मुंबई। कोरोना (Corona) के संक्रमण में रामबाण की तरह काम आने वाली दवा रेमडेसिविर (Remdesivir) की जरूरत पूरे देश में है। हालात ये हैं कि इसकी जरुरत और लोगों की परेशानी का फायदा उठाकर इसकी कालाबाजारी होने के कई मामले सामने आए हैं। यहां तक कि नकली रेमडेसिविर की खेप भी मिली है। हालात पर काबू पाने के लिए अब जिलाधिकारी की निगरानी में इस दवा का वितरण करना शुरू किया गया है। मुंबई से सटे पालघर में दवा निर्माण में लगी एक कम्पनी बिना किसी छुट्टी के रात-दिन प्रोडक्शन करके लोगों की जरूरत पूरा कर रही है।
देश में 7 कंपनियां ही कोरोना संक्रमण में कारगर मानी जाने वाली दवा रेमडेसिविर का उत्पादन (Production) करती हैं। ये कम्पनियां अपना रॉ मटेरियल जॉब वर्क के लिए इन्जेकशन बनाने वाली कम्पनियों को देती हैं। पालघर जिले की कमला लाइफ लाइंस लिमिटेड भी रेमडेसेविर बनाने वाली कंपनी के लिए काम करती है। बता दें कि जॉब वर्क करने वाली कंपनी की अहमियत इसलिए ज्यादा होती है क्योंकि दवा का अंतिम रुप और पैकेजिंग यही करती हैं। सिप्ला कंपनी की तरफ से बनाए जाने वाले रेमडेसिविर का निर्माण करने वाली कमला लाइफ साइंस रोजाना 90 हजार से 1 लाख इन्जेक्शन बना रही है। कंपनी इस तैयारी में है कि यदि जरुरत पड़ी तो एक महीने में 50 लाख इंजेक्शन तक बनाए जा सकें।
कंपनी के सीएमडी डी.जे.जवार कहते हैं कि रेमडेसिविर इंजेक्शन के निर्माण की पूरी प्रक्रिया बहुत जटिल और लंबी है। निर्माण से लेकर पैकेजिंग और ट्रांसपोटेशन तक इसमें कुल 10 स्टेप्स हैं। इसके उत्पादन का ज्यादातर काम ऑटोमेटिक मशीनों से होता है। प्रोडक्शन यूनिट की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है। यहां दवा के लिए सॉल्यूशन को तैयार करने उसे अलग गेट से अंदर भेजा जाता है, जबकि कंपनी के कर्मचारी अलग गेट से जाते हैं।
सबसे पहले रेमडेसिविर इंजेक्शन के सॉल्यूशन को बनाया जाता है फिर इंजेक्शन भरने की शीशियों को हाई एंड मशीन से साफ किया जाता है और उन्हें मशीनों के जरिए ही सुखाया जाता है। इसके बाद इसमें रेमडेसिविर का सॉल्यूशन भरने का काम भी मशीनों से ही होता है। शीशी की डबल कैपिंग होती है और फिर इसे सील किया जाता है। सॉल्यूशन भरने के बाद शीशियों के बाहरी हिस्से को धोया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में कोई भी व्यक्ति इन शीशियों को छू भी नहीं सकता है। यह सारा काम मशीनों से ही होता है।
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