मत कुरेदो जख्म मवाद बह जाएगा…बरसों से दफन है दर्द चीखों में बदल जाएगा…देश में उठते नफरत के गुबार…मस्जिदों में शिवलिंग खोजती निगाहें और एक वर्ग की बढ़ती उत्तेजना, द्वेष और विद्वेष की आग पर जहां एक दिन पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पानी डालते हुए साफ कर दिया कि न वो ज्ञानवापी विवाद के मसलों से ताल्लुक रखते हैं और न ही शिवलिंग खोजती निगाहों का समर्थन करते हैं…भागवत के दो मीठे बोल ने उस तमाम उग्रता और वैमनस्यता की आंधी को रोक दिया जो देश को डरा रही थी…मोहनजी के बयानों पर नफरत बिखेरने वाले हिन्दुवादियों की खींचतान चल ही रही थी कि देश के सत्ता दल ने अपने उन दो वाक-वाचालों की बोलती बंद कर दी, जो मजहबी लोगों के पैगम्बर के लिए अनाप-शनाप बोल रहे थे…इन दो वाकयों ने देश के उन तमाम बुद्धिजीवियों और अमनपसंद लोगों को राहत पहुंचाई जो नफरत की आग में बर्बाद होते देश को देख रहे थे… बेबसी की आहें भर रहे थे… कुछ कह रहे थे… कुछ खामोश रहकर घुट रहे थे… कुछ लोग बरसों पुराने जख्मों को कुरेदकर न केवल मवाद का दर्द पहुंचाने चाहते थे, बल्कि देश को वैमनस्यता की चीखों में बदलना चाहते थे…जो कुछ हुआ उसका आज से कोई ताल्लुक नहीं, लेकिन जो कुछ हो रहा है वो आज के अमन के विनाश की कोशिश ही है…मुगल शासकों ने यदि मंदिरों को तबाह किया…मस्जिदों को अंजाम दिया तो यह इतिहास में दफन एक वर्ग की तकलीफ है…लेकिन यदि आज आतंक को खोजने, ढंूढने और तब्दील करने का प्रयास करेंगे तो दोनों ही वर्गों के लिए भय, दहशत, नफरत, विद्वेष का वह सिलसिला शुरू होगा, जिसमें जीना दुश्वार हो जाएगा…हर कोई एक-दूसरे से डरा हुआ नजर आएगा…यकीन का दम घुट जाएगा…विश्वास की रफ्तार पर दौड़ता देश विनाश के कगार पर पहुंच जाएगा और हाथ कुछ नहीं आएगा…मंदिरों में न शंख बजेंगे और न मस्जिदों में अजान… इस अंजाम को युवाओं की वो पीढ़ी कोसेगी, जो दिन-रात खुद को झोंककर अपने मुकाम की तलाश कर रही है…तरक्की के रास्तों पर चल रही है… जिनके लिए नए रास्तों का संघर्ष गीता का उपदेश है और भाईचारा-एकता, कुरआन का पैगाम, न वो मजहब देखते हैं और न किसी से कोई बैर रखते हैं…न वो इतिहास में जाना चाहते हैं न मंदिर-मस्जिद की लड़ाई में पड़ना चाहते हैं…उनका मकसद उस ऊंचाई से है, जो खुद का कद बढ़ाए…देश को आगे ले जाए…सपनों के आगे की मंजिल पाए… इसलिए अपने लिए न सही अपने बच्चों के लिए जुबान पर अंकुश लगाए…मन में मवाद न बढ़ाए…दिल में मंदिर बनाए और विचारों में अरमान को लाए…न किसी को तकलीफ पहुंचाए… न देश को किसी मुसीबत में पहुंचाएं… मंदिर-मस्जिदों को भोंपुओं से निजात दिलाए…मन की बात है मन से पहुंचाए…जेहन के जमीर को जगाए और जिस शख्स का संदेश नफरत फैलाए उसे लताड़ लगाए…सोशल मीडिया नफरतभरे संदेशों पर खामोश नजर आए और हम एकता और विकास को वायरल कर देशभर में फैलाएं… इस सच को समझें कि यदि इतिहास में विध्वंस हुआ भी तो वो उस सिरफिरे शासक का जलील मंसूबा था, जिसने धर्म की कब्र बनाकर मजहबी अंजाम दिया…लेकिन आज लोकतंत्र है…सबका साथ सबका विकास का नारा गुंजाती सरकार सबके वोटों से चुनकर आती है तो धर्म-मजहब को बांटने की बात कहां रह जाती है…जहां लोकतंत्र नहीं होता…शासक शासन करते हैं, वहां एकतरफा निर्णय होते हैं…सऊदी अरब में आज भी दीपावली मनाना तो दूर हिंदू भगवान की तस्वीर भी नहीं रख सकते हैं…यह उनका अपना संजोया संसार है…उनका अपना अधिकार है…लेकिन हम धर्मनिरपेक्षता की स्थापना करते हैं…जब पाकिस्तान बनता है तो लौटते हुए मुस्लिमों को रोक लेते हैं…फिर उनके दिल को दुखाना, मजहबी चोट पहुंचाना कैसे हमारा धर्म हो सकता है…कैसे गीता का संदेश हो सकता है… और ऐसी नीयत से कैसे रामराज चल सकता है…
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