कश्मीर के प्रधानमंत्री और बाद में मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने से पहले एनसी की स्थापना की थी.

राज्य की शीर्ष कुर्सी से परिवार के संबंध यहीं खत्म नहीं होते हैं. फारूक के बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह 1980 के दशक में मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इसके अलावा, शेख अब्दुल्ला के भाई, शेख मुस्तफा कमाल ने राज्य में मंत्री के रूप में कार्य किया. जबकि फारूक के चचेरे भाई शेख नजीर, एनसी के सबसे लंबे समय तक सेवारत महासचिव थे. उन्होंने लगभग तीन दशकों तक इस पद पर काम किया था. 2015 में उनका निधन हो गया. पूर्व सीएम और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला इस बार विधानसभा चुनाव में गांदरबल से लड़ रहे हैं.


अब्दुल्ला परिवार के बाद कश्मीर में कोई दूसरा ताकतवर राजनीतिक परिवार है तो वो मुफ्ती हैं. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं. मोहम्मद सईद पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री भी रहे. जब मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हुआ तो पार्टी की कमान उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने संभाल ली. पार्टी ने उन्हें पिता की जगह मुख्यमंत्री पद पर भी नियुक्त किया. बेटी महबूबा मुफ्ती के बाद सईद के बेटे, सिनेमैटोग्राफर, तसद्दुक मुफ्ती ने भी राजनीति में कदम रखा. मुफ्ती परिवार की राजनीति में नवीनतम प्रवेशकर्ता हैं महबूबा मुफ्ती की बेटी और मुफ्ती मुहम्मद सईद की नातिन इल्तिजा मुफ्ती. इस चुनाव में शायद सभी नवोदितों में वह सबसे हाई-प्रोफाइल हैं. कई मुद्दों पर अपने स्पष्ट और सशक्त विचारों के साथ, विशेष रूप से अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, इल्तिजा ने पहले ही कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी छाप छोड़ दी है. इल्तिजा ने दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग की बिजबेहरा सीट से नामांकन भरा है.

मियां मेहर अली, सांसद मियां अल्ताफ अहमद के बेटे हैं. मेहर अली कंगन (गांदरबल की एक तहसील) की राजनीति में अपने परिवार की चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनका राजनीति में आना इलाके में खानदान के मजबूत दबदबे का भी संकेत है. कंगन में एक मजबूत आधार और जड़ें होने के कारण, मेहर से उम्मीद की जाती है कि वह पारिवारिक परंपरा को जारी रखेंगे. साथ ही अपने निर्वाचन क्षेत्र के निवासियों के सामने आने वाली मौजूदा चुनौतियों से भी निपटेंगे.

सलमान सागर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के महासचिव और पूर्व मंत्री अली मुहम्मद सागर के बेटे हैं. सलमान सागर कश्मीर के राजनीतिक ढांचे में अपने परिवार की पकड़ को और मजबूत करने के लिए तैयार हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण ताकत है. यह देखते हुए पार्टी रैंक में सलमान के चढ़ने का मतलब है सागर परिवार द्वारा राजनीति में अधिक वर्षों तक सेवा करने का मौका मिलना. उनकी युवा ऊर्जा और आधुनिक दृष्टिकोण नेशनल कॉन्फ्रेंस के दृष्टिकोण में नए जोश का संचार कर सकता है. उनकी वजह से यह पार्टी ज्यादा से ज्यादा युवाओं को अपनी ओर आकर्षक कर सकती है. वह हजरतबल से एनसी की उम्मीदवार हैं.

गुलाम कादिर परदेसी के बेटे अहसान परदेसी लचीलेपन और कुछ कर सकने वाले रवैये के ट्रैक रिकॉर्ड के साथ राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं. एक नौकरशाह से राजनेता बने उनके पिता अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए जाने जाते थे, जो राजनीतिक पक्षों को तुरंत बदल देते थे. अहसान के राजनीति में प्रवेश को तब से दिलचस्पी के साथ देखा जा रहा है जब से उन्हें अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में माना जाने लगा है. जो या तो अपने पिता की व्यावहारिकता को जारी रखेंगे या अधिक वैचारिक सामंजस्य के साथ राजनीति में नए आधार बनाएंगे. यह देखना बाकी है कि वह कश्मीर की खतरनाक राजनीतिक स्थिति से कितनी अच्छी तरह निपट सकते हैं. अहसान परदेसी नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रादेशिक उपाध्यक्ष हैं और वह श्रीनगर की लाल चौक सीट से मैदान में हैं.

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