नई दिल्ली। चुनाव संचालन नियम में संशोधन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। कांग्रेस ने कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए निर्वाचन संचालन नियम में बदलाव किए जाने को मंगलवार को शीर्ष कोर्ट में चुनौती दी। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने इसकी जानकारी दी है। जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘निर्वाचन संचालन नियम, 1961 में हाल के संशोधनों को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की गई है।’
उन्होंने कहा, ‘निवार्चन आयोग एक संवैधानिक निकाय है। इस पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी है, इसलिए इसे एकतरफा और सार्वजनिक विचार-विमर्श के बिना इतने महत्वपूर्ण नियम में इतनी निर्लज्जता से संशोधन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।’ रमेश ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा तेजी से कम हो रही है और उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसे बहाल करने में मदद करेगा।
चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 अनुबंधों के मुताबिक, चुनाव से संबंधित सभी ‘कागजात’ सार्वजनिक निरीक्षण के लिए रखे जाएंगे। यानी ये सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध होंगे। अब केंद्र सरकार ने इस नियम में संशोधन किया है। इसके तहत अब नियम 93 की शब्दावली में ‘कागजातों’ के बाद ‘जैसा कि इन नियमों में निर्दिष्ट है’ शब्द जोड़े गए हैं।
चुनाव आयोग से मशवरे के बाद केंद्रीय कानून और विधि मंत्रालय की तरफ से किएगए बदलावों के बाद अब चुनाव संबंधी सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण के लिए नहीं रखा जाएगा। अब आम जनता सिर्फ उन्हीं चुनाव संबंधी दस्तावेजों को देख सकेगी, जिनका जिक्र चुनाव कराने से जुड़े नियमों में पहले से तय होगा।
चूंकि नामांकन फार्म, चुनाव एजेंट की नियुक्ति, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेजों का जिक्र चुनाव संचालन नियमों में किया गया है, इसलिए इन्हें सार्वजनिक निरीक्षण के लिए बरकरार रखा जाएगा। हालांकि, आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज चुनाव संचालन नियमों के दायरे में नहीं आते हैं। ऐसे में यह दस्तावेज जनता की पहुंच से दूर हो जाएंगे।
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