उज्जैन। भक्तों द्वारा जहां नकद राशि के अलावा सोने-चांदी दान की जाती है, वहीं कुछ जमीनें भी दान में देते हैं। उज्जैन के बाबा महाकाल को भी विगत वर्षों में श्रद्धालुओं ने जमीनें दान कीं। लगभग 84 बीघा से अधिक ये जमीनें इंदौर सहित प्रदेश के कई जिलों में मौजूद हैं। लगभग 25 लाख स्क्वेयर फीट ये जमीनें चूंकि अलग-अलग जगह मौजूद हैं और इनका फिलहाल कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है, लिहाजा उज्जैन प्रशासन ने इन जमीनों को बेचकर मिली राशि से मंदिर के होने वाले विकास कार्यों पर खर्च करना तय किया है। कुछ जमीनों पर अतिक्रमण भी हो चुका है। इंदौर के सांवेर क्षेत्र में भी 8 एकड़ से अधिक दान की यह जमीन मौजूद है, तो उज्जैन के अलावा रतलाम, मंदसौर, देेवास सहित अन्य जिलों में भी ये जमीनें हैं। बाबा महाकाल के देश-विदेश में तमाम भक्त हैं, जो कई तरह का दान देते हैं।
उनमें कई भक्तों ने जमीनें भी भेंट की हैं। लगभग 84 बीघा जमीनें इंदौर सहित प्रदेशभर में फैली हैं, जिन पर अतिक्रमण, अवैध निर्माण भी हो गए, तो कुछ जमीनों पर विवाद के कोर्ट केस भी चल रहे हैं। अब उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह ने तय किया कि इन जमीनों को बेच दिया जाए, क्योंकि इससे फिलहाल कोई आय भी मंदिर समिति को नहीं हो रही है। लिहाजा उज्जैन को छोड़कर अन्य जिलों की जमीनों को नीलाम करने की तैयारी भी चल रही है। इससे प्राप्त राशि मंदिर के विकास कार्य व अन्य पर खर्च की जाएगी। काशी की तर्ज पर महाकाल मंदिर का विस्तार और भव्य कॉरिडोर प्रस्तावित किया गया है। पिछले दिनों ही मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इसे मंजूरी भी दी है। इनमें से कई जमीनें तो वर्षों पूर्व दान में दी गई थीं। हालांकि कुछ समय पूर्व भी संबंधित जिलों के कलेक्टरों को इन जमीनों के संबंध में पत्र भी लिखे गए, ताकि अतिक्रमण हटाए जा सकें। बामोरा में 11 हेक्टेयर, नईखेड़ी में 3 हेक्टेयर, पिपलोदा सांगोती में 2.7 हेक्टेयर, नीमनवासा में 9 हेक्टेयर, लेकोड़ा आंजना में 4.80 हेक्टेयर, मंगरोला, देवास के रालामंडल, चोसर, रतलाम के पिपलोदा और जीरापुर में भी जमीनें मौजूद हैं।
कालभैरव, मंगलनाथ आदि की जमीन भी नीलाम की जा सकती है
महाकाल बाबा की तर्ज पर ही बाबा कालभैरव, मंगलनाथ सहित अन्य मंदिरों को दान में मिली जमीनों को भी भविष्य में सरकार नीलाम कर सकती है। इन जमीनों में उज्जैन की जमीन शामिल नहीं रहेगी। केवल उज्जैन बाहर बड़े मंदिरों को दान में मिली जमीनों को राज्य शासन नीलाम करेगा और उनसे प्राप्त राशि का इन्हीं मंदिरों के विकास कार्य में खर्च किया जाएगा।
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