इंदौर। भूमाफिया इतने शातिर हैं कि तमाम एफआईआर, जेल जाने और अखबारबाजी होने के बावजूद पीडि़तों को भूखंड देने में तमाम अड़ंगे डालते रहे हैं। हालत यह है कि हाईकोर्ट के निर्देश पर जो जांच कमेटी बनी और लगातार सुनवाई भी कर रही है वह भी इन भूमाफियाओं की उलझाई कैसेट के चलते चकरघिन्नी हो गई है। कोई सिरा ही समझ नहीं आता, जहां से इस कैसेट को सुलझाया जाए, क्योंकि बैंकों के लोन, लिक्विडेशन सहित अन्य तमाम झमेले अलग खड़े कर रहे हैं। फिनिक्स कम्पनी ने ही मात्र एक करोड़ का लोन पेरेंटल ड्रग्स कम्पनी यानी पीडीपीएल से लिया था, जो कि 50 करोड़ से ज्यादा का हो गया और नतीजतन कई पीडि़तों के भूखंड उसी में उलझ गए। दूसरी तरफ चम्पू और कैलाश गर्ग का विवाद कायम है और सेटेलाइट हिल्स में बेचे गए भूखंडों को मॉर्डगेज रख जो बैंक से लोन लिया था वह भी 111 करोड़ से अधिक का हो गया है। जब तक बैंक लोन का सेटलमेंट नहीं होगा तो उससे संबंधित पीडि़तों को भूखंड नहीं मिल सकेंगे।
अभी पिछले दिनों हाईकोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने भी यह तय किया कि जिन पीडि़तों को भूखंड नहीं मिल पा रहे हैं उन्हें 6.6 प्रतिशत ब्याज की दर से राशि वापस लौटाई जाए। हालांकि सभी पीडि़त इसके लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि उन्होंने भूखंडों के लिए राशि दी थी ना कि ब्याज-बट्टे पर। इतना ही नहीं कमेटी जो 6.6 प्रतिशत ब्याज दे रही है, क्योंकि रेरा कानून में ही 9 प्रतिशत ब्याज का प्रावधान कर रखा है। लिहाजा संभव है कमेटी हाईकोर्ट के समक्ष रेरा कानून के 9 प्रतिशत ब्याज की अनुशंसा करेगी, लेकिन पीडि़तों का कहना है कि वे तो अभी भी मूर्ख ही बने। इतने सालों तक लड़ाई लड़ते रहे और कोर्ट निर्णय के बाद भी उन्हें राहत नहीं मिल पा रही है। दूसरी तरफ हाईकोर्ट के समक्ष कमेटी को 21 जून से पहले अपनी रिपोर्ट सौंपना है, मगर सूत्रों के मुताबिक संभव है कमेटी हाईकोर्ट से समय बढ़वाएगी, क्योंकि अभी उसकी पूरी जांच रिपोर्ट ही तैयार नहीं हुई है।
सुप्रीम कोर्ट से इन भूमाफियाओं, जिनमें चम्पू अजमेरा, नीलेश धवन सहित अन्य को सशर्त जमानत मिली थी कि वे 90 दिन में पीडि़तों का सेटलमेंट कर देंगे। उसके बाद हाईकोर्ट ने भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर पीडि़तों के साथ-साथ भूमाफियाओं को तलब कर सुनवाई की प्रक्रिया शुरू की। मगर इन भूमाफियाओं ने जहां आपस में ही इतने घालमेल कर रखे हैं, तो दूसरी तरफ तमाम संस्थाओं के साथ-साथ इन कम्पनियों की कैसेट उलझा दी कि उसे सुलझाए बिना सभी पीडि़तों को न्याय नहीं मिल सकता। फिनिक्स कम्पनी का लिक्विडेटर के साथ विवाद नहीं सुलझा है और चम्पू को लिक्विडेटर के लगातार नोटिस मिल रहे हैं, जिसका कोई जवाब नहीं दिया और अब उसके लिए 16 जून को जवाब देने की तारीख तय की है, तो सैटेलाइट के पीडि़तों की सुनवाई आज कमेटी करेगी। कुछ ही पीडि़तों को मौके पर कब्जे मिल पाए हैं। मगर अधिकांश कब्जे विवादों में पड़े हैं। पीडीपीएल का एक करोड़ का लोन ही 50 से अधिक पीडि़तों को भारी पड़ रहा है और उनके भूखंड उलझ गए हैं। इस कम्पनी में चम्पू के साथ उसकी पत्नी, पिता, भाई और उसकी भी पत्नी सभी डायरेक्टर रहे हैं। फिनिक्स की 88 शिकायतें मिली और कमेटी के सामने अभी तक तीनों टाउनशिप की 266 से ज्यादा शिकायतें आ चुकी हैं, जो 88 शिकायतें पहले आई थीं उनमें 56 रजिस्ट्री वाले और 32 रसीद पर भुगतान करने वाले हैं। मगर 26 रजिस्ट्री वालों को ही मौके पर कब्जे दिए गए और उनकी भी रजिस्ट्रियां संशोधित नहीं की गई, क्योंकि कम्पनी ही लिक्विडेशन में पड़ी है। यही हाल अधिकांश शिकायतों का है। यानी पीडि़तों को सिर्फ दिखावे का कब्जा मिला है और उनकी जमीनें कहीं बैंक में, कहीं लिक्विडेशन में तो कहीं अन्य तरह के विवादों में फंसी है।
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