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    ‘किल’ फिल्म का नाम होना चाहिए था -‘छोटा एनिमल’

  • July 06, 2024

    फिल्म समीक्षा ‘किल’

    कभी रोमांटिक फिल्में बनाने के लिए मशहूर धर्मा प्रोडक्शन (Dharma Production) की प्योर एक्शन फिल्म है ‘किल’ (‘Kill’)। ट्रेन एक्शन थ्रिलर (Train action thriller) । फिल्म के अधिकांश कलाकार नए हैं। स्थापित कलाकारों में आशीष विद्यार्थी, हर्षा छाया ही हैं। यह पूरी फिल्म एक रात की, एक ट्रेन यात्रा की, ट्रेन के दो-तीन डिब्बों में तीन घंटे चले घटनाक्रम की कहानी है। यह पहली हिंदी फिल्म (Hindi movie) है, जिसे हॉलीवुड के निर्देशक जॉन क्विक ने अंग्रेजी में बनाने का ऐलान किया है। एकाध को छोडक़र इस फिल्म में कोई रोमांटिक सीन, नाच-गाना, डायलॉगबाजी, किसिंग सीन आदि नहीं हैं। निर्देशक निखिल नागेश भट्ट का कहना है कि 2016 में उन्होंने रांची-पुणे ट्रेन में ऐसी ही एक डकैती देखी थी और उसी से प्रभावित होकर इस फिल्म को बनाया गया है।


    यह एक एक्शन फिल्म है तो हीरो को कमांडो के रूप में पेश करना जरूरी और मजबूरी थी। हीरो अपने एक कमांडो साथी को लेकर प्रेमिका की पटना से दिल्ली की ट्रेन में सेकंड ऐसी डिब्बे में चढ़ा है। ट्रेन में करीब बीस बिहारी-झारखंडी डाकू घुस आए हैं। इनके पास चाकू, खुखरी, कटार जैसे ट्रेडिशनल और पुराने हथियार हैं और उन्होंने ट्रेन के डिब्बों के बीच में लगे शटर को बंद कर ताला लगा दिया है। ट्रेन की सुरक्षा जंजीर को काट दिया है, ताकि कोई यात्री ट्रेन को रोकने में कामयाब नहीं हो सके। और साथ ही अपने साथ लाए गए जैमरों से मोबाइल नेटवर्क जाम कर दिया है, ताकि निर्बाध होकर लूटपाट कर सकें।

    अब ट्रेन में डकैती के दौरान क्या-क्या होता है, इसी पर फिल्म है। कमांडो की प्रेमिका का परिवार भी ट्रेन में है और कमांडो भी कोई ऑर्डिनरी कमांडो नहीं है, बल्कि एनएसजी का कमांडो है तो उसकी शक्ति, अक्ल, त्वराबुद्धि, निपुणता डाकुओं से कहीं ज्यादा है। लेकिन कमांडो केवल दो हैं और डाकुओं की संख्या दस गुनी। डाकू अपने और साथियों को भी ट्रेन रुकवाकर बुला लेते हैं। अब लड़ाई होती है दो और 40 के बीच। समझ सकते हैं कि भारतीय सेना के कमांडो किसी की जान बचाने पर आएं तो क्या-क्या हो सकता है। कमांडो के पास हथियार नहीं हैं, इसलिए वे बदमाशों के हथियार छीनते हैं और हर उस चीज का उपयोग करते हैं, जो ट्रेन में उपलब्ध है। चाहे वह चादर, ट्रेन का हत्था, टॉयलेट में मग बांधने की चेन, फायर एक्सटिंविशर, इमरजेंसी में यात्रियों की सहायता के लिए कांच फोडऩे की हथौड़ी आदि ही क्यों न हो।

    करीब पौने दो घंटे की इस फिल्म में दर्शक को लगता है कि वह सिनेमाघर में नहीं, बल्कि ट्रेन के डिब्बे में है। शूटिंग असली ट्रेन में नहीं, बल्कि स्टूडियो में बनाई गई ट्रेन में, जो हूबहू ट्रेन का आभास देती है। फिल्म में वीएफएक्स का इस्तेमाल नहीं किया गया है, ताकि असली लगे। लाइट और साउंड का उपयोग करके ट्रेन को असली दिखाने की कोशिश की गई है। कलाकारों में नया हीरो लक्ष्य लालवानी, राघव जुयाल, तान्या मानिकतला, अभिषेक चौहान, अद्रिजा सिन्हा आदि प्रमुख हैं। अगर आपको एक्शन में रुचि हो तो ही यह फिल्म देखें। धर्मा प्रोडक्शन के नाम पर यह फिल्मी तांडव अझेलनीय है।
    डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी

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