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    किसान आंदोलन का मुद्दा अमेरिका में उठा, सांसदों ने विदेश मंत्री पोम्पियो को लिखा पत्र

  • December 25, 2020

    देश में किसान आंदोलन का मुद्दा अब अमेरिका में भी उठने लगा है। अमेरिका के सात सांसदों ने विदेश मंत्री माइक पोम्पियो को पत्र लिखा है। इनमें भारतीय-अमेरिकी मूल की सांसद प्रमिला जयपाल भी शामिल हैं। अमेरिकी सांसदों ने पोम्पियो से अपील की है कि वह किसानों के विरोध-प्रदर्शन का मुद्दा भारत सरकार के सामने उठाएं। वहीं, भारत ने विदेशी नेताओं और राजनेताओं द्वारा किसानों के विरोध पर की गई टिप्पणियों को ”अनुचित” और ”अधूरी व गलत सूचना पर आधारित” करार दिया है। साथ ही कहा है कि यह मामला एक लोकतांत्रिक देश के आंतरिक मामलों से संबंधित है।

    अमेरिकी सांसदों ने 23 दिसंबर को पोम्पिओ को लिखे अपने पत्र में कहा है कि किसान आंदोलन पंजाब से जुड़े सिख अमेरिकियों के लिए खास तौर पर चिंता का विषय है। अमेरिकी सांसदों ने लिखा, कई भारतीय-अमेरिकी इससे सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं क्योंकि उनके परिवार के सदस्य और खेती की जमीन पंजाब में है। पत्र में सांसदों ने अपील की है कि पोम्पियो अपने भारतीय समकक्ष के साथ भारत में चल रहे किसान आंदोलन का मुद्दा उठाएं। खत लिखने वालों में प्रमिला जयपाल के अलावा डोनाल्ड नॉरक्रॉस, ब्रेंडन एफ बॉयल, ब्रायन फिट्जपैट्रिक, मैरी गे स्कैनलन, डेबी डिंगेल और डेविड ट्रोन शामिल हैं।

    .भारत ने इससे पहले भी विदेशी नेताओं और राजनेताओं की टिप्पणी को लेकर दो टूक कहा था कि ये भारत का आंतरिक मामला है और प्रोटेस्ट को लेकर उनके बयान गैर-जरूरी और तथ्यों पर आधारित नहीं है। इसी महीने, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था, “हमने भारत में किसानों के प्रदर्शन को लेकर अधूरी जानकारियों पर आधारित बयान देखे हैं। ऐसे बयान गैर-जरूरी हैं, खासकर जब ये भारत का आंतरिक मामला है।”

    दिल्ली के बॉर्डर पर पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों के हजारों किसान 26 नवंबर से नए कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान सितंबर में पास हुए कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। किसानों को डर सता रहा है कि नए कानून से न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे निजी खरीदारों पर आश्रित हो जाएंगे। हालांकि, सरकार ने कहा है कि नए कृषि कानूनों से किसानों को और बेहतर मौके मिलेंगे और खेती में नई तकनीक का समावेश होगा। सरकार और किसानों के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी हैं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है।

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