– प्रीति जैन
फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ में धर्मांतरण का जो मुद्दा उठाया गया है, वह विषय फिल्म के रूप में तो नया है लेकिन यह मुद्दा बहुत लंबे समय से केरल में हिंदू आबादी को लील रहा है। आखिरकार फिल्मकार सुदीप्तो सेन को लगातार नजरअंदाज किए जा रहे गंभीर विषय पर अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी और उन्होंने इस फिल्म में उस सच को दिखाया है जो कश्मीर फाइल्स की तरह ही भारत का एक सच है।
इस्लाम के कट्टरपंथियों ने पुरजोर कोशिश की है कि केरल को इस्लामिक स्टेट में बदल दिया जाए और फिर अपने पूर्वज आक्रमणकारियों की भांति भारत को इस्लामिक देश बनाने के मंसूबों को कामयाब किया जाए। उनकी यह कोशिश सालों की मेहनत के बाद भी उस तरह रंग नहीं ला पा रही हैं जिस तरह द्रुतगति से वे प्रयास कर रहे हैं।
भारत की संस्कृति, संस्कार इतने मजबूत हैं कि उसकी नींव को आसानी से खोद कर उसकी जड़ें उखाड़ फेंकना, लोहे के चने चबाने जैसा है। लेकिन लगातार की जा रही साजिशों ने हिंदू आबादी का एक बड़ा हिस्सा धर्मांतरण की आंधी में लील लिया है। लेकिन अब आया है जब भारतवासी अपने और अपने परिवार तक सीमित रहने की बजाए समाज और राष्ट्र के लिए सोचना फिर से शुरू कर रहे हैं और यही वजह है कि अब एक फिल्म के रूप में पूरा देश भारत के खिलाफ चल रही इस साजिश को उजागर होते हुए पर्दे पर देख पा रहा है।
फिल्म को आत्मा को झकझोर देने वाले सत्य और तथ्य के साथ तैयार किया गया है कि इसका एक-एक सीन दर्द, प्रताड़ना, अत्याचार, हिंसा, हिंदू और कैथोलिक युवतियों के ब्रेनवाश करने के तौर-तरीकों और इसकी शुरुआत से लेकर अंत तक की कहानी को बखूबी बयां करता है। फिल्मकार ने सीमित समय की बाध्यता के बावजूद हर उस पक्ष को, हर उस समस्या को, हर उस कारण को पर्दे पर पड़ताल करके उतारा है जिसके कारण हिंदू युवतियां धर्मांतरण की शिकार हो रही हैं। तो हमें ये स्वीकार करना चाहिए कि हमारे धर्म के खिलाफ हो रही साजिशों के लिए हम खुद भी जिम्मेदार हैं।
फिल्म के संवाद में एक युवती यह कहती भी है अपने पिता से कि आपने मुझे कभी भी आतंकवाद के बारे में नहीं बताया। आतंकवाद बंदूक की नोक पर नहीं आतंकवाद धर्मांतरण के रूप में पूरी दुनिया में तेजी से विकराल रूप ले रहा है। हमें आतंकवाद के इन अलग-अलग स्वरूपों को समझना होगा और जागरूक होना होगा।
फिल्मकार ने बड़ी आसानी से ही यह बात समझाने की कोशिश की है कि हिंदू धर्म की उदारवादिता ही हिंदू धर्म के लिए परेशानी का सबब बन रही है। हिंदू परिवार के बच्चे अपने धर्म, संस्कृति के बारे में बेखबर हैं। वे अपने धर्म शास्त्र, ग्रंथों, पुराणों, वेदों की जानकारी से अनभिज्ञ हैं क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें सिर्फ स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई, शानदार नौकरी, बढ़िया पैकेज तक सीमित रखते आ रहे हैं।
इस बात को जानते हुए भी अनजान रहने का प्रत्यन करते हैं कि समय रहते अपने बच्चों को देश की जड़ों से नहीं जोड़ा, उन्हें अपने अपने धर्म की सुंदरता के बारे नहीं बताया तो क्या घातक परिणाम होंगे। जब देश की धर्म, संस्कृति ही मिट जाएगी तब देश का स्वरूप क्या होगा।
हिंदू धर्म हमेशा से उदारवादी रहा और इसी उदारवादी का फायदा दूसरे धर्म के कट्टरपंथी मंसूबों के साथ काम करने वाले लोगों ने उठाया । युवाओं का ब्रेनवाश करने का मुद्दा और भारत की डेमोग्राफिक प्रोफाइल को बदलने का यह सिलसिला लंबे समय से भारत में चल रहा है लेकिन इस फिल्म के आने के बाद लोगों में जागरुकता आएगी की सही गलत क्या है।
मुझे लगता है कि यह फिल्म सिर्फ लड़कियों को ही नहीं बल्कि हर आयु वर्ग और हर समुदाय के लोगों को देखनी चाहिए, क्योंकि धर्मांतरण का यह मुद्दा सिर्फ हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है। इसकी साजिश के शिकार सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध व अन्य समुदाय भी हो रहे हैं।
(लेखिका, फिल्म समीक्षक हैं।)
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