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    द केरल स्टोरी: सामाजिक समस्याएं उठाना सिनेमा का कर्तव्य

  • May 13, 2023

    – हृदयनायरायण दीक्षित

    कला संगीत और नृत्य का स्रोत आनंद है। आनंद का स्रोत प्रकृति है। प्रकृति रूपों से भरी पूरी है। रूप आँखों से देखे जाते हैं। कविता में उनका वर्णन हो सकता है। नाट्य कला में गीत संगीत और नृत्य एक साथ होते हैं। भारत में अभिनयशास्त्र का विकास प्राचीन काल में ही हो रहा था। भरत मुनि का नाट्य शास्त्र इसका साक्ष्य है। नाट्यशास्त्र पांचवां वेद कहा गया था। गीता अद्वितीय दर्शनशास्त्र है। अपनी विभूतियाँ बताते हुए कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि, `मैं वेदों में सामवेद हूँ।’ सामवेद का सम्बंध गायन से है और वेद का अर्थ है ज्ञान। सामवेद में ज्ञान और गान एक साथ हैं। सिनेमा लोकप्रिय माध्यम है। सिनेमा अभिनय और नाटक का ही अति विकसित रूप है। अरबों- खरबों का उद्योग है। सिनेमा में संस्कृति इतिहास और काल्पनिक कथाएं एक साथ हैं। सिने कथाओं का स्रोत प्रत्यक्ष लोक है।

    प्रकृति में प्रतिपल संगीत हैं। वायु प्रवाह आनंदित करते हैं। वायु के झोंकों में नाचते वृक्ष और वनस्पति संगीत देते जान पड़ते हैं और आनंद का सृजन करते हैं। वर्षा का पानी भी गिरते हुए संगीत देता है। निराला की कविता ‘बादल राग’ स्मरणीय है। ‘टिप टिप बरसा पानी, पानी ने आग लगाई’ सिनेगीत लोकप्रिय है। वर्षा में नाचते बादल ढोल नगाड़े बचाते हैं। रस वर्षा से पृथ्वी का रोम-रोम आनंदित होता है। पक्षी गीत गाते हैं। कोयल को गायन का उच्च प्रतीक कहा जाता है। प्रकृति के गीत संगीत की धारा मानव चित्त में उतर जाती है। नाट्य भारतीय संस्कृति का प्रतिष्ठित अंश है। सिनेमा में गीत संगीत और नाटक एक साथ हैं। हॉलीवुड की फिल्मों में एक्शन की प्रमुखता है। लेकिन भारतीय सिनेमा भाव प्रवण रहा है। यह सिर्फ मनोरंजन का ही माध्यम नहीं है। बेशक सिनेमा से मनोरंजन होता है। लेकिन साहित्य की तरह सिनेमा भी विचार प्रसार का माध्यम है। मनोरंजक सृजन की उम्र कम होती है। इसकी तुलना में विचार आधारित फिल्मों की उम्र लम्बी होती है। सिनेमा में इतिहास भी विषय बनता है।


    हाल ही में गंभीर विषय पर ‘द केरल स्टोरी’ नाम की फिल्म विवाद का विषय बन गई है। सिने प्रेमियों का एक वर्ग इसे क्रूर सत्य का पर्दाफाश करने वाला अभिलेख बता रहा है। एक वर्ग इसका विरोध कर रहा है। कथा के अनुसार गैर मुस्लिम लड़कियों को इश्क मोहब्बत का झांसा देकर धर्मान्तरित कराया जा रहा है और उन्हें ‘आईएसआईएस’ जैसे आतंकी संगठनों को सौंपा जा रहा है। आतंकी संगठन लड़कियों का शोषण करते हैं। यह भयानक सत्य भी है। सो एक वर्ग फिल्म के समर्थन में उतरा है और फिल्म को वास्तविक दस्तावेज बता रहा है। यही सही भी है।

    दूसरा वर्ग फिल्म के विरोध में है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया है। तमिलनाडु ने भी फिल्म न दिखाए जाने जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। वहीं उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी फिल्म को कर मुक्त किया है। शबाना आजमी का दृष्टिकोण ध्यान देने योग्य है। उन्होंने फिल्म के प्रदर्शन को रोकने की मांग को गलत ठहराया है। उन्होंने ट्वीट किया है कि, `किसी फिल्म को सेंसर बोर्ड से अनुमति मिल जाने के बाद प्रतिबंधित करने का विचार गलत है।’ ममता बनर्जी ने शबाना आजमी की बात पर ध्यान नहीं दिया। सिनेमा जैसे सशक्त माध्यम से विचार देना अनुचित नहीं है। ऐतिहासिक और वैचारिक फिल्मों का निर्माण दर्शकों को जरूरी तथ्यों से अवगत कराना होता है।

    सिनेमा भी एक तरह से समाचार और विचार का माध्यम है। राज कपूर दृष्टिकोण से वामपंथी थे। उनकी फिल्मों में कला थी। उत्कृष्ट अभिनय था और संवादों में अपनी बात कहने का कौशल। श्री 420, तीसरी कसम जैसी फिल्में उत्कृष्ट मनोरंजन के साथ विचार विशेष का प्रतिनिधित्व करती थीं। ‘मदर इंडिया’ भी इसी विचार प्रवाह की प्रभावी फिल्म थी। गुरुदत्त ने ‘प्यासा’ फिल्म में आम जनता को जागृत करने का विषय उठाया था, ‘जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं।’ भारतीय सिनेमा स्वतंत्रता के पहले से ही परिपक्व है। अशोक कुमार की फिल्म ‘किस्मत’ में सारी दुनिया को चेतावनी थी कि हिन्दुस्तान हमारा प्रिय है। उस फिल्म का गीत, ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है’ सुखद संदेश देता है। गरीबों के दुख दर्द और मजदूरों की समस्याओं को लेकर भी तमाम फिल्में बनीं। ‘सगीना’ ऐसी ही फिल्म थी। 1975 के आपातकाल पर भी फिल्में बनी थीं। ‘किस्सा कुर्सी का’ ऐसी ही फिल्म थी और ‘आंधी’ भी। इस फिल्म को लेकर सरकार बहुत नाराज थी। रेडियो पर किशोर कुमार के गाने रोक दिए गए थे। आईएस जौहर ने 1975-76 के आपातकाल में जबरदस्ती नसबंदी का सवाल उठाकर ‘नसबंदी’ फिल्म बनाई थी। वैसे यह कॉमेडी फिल्म थी लेकिन आपातकालीन जबरदस्ती नसबंदी की पोल खोलती थी।

    विचार विशेष पर गोविंद निहलानी की ‘अर्धसत्य’ व ‘आक्रोश’ गौतम घोष की ‘पार’, सागर सरहदी की फिल्म ‘बाजार’, श्याम बेनेगल की ‘अंकुर’ ऐसी ही वैचारिक फिल्में थी। भारतीय सिनेमा राष्ट्रीय चुनौतियों से बेखबर नहीं रहा। इश्क-मोहब्बत, मारधाड़ के बावजूद समाज की समस्याएं भी सिनेमा का विषय रही हैं। राजनीति पर भी तमाम फिल्में बनी हैं। ‘द केरल स्टोरी’ के पहले हाल ही में बनी ‘द कश्मीर फाइल्स’ देख कर घर लौटे लोग रोते हुए देखे गए। सामाजिक समस्याएं उठाना सिनेमा का कर्तव्य भी है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर भी विवाद हुआ था। विवाद करने वाले लोगों को सामाजिक दायित्व पर ध्यान देना चाहिए। सिनेमा विवाद का माध्यम नहीं है। वस्तुतः यह संवाद का माध्यम है।

    प्रेम आत्यांतिक अनुभूति है। पहले यह वैयक्तिक होती है। किसी के प्रति प्रकट होकर विस्तार पाती है और अंततः समष्टिगत हो जाती है। संवेदनशीलता उत्कृष्ट गुण है। प्रत्येक व्यक्ति को संवेदनशील बनाने का काम सिनेमा कर सकता है। अंग्रेजी में इसके निकटवर्ती दो शब्द हैं- एक है फीलिंग। चोट लगी। शरीर को कष्ट हुआ। कष्ट हृदय तक पहुंचा। इससे फीलिंग का जन्म हुआ। इससे आंतरिक भाव विकसित हुआ इमोशन। मोशन वाह्य गति है और इमोशन आतंरिक।

    भारतीय सिनेमा ने तकनीकी और निर्देशन के क्षेत्र में तमाम उन्नति की है। ‘जोधा अकबर’ ऐतिहासिक फिल्म थी। इस पर भी विवाद हुआ था। इतिहास से सामग्री लेना सिनेमा बनाने वालों का अधिकार है। लेकिन ऐतिहासिक फिल्में बनाते समय सतर्कता बरतने की भी आवश्यकता है। पौराणिक विषयों पर भी फिल्में बनी हैं। कुछ फिल्मों में मंदिर के पुजारियों को प्रायः खलनायक की तरह प्रस्तुत किया जाता रहा है। लेकिन ऐसे चरित्रों के आधार पर कोई विवाद नहीं हुए। ‘द केरल स्टोरी’ में समाज का क्रूर रूप दिखाया गया है। यह तथ्य है। सत्य है। इतिहास सिद्ध है। इस पर शोर मचाने का कोई तुक नहीं। ऐसी फिल्मों के लिए निर्माता-निर्देशकों की प्रशंसा की जानी चाहिए। लेकिन सांप्रदायिक कारणों से राजनीतिक नेता भी फिल्म पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। यह सर्वथा अनुचित है।

    (लेखक, उप्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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