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जितनी क्षमता उतने मरीज, बढ़ाएंगे एंटीबॉडी

July 26, 2020


सचिव का संदेश… अब डरें नहीं महामारी से लड़ें
कोरोना का इलाज ही कोरोना है… जितने संक्रमित होकर ठीक हुए वो भय और बीमारियों दोनों से मुक्त
इंदौर। कोरोना का इलाज ही कोरोना है… जो मरीज कोरोना संक्रमित होकर ठीक हुए उनमें ऐसी एंटीबॉडी विकसित हो गई है कि वह अब कोरोना से लड़ाई करने में सक्षम हैं। ऐसे लोग न केवल बीमारी से मुक्त हुए, बल्कि भय से भी मुक्त हो गए। ऐसे में कोरोना जैसी बीमारी जिस किसी के शरीर में आएगी वो इलाज के बाद एंटीबॉडी के सहारे आगे का जीवन आसानी से जी सकेगा। इसलिए प्रशासन भी तब तक बेफिक्र है, जब तक अस्पतालों की क्षमता तक की स्थिति में मरीज आए, ताकि उन्हें ठीक कर उनमें रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता यानी एंटीबॉडी विकसित कर उन्हें भयमुक्त जीवन दिया जा सके। साथ ही उनके रक्त में मौजूद एंटीबॉडी प्लाज्माथैरेपी के लिए अन्य मरीजों के काम आ सके। कल इंदौर आए अपर मुख्य सचिव ने भी इसी तरह के संकेत देते हुए कहा कि फिलहाल इंदौर में लॉकडाउन की जरूरत नहीं है और वर्तमान स्थिति से 6 गुना मरीजों की क्षमता अस्पतालों में मौजूद है।
कोरोना महामारी से भयमुक्त होने के लिए शरीर में इम्युनिटी और एंटीबॉडी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता होना आवश्यक है। इम्युनिटी तो खान-पान और जीवनशैली से विकसित की जा सकती है, लेकिन एंटीबॉडी तब ही विकसित होती है जब कोई व्यक्ति कोरोनाग्रस्त होने के बाद ठीक हो जाए। वर्तमान में कोरोना के ए सिम्टोमेटिक यानी बिना लक्षण वाले मरीजों की तादाद बड़ी संख्या में नजर आ रही है। इन मरीजों का उपचार मात्र गर्म पानी से लेकर विटामिन की गोलियों और साधारण एंटीबॉयोटिक से हो रहा है। ऐसे में यदि कोरोना के मरीज आते भी हैं तो उनका इलाज कर उनमें एंटीबॉडी डेवलप की जा सकती है। एक बार मरीज के ठीक होने के बाद उसे दोबारा संक्रमण की आशंका शिथिल हो जाती है। इसलिए यदि अस्पतालों की क्षमता के अनुसार मरीज आते भी हैं तो उन्हें कोरोना से लडऩे लायक बनाकर समाज के बीच भयमुक्त जीवन के लिए छोड़ा जा सकता है। इसी मंशा के चलते अब प्रशासन और सरकार भी कोरोना से डरने के बजाय लडऩे की तैयारी में जुटी है। इसके लिए प्रशासन द्वारा त्रिस्तरीय तैयारी की जा रही है, जिसके तहत अस्पतालों के अलावा होम आइसोलेशन को भी प्रभावी बनाया जा रहा है।
पहले दौर में जितने संक्रमित इलाके मिले वहां से मरीजों का आना बंद
कोरोना का इलाज ही कोरोना है…यह तथ्य इस बात से साबित होता है कि मार्च से लेकर अप्रैल माह में जितने संक्रमित इलाके मिले वहां से मरीजों का आना बंद हो गया है। इनमें बड़ी तादाद मेें मुस्लिम इलाके शामिल थे। इन्हीं इलाकों में शामिल टाटपट्टी बाखल में पथराव और विद्रोह की स्थिति भी बनी थी और यहां से बड़ी तादाद में मरीज निकले थे, लेकिन अब इन इलाकों से मरीजों का आना लगभग थम सा गया है। उसका कारण यह है कि जितनी तादाद में मरीज निकले थे उतनी ही तादाद में ठीक हुए और उनमेें एंटीबॉडी डेवलप हो गई, जो कोरोना से लडऩे में सक्षम है।
पता ही नहीं चला और बन गई एंटीबॉडी
दुनियाभर में कोरोना से बचने के लिए बेहतर इम्युनिटी को ही माना गया है। अभी चूंकि बड़ी संख्या में एसिम्टोमेटिक मरीज भी मिल रहे हैं, जिनमें जिनमें कोई लक्षण नहीं है, लेकिन वे पॉजिटिव हो गए। वहीं कई लोगों को संक्रमण हो गया और उन्हें पता भी नहीं चला। इसे एंटीबॉडी यानी हर्ड इम्युनिटी विकसित होना कहते हैं। नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल ने पिछले दिनों दिल्ली में यह सर्वे किया। इसमें लगभग 23 प्रतिशत आबादी में हर्ड इम्युनिटी यानी एंटीबॉडीज पाई गईं। इसी तरह अहमदाबाद में 40 प्रतिशत और मुंबई में भी 33 प्रतिशत हर्ड इम्युनिटी मिली है।
वैक्सीन भी वही काम करेगी जो मरीज के ठीक होने से होता है
वैक्सीन पता नहीं कब आएगी… इलाज ही वैक्सीन बन जाएगी
दुनिया के कई देश वैक्सीन बनाने में जुटे हैं। ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन सितम्बर तक तो भारत की वैक्सीन के नए साल में आने का दावा किया जा रहा है, लेकिन यह कब बनेगी और कब तक लोगों तक पहुंचेगी यह अभी तक तय नहीं है। साथ ही यह कितनी असरकारक होगी यह भी पता नहीं है, लेकिन कोरोना को परास्त कर रिकवर होने वाले मरीजों के शरीर में बनने वाली एंटीजन या हर्ड इम्युन वही काम करेगी जो वैक्सीन करेगी। वैक्सीन लगाने के बाद भी शरीर में एंटीबॉडी तैयार होती है जो रोग को विकसित होने और फैलने से रोकती है। हालांकि अभी यह भी पता नहीं है कि बनाई जा रही वैक्सीन में मौजूद एंटीबॉडी कितने समय तक काम कर पाएगी। कुछ वैक्सीन निर्माताओं का दावा है कि इस वैक्सीन का असर कम से कम दो साल रहेगा तो कुछ इसके समय निर्धारण के बारे में कुछ कह नहीं पा रहे हैं। ऐसे में वैक्सीन को लगातार लगाना पड़ेगा और यदि वैक्सीन नहीं आती है तो कोरोना का इलाज ही वैक्सीन बन जाएगा, क्योंकि जितने लोगों को कोरोना हुआ है उनके ठीक होने के बाद जब उनके ब्लड सैम्पल लिए गए तो उनमें एंटीबॉडी पाई गई। अब उन्हीं मरीजों के रक्त से प्लाज्मा निकालकर इलाज किया जा रहा है।

 

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