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    मेंटेनेंस देने से आनाकानी कर रहा था शख्स, हाईकोर्ट ने कहा- ‘…तो जिंदा नहीं रह पाएंगे पत्नी और बच्चे’

  • September 05, 2024

    डेस्क: मद्रास (Madras) उच्च न्यायालय (High Court) ने तलाक (Divorce) चाहने वाली एक मुस्लिम महिला (Muslim Woman) को अंतरिम भरण-पोषण (Interim Maintenance) देने के पारिवारिक न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा है, हालांकि मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम के तहत यह राहत नहीं दी गई है. अदालत ने पति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें पति ने उधग-मंडलम फैमिली कोर्ट की ओर से पारित आदेश को चुनौती दी थी. इस आदेश में गुजारा भत्ता के रूप में 20,000 रुपये और मुकदमे के खर्च के लिए 10,000 रुपये देने का आदेश दिया गया था.

    न्यायमूर्ति वी. लक्ष्मीनारायणन ने कहा, “क्योंकि विधायिका समाज में उपस्थित सभी समस्याओं का समाधान नहीं सोच सकती. इसलिए विधायिका द्वारा निर्धारित व्यापक ढांचे के भीतर अदालतों को व्यक्तिगत मामलों का समाधान ढूंढना होगा.”

    पति के वकील ने कहा कि निचली अदालत सीपीसी की धारा 151 (निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए आदेश देने की अंतर्निहित शक्ति) के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर अंतरिम भरण-पोषण का आदेश नहीं दे सकती, जब मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम में इसका कोई प्रावधान ही नहीं है. इससे सहमत होने से इनकार करते हुए अदालत ने कहा, “जब विवाह स्वीकार कर लिया गया है और बच्चे का जन्म भी हो गया है तो पति का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह अपनी पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण करे.”


    न्यायाधीश ने कहा, “किसी भी भरण-पोषण भत्ते के अभाव में पत्नी या बच्चा मुकदमे के खत्म होने तक जिंदा भी नहीं रह पाएंगे. यदि न्यायालय पति के इस तर्क को स्वीकार कर ले कि सीपीसी या मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम के तहत पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण भत्ता देने का कोई प्रावधान नहीं है तो न्यायालय पत्नी की स्थिति को कम करेगा और उसके अस्तित्व के अधिकार को कुचलेगा.”

    अदालत ने यह भी कहा कि गुजारा भत्ता देने का मकसद महिला को समान अवसर देना है और इस तरह न्याय को बढ़ावा देने के लिए सभी पक्षों को समान अवसर सुनिश्चित करना है. इस तरह अदालत ने कहा कि अगर यह माना जाता है कि अदालत के पास मेंटेनेस देने का पावर नहीं है तो यह न्याय, इक्विटी और अच्छे विवेक के सिद्धांतों के खिलाफ होगा.

    अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के अनुसार, पत्नी सिविल कोर्ट, फैमिली कोर्ट या आपराधिक अदालत के समक्ष संरक्षण आदेश, निवास आदेश, मौद्रिक राहत, हिरासत आदेश और मुआवजे के आदेश की राहत का दावा कर सकती है. अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट पति को अधिनियम के तहत अंतरिम रखरखाव का भुगतान करने का निर्देश दे सकती है. फैमिली कोर्ट के आदेश में कोई बदलाव न करते हुए, अदालत ने याचिका खारिज कर दी.

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