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    सुलझ सकती हैं 20 करोड़ वर्ष पहले बिग बैंग से बनी आकाशगंगाओं की गुत्थियां! अब सारस ने दी यह खास जानकारी

    November 29, 2022

    नई दिल्ली। भारत (India) के सारस रेडियो टेलिस्कोप (SARAS Radio Telescop) ने वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड के शुरुआती सितारों और आकाशगंगाओं (stars and galaxies) के बारे में पता लगाने के लिए कुछ जानकारियां जुटाने में मदद की है। इसके जरिए 20 करोड़ वर्ष पहले महा विस्फोट (बिग बैंग) के बाद बनी आकाशगंगाओं के बारे में कई गुत्थियां सुलझ सकती हैं, इस अवधि को कॉस्मिक डॉन के रूप में जाना जाता है।

    वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह (international group) द्वारा नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित निष्कर्ष से पता चला है कि रेडियो टेलिस्कोप शुरुआती आकाशगंगाओं के गुणों के बारे में एक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं जो आमतौर पर सुपरमैसिव ब्लैक होल द्वारा संचालित होती हैं।

    बंगलूरू स्थित रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) के सौरभ सिंह सहित वैज्ञानिकों (scientists) की एक टीम ने पहली पीढ़ी की आकाशगंगाओं के ऊर्जा उत्पादन, चमक और द्रव्यमान का अनुमान लगाया है। स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित बैकग्राउंड रेडियो स्पेक्ट्रम-3 (SARAS) टेलिस्कोप को 2020 की शुरुआत में उत्तरी कर्नाटक के दंडिगनहल्ली झील और शरावती बैकवाटर पर तैनात किया गया था।


    आरआरआई के अलावा, ऑस्ट्रेलिया (Australia) के कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (CSIRO) के शोधकर्ताओं ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय और तेल अवीव विश्वविद्यालय के सहयोगियों के साथ पहली पीढ़ी के उन आकाशगंगाओं की जिसकी रेडियो तरंग दैर्ध्य चमकीली हैं, के ऊर्जा उत्पादन, चमक और द्रव्यमान का अनुमान लगाने के लिए अध्ययन में भाग लिया।

    वैज्ञानिकों ने शोध के दौरान लगभग 1420 मेगाहर्ट्ज की आवृत्ति पर उत्सर्जित आकाशगंगाओं में और उसके आसपास हाइड्रोजन परमाणुओं के रेडिएशन का अनुभव किया।

    उन्होंने बताया कि ब्रह्मांड के विस्तार के साथ ही रेडिएशन फैलता है, क्योंकि यह हमारे अंतरिक्ष के चारों तरफ समय के साथ भ्रमण करता है, और कम आवृत्ति वाले रेडियो बैंड 50-200 मेगाहर्ट्ज के रूप में पृथ्वी पर आता है, जिसका उपयोग एफएम और टीवी प्रसारण द्वारा किया जाता है।

    प्रकाशित निष्कर्ष से पता चला है कि ब्रह्मांडीय संकेत अत्यंत मंद है, क्योंकि हमारी अपनी आकाशगंगा के चमकदार रेडिएशन की मात्रा मानव निर्मित स्थलीय हस्तक्षेप के कारण कम हो गई है, जिससे खगोलविदों के लिए इसका पता लगाना एक चुनौती बन गया है।

    अनुसंधान के निष्कर्षों के बारे में बताते हुए प्रो. सिंह ने कहा कि सारस-3 ने खगोलविदों को यह बताकर कॉस्मिक डॉन के खगोल भौतिकी की समझ में सुधार किया है कि शुरुआती आकाशगंगाओं के भीतर गैसीय पदार्थ का तीन प्रतिशत से भी कम हिस्सा सितारों में परिवर्तित हो गया था। साथ ही यह भी पता चला कि शुरुआती आकाशगंगाएं रेडियो उत्सर्जन में चमकदार थीं और एक्स-रे में भी मजबूत थीं, जो शुरुआती आकाशगंगाओं में और उसके आसपास ब्रह्मांडीय गैस को गर्म करती थीं।

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