इंदौर। मुद्दा सही भी हो तो तरीका गलत था… किसी को भी शहर को बंधक बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती… शहर नशे की गिरफ्त में हो रहा है, लेकिन मुश्किल यह है कि पुलिस और प्रशासन दोनों ही केवल शराब के नशे के खिलाफ मुहिम में लगे हैं,जबकि इंदौर ड्रग्स के नशे के घेरे में हैं… मुख्यमंत्री के निर्देश के बावजूद नशे की पुडिय़ाओं का धंधा इंदौर की नस्ल को बर्बाद कर रहा है। ऐसे में बजरंगियों का आंदोलन सही कहा जा सकता है, लेकिन उसका तरीका कतई सही नहीं था… पलासिया चौराहा शहर के यातायात की नब्ज है और उसे बंधक बनाना यानी शहर के संभ्रांत लोगों के जीवन को संत्रास देना था… इस बात की कतई इजाजत नहीं दी जा सकती… इसी चौराहे से एंबुलेंस जैसी गाडिय़ां भी गुजरती हैं… जिनके अवरोध से मरीजों की जान भी जा सकती थी… पुलिस यदि उन्हें बलपूर्वक नहीं हटाती तो आंदोलनकारियों का उत्पात और बढ़ जाता… यदि एक सही आंदोलन के लिए गलत निर्णय बजरंगियों ने लिया है तो यह उस सरकार के लिए भी त्रासदायी हो सकता था, जो आने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान लाड़ली बहना योजना सहित तमाम दिल लुभावने योजनाओं के जरिए मतदाताओं का दिल जीतने का प्रयास कर रही है… ऐसे में सरकार समर्थित हिन्दू संगठनों की ऐसी गतिविधियां सरकार की बदनामी का कारण बन सकती हैं… हिन्दूवादी संगठनों को भी चाहिए कि अपने आंदोलन और गतिविधियों को जनता की परेशानी का सबब न बनाएं और भाजपा के संगठन को भी चाहिए कि ऐसे समय में प्रशासन को निष्पक्ष रूप से काम करने दें… प्रशासन के उन अधिकारियों को बधाई देना चाहिए, जिन्होंने समय पर कार्रवाई कर न केवल जनता को परेशानी से बचाया, बल्कि सरकार पर उठती उंगलियों को भी थाम लिया…
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