चंडीगढ़ । हरियाणा कांग्रेस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष (Former State President of Haryana Congress) कुमारी सैलजा (Kumari Sailja) ने कहा कि हरियाणा में (In Haryana) सरकार की अनदेखी से (Due to the Government’s Negligence) राजकीय विद्यालयों में (In Government Schools) शिक्षा का स्तर (The Level of Education) शून्य हो चुका है (Has Reached Zero) ।
कुमारी सैलजा ने कहा कि जिस प्रदेश और देश की सरकारें शिक्षा पर अधिक ध्यान देती है वहां पर विकास ही विकास दिखाई देता है, पर हरियाणा में सरकार की अनदेखी के चलते राजकीय विद्यालयों में शिक्षा का स्तर शून्य हो चुका है। कहीं विद्यालय हैं तो अध्यापक नहीं तो कहीं अध्यापक हैं तो बच्चे नहीं और जहां दोनों हैं वहां के जर्जर भवन कक्षा चलाने के लायक नहीं हैं। सरकार की अनदेखी बच्चों को सरकारी स्कूल से दूर कर रही है, शिक्षा विभाग द्वारा तैयार किये गए डेटा से पता चला है कि प्राथमिक विद्यालयों में इस वर्ष 1.21 लाख छात्रों की कमी आई है। हरियाणा सरकार निजीकरण एवं स्वहित के लिए हरियाणा के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए और जुमलेबाजी छोड़कर सरकार को इस दिशा में कठोर कदम उठाना चाहिए।
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा है कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार हर विभाग में पोर्टल पोर्टल खेल रही है, इस खेल में जो काम पहले होते थे वे भी चौपट हो गए है, अधिकारी भी इस खेल से परेशान आ चुके है। प्रदेश की जनता पोर्टल के खेल में फंसकर रह गई है, उसको मिलने वाली सरकारी मदद तक नहीं मिल पा रही है। ऐसा ही शिक्षा विभाग में हुआ है। जहां पर पोर्टल के खेल में शिक्षक, अभिभावक और बच्चे परेशान है।
पिछले शिक्षा सत्र में प्राइमरी स्कूलों में 1041832 दाखिले हुए थे पर इस साल 920899 दाखिले हुए यानि 120933 दाखिले कम हुए। इससे साबित होता है कि सरकार की शिक्षा नीति और उनके क्रियान्वयन में कही न कही कोई कमी जरूर है। उन्होंने कहाकि एमआईएस (मैनेजमेंट इंफोर्समेंट सिस्टम) पोर्टल के आधार पर शिक्षा विभाग डाटा तैयार करता है और इसे डाटा से सरकार इंकार नहीं कर सकती क्योंकि यह डाटा उसका ही तैयार किया हुआ।
उन्होंने कहा है कि शिक्षा विभाग ने ही एमआईएस पोर्टल तैयार किया है जिसमें वह बच्चे का नाम, जन्मतिथि, आधार कार्ड नंबर, स्वास्थ्य संबंधी सूचना, जाति, बैंक खाता नंबर, पता और माता पिता की पूरी डिटेल रखती है। इसी के आधार पर बच्चे का यूनिक नंबर दिया जाता है। यानि स्कूलों में जिन बच्चों को दाखिल दिया उनका विवरण शिक्षा विभाग के पास है, अगर बच्चों का पिछले सत्र से दाखिल कम हुआ है तो सरकार ने इसकी अनदेखी क्यों की।
उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों की अपेक्षा प्राइवेट स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ रही है यानि अभिभावक बच्चों के भविष्य को देखते हुए उन्हें सरकारी स्कूल के बजाए प्राइवेट स्कूलों में दाखिला करवा रहे है, कहा जा सकता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर शून्य हो चुका है। जहां पर सुविधाओं के नाम कुछ भी नहीं है, सुविधाओं के नाम पर केवल कागजों का पेट भरा जा रहा है। सरकार को बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के स्तर पर अधिक ध्यान देना चाहिए, बच्चों का इस सत्र में दाखिला कम क्यों हुआ इसके कारणों का पता लगाना चाहिए।
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