नई दिल्ली । तापमान में गिरावट और आंदोलन में महिलाओं की बढ़ती संख्या के बाद सिंघु बॉर्डर अब टेंट सिटी का रूप ले चुका है। कड़ाके की ठंड से बचने के लिए आशियाना नहीं होने पर शामियाना में ही खुद को महफूज रख रहे हैं। 26 दिनों से कृषि कानूनों को रद्द कराने की मांग पर डटे किसानों के लिए दिल्ली-हरियाणा राजमार्ग पर ट्रॉलियां अब सोने के लिए पसंदीदा जगह बन गई हैं। अपनी अपनी ट्रॉली को ठंड और बारिश से बचाने के लिए तैयार कर लिया गया है ताकि रात के वक्त किसी को ठिठुरती सर्दी का अहसास न हो।
10 दिन पहले बॉर्डर पर करीब 50 टेंट बनाए गए थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर 200 से अधिक हो चुकी है। अलग अलग आकार और रंग के साथ अंदर सुविधाएं भी जरूरत के मुताबिक हैं। एक टेंट में दो बच्चों के साथ तीन से पांच व्यस्कों के लिए जगह है। ट्रॉली में अगर अधिक जगह हो तो आठ-10 पुरुषों के लिए भी यह पर्याप्त है।
किसानों का कहना है कि तीन हफ्ते से अधिक वक्त हो गए हैं, इसलिए अब ट्रॉलियों में रहने की आदत हो चुकी है। अगर, अधिक लोगों के साथ साझा जरुरत होती है तो इसके लिए भी इंतजाम किए गए हैं। जतिन सिंह ने बताया कि एक वाटर प्रूफ टेंट में छह लोगों के लिए जगह है। एक टेंट के लिए 1,000 रुपये की सिक्योरिटी जमा करवाने के लिए शाम छह बजे से सुबह तक के लिए सोने या बैठने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। स्वयंसेवी संस्था हेमकुंट फाउंडेशन की ओर से वाटर-प्रूफ टेंट, गद्दे और कंबल की सुविधा तो पेट्रोल पंप पानी नहाने, फोन-लैपटॉप चार्ज करने की भी सुविधा है।
मोगा निवासी 65 वर्षीय बलवीर सिंह ने कहा कि एक सप्ताह हो गया है, लेकिन टेंट में किसी तरह की परेशानी नहीं हो रही है। टेंट को कवर कर दिए जाने की वजह से ठंड की चिंता नहीं है। टेंट में अपने सामान रखने के बाद लंगर खाने, लोगों से बातचीत या आंदोलन के सिलसिले में बाहर निकलने के बाद फिर टेंट में आराम फरमाते हैं।
महिलाओं के लिए टेंट अधिक सुविधाजनक
कई महिला प्रदर्शनकारियों के लिए टेंट बेहद सुविधाजनक है। ट्रैक्टर ट्रॉली में ठंड की चिंता होती थी। बठिंडा निवासी रमनप्रीत कौर, सुखविंदर कौर ने कहा कि टेंट की सुविधा से उन्हें काफी राहत मिली है। टेंट में हवा बेशक कम है, लेकिन मच्छरों से बचाव के लिए भी इंतजाम है। पंजाब-हरियाणा से किसानों के साथ साथ महिलाएं और बच्चे भी समर्थन में काफी संख्या में पहुंच रहे हैं।
पानी इकट्ठा होने से बढ़ी परेशानी, मच्छरों से भी खतरा
सिंघु बॉर्डर पर टॉयलेट और गंदगी एक गंभीर समस्या बनने लगी है। लंगर या जरूरी काम के बाद निकलने वाले कचरे को फेंकने के लिए लगातार सेवादार भी जुटे रहते हैं, बावजूद इसके संख्या अधिक होने की वजह से बुनियादी सुविधाओं की कमी से किसानों को रोजाना रूबरू होना पड़ रहा है।
दिल्ली की सीमा में तो सरकार की ओर से मोबाइल टॉयलेट्स लगवाए गए हैं, लेकिन हरियाणा के हिस्से में संख्या काफी कम है। ऐसे में सुबह या रात के वक्त लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अधिक दिनों तक गंदा पानी आसपास इकट्ठा रहा तो मच्छर के पनपने सहित दूसरी बीमारियां फैलने की भी आशंका जताई जा रही है।
दिल्ली सरकार की ओर से मोबाइल टॉयलेट की तो सुविधा मुहैया की गई हैख् लेकिन कई बार वहां पानी की कमी और गंदगी की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ता है। गंदे पानी के इकट्ठा होने से पैदा होने वाले मच्छरों के बारे में एक युवक ने कहा कि इसके लिए इंतजाम किए गए हैं। रात के वक्त लकड़ियां जलाने के बाद काफी राहत मिलती है।
पेट्रोल पंप-गेस्ट हाउस के टॉयलेट का भी कर रहे हैं इस्तेमाल
आसपास के पेट्रोल पंप, गेस्ट हाउस सहित तमाम वाणिज्यिक परिसरों के टॉयलेट्स भी समर्थकों के लिए खोल दिए गए हैं। बावजूद इसके संख्या अधिक होने और इसकी सफाई के लिए उचित व्यवस्था न होने की वजह से मुश्किलें बनी हुई हैं।
आसपास के घरों में महिलाओं के लिए जरूरी सुविधा
कुंडली के कुछ घरों में महिलाओं के लिए बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया करवाई गई हैं ताकि समर्थकों को किसी तरह की परेशानी न आए। आसपास के ग्रामीणों के साथ होने की वजह से मुश्किलों का सामना आसानी से कर पा रहे हैं। एक किसान ने बताया कि उन्हें कई बार पानी की कमी का भी सामना करना पड़ रहा है। पानी के टैंकर का सभी कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है जबकि पीने के लिए लंगर में बिमनरल वॉटर हैं।
मिल जुलकर करते हैं सफाई
हजारों की संख्या में लोगों की मौजूदगी से रोजाना पैदा होने वाले कचरे को हटाने के लिए बड़े बड़े डस्ट बिन्स लगाए गए हैं। लंगर के बाद इनमें कचरा इकट्ठा होता है, लेकिन हर घंटे काफी कचरा पैदा होता है, जिनकी सफाई के लिए निगम कर्मी दोपहर के वक्त तो पहुंचते हैँ। इसके बाद समर्थक ही मिल जुलकर सफाई करते हैं।
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