इंदौर, राजेश ज्वेल। चुनाव आयोग लाख मतदाताओं को ना खरीदने से लेकर चुनावी खर्च पर अंकुश के दावे करता रहा हो, मगर हर चुनाव में तय की गई सीमा से सैकड़ों गुना अधिक राशि खर्च की जाती है, जो एक सामान्य मतदाता को भी साफ-साफ नजर आता है। इस बार का विधानसभा चुनाव अब तक का सबसे महंगा साबित हुआ, जिसमें उम्मीदवारों के साथ-साथ दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों कांग्रेस और भाजपा ने पानी की तरह करोड़ों रुपए सत्ता हासिल करने के लिए बहा दिए। एक मोटे अनुमान के मुताबिक 3 हजार करोड़ से ज्यादा का कालाधन इंदौर सहित प्रदेश की सभी 230 सीटों पर बहाया गया है। इन सीटों पर दोनों प्रमुख दलों के कुल उम्मीदवार 460 होते हैं और एक उम्मीदवार का चुनावी खर्च 4 से 5 करोड़ रुपए भी औसत माना जाए तो 2300 करोड़ रुपए का आंकड़ा आता है, जबकि कई सीटें ऐसी रहीं, जिन पर उम्मीदवारों को 10-20 करोड़ से लेकर 25-50 करोड़ तक खर्च करना पड़े। जैसे इंदौर में विधानसभा एक का चुनाव सबसे खर्चीला साबित हुआ है। इसके अलावा राजनीतिक दलों ने हेलीकॉप्टरों, चुनावी रैलियों, रोड शो, स्टार प्रचारकों सहित अन्य प्रचार-प्रसार, मीडिया पर भी करोड़ों रुपए की राशि खर्च की और यह पूरा पैसा दो नम्बर का यानि कालाधन ही रहा।
जब भी चुनाव आते हैं तो बाजार में जमा कालाधन भी बाहर आ जाता है, जिससे कई वर्ग को अच्छा कामकाज भी मिल जाता है। अब वे दिन गए जब सेंव-परमल खाकर कार्यकर्ता काम करता था। अब सारे कार्यकर्ताओं को गाडिय़ों के साथ-साथ पेट्रोल-डीजल तो लगता ही है, वहीं दोनों वक्त चाय-नाश्ता, भोजन के साथ नकद राशि भी उम्मीदवारों को देना पड़ती है। इसके अलावा समाज के ठेकेदारों के साथ-साथ निर्दलीय, बागी या अन्य असंतुष्टों को मनाने पर भी लाखों खर्च हो जाते हैं। चुनाव आयोग ने भले ही एक उम्मीदवार के लिए 40 लाख रुपए की सीमा खर्च की तय की हो और सारे उम्मीदवार आयोग की आंखों में धूल झोंकते हुए इससे कई गुना अधिक राशि नए-नए तरीकों को इजाद कर खर्च कर देते हैं और अपना चुनावी खर्च 40 लाख तो छोड़ 10-20 लाख भी नहीं बताते। अभी भी इंदौर के जिन उम्मीदवारों ने चुनावी खर्च का ब्योरा दिया है, उसे देखकर ही अंदाजा लग जाएगा कि किसी एक ने भी 35-40 लाख रुपए खर्च होना नहीं बताए हैं, जबकि यह सभी को पता है कि एक उम्मीदवार का चुनाव भी कम से कम 4 से 5 करोड़ खर्च करना मामूली बात है। हालांकि एक बड़ी राशि चुनावी चंदे के रूप में उगाही जाती है, वहीं कई सक्षम उम्मीदवारों को अपनी जेब भी ढीली करना पड़ती है। चुनाव प्रचार-प्रसार अत्यंत महंगा हो गया है, वहीं मीडिया का भी खर्च बढ़ गया है, क्योंकि अखबारों के साथ-साथ ढेर सारे न्यूज चैनल, पोर्टल सहित सोशल मीडिया भी शामिल है। यहां तक कि अधिकांश उम्मीदवारों ने अपनी खुद की आईटी सेल और मैनेजमेंट टीम बनाकर भी प्रचार-प्रसार पर मोटी राशि खर्च की, वहीं हेलीकॉप्टर भी खूब उड़े और चुनावी रथ तो दौड़े ही। विज्ञापनों, होर्डिंग पर भी करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए। यह अब तक का सबसे महंगा चुनाव मध्यप्रदेश में लड़ा गया।
चुनाव आयोग की आंखों में सभी ने भरपूर झोंकी धूल
चुनाव आयोग लाख आचार संहिता का पालन करवाने से लेकर शराब, नकद और अन्य उपहार बांटने पर निगाह रखने के दावे करे मगर इस चुनाव में भी भरपूर शराब, मोबाइल, साडिय़ों, पायजेब से लेकर अन्य उपहार और नकद राशि बांटी गई। आयोग ने 1760 करोड़ रुपए की शराब, महंगी धातु, नकदी और अन्य मध्यप्रदेश सहित 5 राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान जब्त करना बताए। मगर इनमें से 90 फीसदी से अधिक जब्ती ऐसी है जो सामान्य दिनों में भी हो जाती है। मगर चूंकि चलते चुनाव में की गई, तो उसे आचार संहिता से जोड़ दिया गया। जबकि एक भी कोई बड़ी जब्ती किसी उम्मीदवार या दल की आयोग ने उजागर नहीं की। अलबत्ता व्यापारियों से लेकर अन्य लोग इन जब्तियों के चलते परेशान अवश्य हुए और आयोग की आंखों में धूल झोंकते हुए राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों ने करोड़ों रुपए चुनावी खर्च में बहा दिए। और आयोग ने यह भी दावा किया कि पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 7 गुना अधिक जब्ती की गई। जबकि हकीकत सामान्य मतदाता को भी पता है कि उसके क्षेत्र से चुनाव लड़ रही पार्टी या उम्मीदवार ने किस कदर कालाधन चुनाव जीतने के लिए खर्च किया है और आयोग किसी एक को भी पकड़ नहीं सका।
गरीब तबके की मनी दीपावली… उपहारों के साथ मिली नकदी भी
इस बार प्रदेश में 17 नवम्बर को मतदान हुई और उसके चार दिन पहले 12 नवम्बर को दीपावली थी, जिसके चलते गरीब तबके से लेकर कार्यकर्ताओं की इस बार अच्छी दीपावली मनी। उम्मीदवारों से भरपूर उपहारों के साथ नकदी भी मिली। एक-एक परिवारों को चार से 5 हजार रुपए तो आसानी से प्राप्त हो गए। विभिन्न समाजों, संघों से लेकर संगठनों द्वारा मिलन समारोह भी आयोजित किए गए, जिसमें खाना खिलाने के साथ-साथ शराब पार्टियां भी दी गई। वहीं थोक में वोट डलवाने वाले ठेकेदारों को भी मोटे लिफाफे मिले, तो जनसम्पर्क के दौरान खुद का ही स्वागत-सत्कार करवाने के लिए भी राशि बांटना पड़ी और टिका आरती करने पर थाली में 500-500 रुपए के नोट भी कई उम्मीदवारों ने डाले।
500 करोड़ तो चुनाव करवाने पर ही खर्च हो गए आयोग के
सरकार द्वारा चुनाव आयोग को राशि मुहैया कराई जाती है, ताकि विधानसभा-लोकसभा के चुनाव कराए जा सकें। अभी मध्यप्रदेश की 230 सीटों पर लगभग 500 करोड़ रुपए की राशि तो आयोग की ही खर्च हो जाएगी। एक जिले में ही 20 से 25 करोड़ रुपए का खर्च मतदान से मतगणना तक आसानी से हो जाता है, जिसमें चुनावी प्रशिक्षण, मतदान केन्द्रों को तैयार करवाने, चुनावी ड्यूटी कर रहे अधिकारियों-कर्मचारियों का मानदेय, जो कि इंदौर में ही अभी मतगणना के वक्त 1 करोड़ 17 लाख रुपए दिया गया। इसी तरह वीडियोग्राफी, कम्यूनिकेशन, सुरक्षा से लेकर अन्य खर्च भी होते हैं। इंदौर में ही 20 से 25 करोड़ रुपए जिला निर्वाचन कार्यालय यानी प्रशासन के खर्च होंगे। वहीं 230 सीटों पर यह राशि 500 करोड़ तक पहुंच जाएगी।
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