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    द. कोरिया का भारत में निवेश, दुनिया को देता क्या संदेश

  • November 18, 2021

    – आरके सिन्हा

    राजधानी दिल्ली से सटा गुरुग्राम दक्षिण कोरिया के नागरिकों और कंपनियों की पसंदीदा जगह के रूप में स्थापित होता जा रहा है। यहां हजारों कोरियाई पेशेवर, इंजीनियर, उद्यमी वगैरह रहते हैं। यह भारत-दक्षिण कोरिया के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों की तस्दीक करता है। भगवान बुद्ध भी दोनों देशों को करीब लाते हैं। सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स, हुंडई, एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स, डूसन हेवी इंडस्ट्रीज जैसी दक्षिण कोरिया की दर्जनों बड़ी कंपनियां भारत में काम कर रही हैं। ग्रेटर नोएडा में दक्षिण कोरिया की एलजी इलेक्ट्रानिक्स, मोजर बेयर, यमाहा जैसी कंपनियों की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां हैं। कोविड काल में जब सारी दुनिया अपने घरों में दुबक गई थी तब भी 66 दक्षिण कोरियाई कंपनियों ने भारत में अपनी दस्तक दे दी थी।

    पिछले चार सालों में दक्षिण कोरिया का भारत में निवेश 2017 में 1.39 अरब रुपए की तुलना में अब 2.69 अरब रुपए तक पहुंच गया है। यह जानकारी कोरिया के भारत में राजदूत जेय-बोक ने हाल ही में दी। यह याद रखा जाए कि दक्षिण कोरियाई कंपनियों के भारत में लगातार निवेश करने का संदेश दूर तक जा रहा है। इससे वे कंपनियां भी भारत में निवेश करने को लेकर प्रेरित होंगी जो अभी तक यहां निवेश करने को लेकर अंतिम निर्णय नहीं ले सकी हैं। अगर भारत को तेजी से चौतरफा विकास करते रहना है तो हमें विदेशी निवेश अपने यहां लाना ही होगा। इसके अलावा और कोई रास्ता भी नहीं है। नेहरू जी ने सोचा था कि सरकारी पूंजी से ही बड़ी फैक्ट्रियां लें और इंदिरा गाँधी ने सोचा था कि सारे उद्योगों, खदानों और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए पर इससे कुछ व्यक्तियों का फायदा जरूर हुआ हो देश का तो नुकसान ही हुआ।

    बेशक, भारत विदेशी निवेशकों को पसंद आ रहा है। इसलिए चीन की कंपनियां भी भारत में बढ़-चढ़कर निवेश कर रही हैं। हालांकि चीन सरकार भारत से सीमा विवाद में उलझी ही रहती है। दक्षिण कोरिया और बाकी दुनिया देख रही है कि आज कई मामलों में भारत दुनिया के शिखर में खड़ा है। भारत में कोविड से बचाव के लिए जिस तेजी से टीकाकरण हुआ वह सारी दुनिया के लिए एक मिसाल बन गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कहा भी था कि दक्षिण कोरिया जैसे मित्र देशों के साथ मिलकर भारत इलेक्ट्रानिक मैन्यूफैक्चरिंग का बहुत बड़ा हब बन रहा है।

    दरअसल कोरियाई कंपनियों का रुझान भारत की तरफ तेजी से बढ़ा है। कुछ वर्ष पहले तक वहां की कंपनियां चीन और इंडोनेशिया में भरपूर निवेश करती थीं। कोविड काल के बाद उन्होंने रफ्तार से भारत का रुख करना आरंभ कर दिया है। हालांकि अभी भी कोरियाई कंपनियां भारत की अपेक्षा वियतनाम अधिक जा रही हैं। भारत को इस ट्रेंड को चेंज करना होगा। भारत के उद्योग जगत को देखना होगा कि कोरियाई कंपनियों की पहली पसंद अभी भी वियतनाम क्यों बना हुआ है।

    अभी भारत-दक्षिण कोरिया के बीच आपसी व्यापार चीन की तुलना में काफी ज्यादा है। लेकिन, भारत-चीन का इस साल के पहले नौ महीनों के दौरान आपसी व्यापार 90 अरब डालर तक पहुंच गया है। यह पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 49 फीसदी बढ़ा है। यह जानकारी आधिकारिक रूप से भारत सरकार के विदेश सचिव श्री हर्षवर्धन श्रृंगला ने हाल ही में दी थी। तो बहुत साफ है कि भारत का उस चीन से आपसी व्यापार बढ़ता जा रहा है, जिसने भारत के बहुत बड़े भू-भाग पर कब्जा जमाया हुआ है। भारत को कोशिश करनी होगा कि उसका कोरिया से आपसी व्यापार तो ज्यादा बढ़े, परंतु चीन से घट जाए।

    अगर हमें दक्षिण कोरिया से और अधिक निवेश को आकर्षित करना है तो केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी अपनी ओर से ठोस पहल करनी होगी। विदेशी निवेशक तब ही आएंगे जब उन्हें काम करने के बेहतर विकल्प हासिल होंगे। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडू, हरियाणा जैसे राज्यों का तगड़ा विकास इसलिए होता रहा है, क्योंकि इनमें हर साल भारी निजी क्षेत्र का निवेश आता है।

    पंजाब लगातार पिछड़ रहा है क्योंकि वहां कोई न कोई आंदोलन चलता रहता है। आजकल किसानों का कथित आंदोलन चल रहा है। वहां लंबे समय तक खालिस्तानी अपना आंदोलन चला रहे थे। केंद्र सरकार हर साल एक रैंकिंग जारी करती है कि देश के किन राज्यों में कारोबार करना आसान और कहां सबसे मुश्किल है। सरकार ने इसे “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” का नाम दिया है। इसमें पहले पांच स्थानों पर उपर्युक्त राज्य छाए रहते हैं। दरअसल इस रैंकिंग का उद्देश्य घरेलू और वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कारोबारी माहौल में सुधार लाने के लिए राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू करना है।

    इस रैकिंग से उन राज्यों को सबक लेना होगा जहां देसी या विदेशी निवेश नहीं आता। अगर बात बिहार की करें तो वहां दक्षिण कोरियाई या अन्य विदेशी या देश की चोटी की कंपनियों का भी निवेश तब आएगा जब बिहार में काम करने लायक माहौल बनेगा। जिन राज्यों में निवेश कम या न के बराबर आता है उन्हें सुधरना होगा। उन्हें विदेशी निवेशकों को अपने यहां बुलाने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम शुरू करना होगा ताकि निवेशकों के सारे मसले वहीं हल हो जाएं। बिजली-पानी की आपूर्ति की व्यवस्था करनी होगी। सड़कें सुधारनी होंगी। पब्लिक ट्रासंपोर्ट व्यवस्था में सुधार करना होगा और सबसे महत्वपूर्ण, कानून व्यवस्था की स्थिति सुधारनी होगी।

    दक्षिण कोरिया का भारत को लेकर कृतज्ञता का भाव का भी है। राजधानी में एक कोरियन वार मेमोरियल बन रहा है। यह दिल्ली कैंट में थिमय्या पार्क में बनाया जा रहा है। दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच 50 के दशक में हुए युद्ध में भारत समेत 22 देशों ने दक्षिण कोरिया का साथ दिया था। इसके स्थापत्य पर कोरिया की छाप साफ दिखाई देगी। इसमें गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की एक अर्धप्रतिमा भी लग रही है। कोरिया में टैगोर बेहद लोकप्रिय कवि हैं। उन्होंने 1929 में कोरिया के गौरवशाली इतिहास पर एक कविता भी लिखी थी। थिमय्या पार्क में कोरिया वार मेमोरियल को सोच-समझकर ही स्थापित किया जा रहा है। जनरल कोडन्डेरा सुबय्या थिमय्या ने उस भयानक युद्ध के दौरान दक्षिण कोरिया को लगातार इनपुट्स दिए थे।

    एक बात और कि दक्षिण कोरिया बौद्ध धर्म को मानने वाला देश है। भारत को वहां से निवेश के साथ-साथ दक्षिण कोरिया के नागरिकों को भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े स्थानों में पर्यटन के लिए भी लाने के प्रयास करने होंगे। इससे हमारा टुरिज्म क्षेत्र भी गति पकड़ लेगा।

    (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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