– ऋतुपर्ण दवे
भारत के राजनीतिक भविष्य के लिए अहम से माने जा रहे 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव, उसमें भी उत्तर प्रदेश ने न केवल यह जता दिया है कि 2024 में दिल्ली की गद्दी का रास्ता फिर वहीं से निकलेगा बल्कि 37 वर्षों का मिथक भी तोड़ दिया कि एक ही दल दोबारा सत्ता में नहीं आता। अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद भाजपा और योगी का उत्तर प्रदेश में दोबारा प्रचण्ड बहुमत लौटना बताता है कि मिथक बस मिथक ही होते हैं जो जनादेश के आगे टूट जाते हैं। नारायण दत्त तिवारी के बाद योगी आदित्यनाथ ही अकेले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने कार्यकाल पूरा कर शानदार वापसी की है। बेशक यह चुनाव 2024 के आम चुनाव के लिए वो ट्रेलर साबित होंगे जिसने पूरी दिखनी वाली फिल्म की कहानी खोल दी है।
अब जैसा कि तय दिख रहा है योगी आदित्यनाथ ही लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे जो 37 वर्षों के बाद होगा तथा राज्य के पांचवें मुख्यमंत्री होंगे जो दूसरे कार्यकाल की जिम्मेदारी निभाएंगे। इससे पहले सिर्फ चार मुख्यमंत्री 1957 में संपूर्णानंद, 1962 में चंद्रभानु गुप्ता, 1974 में हेमवती नंदन बहुगुणा और 1985 में नारायण दत्त तिवारी ही चुनाव के बाद सत्ता में वापसी कर पाए थे। इसी तरह उत्तराखण्ड में भी दोबारा सत्ता में न आने का मिथक टूट चुका है। भाजपा की सत्ता में शानदार वापसी बता रही है कि मतदाताओं ने पूरा भरोसा किया है और यहाँ 3-3 मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी वापसी ने मतदाताओं की परिपक्वता और विश्वास का जनादेश ही दिखाया है। शायद काँग्रेस यहाँ भी अपनी अन्दरूनी कलह की वजह से पिछड़ती चली गई।
बाकी 3 राज्यों के नतीजों में पंजाब ने वो इतिहास रचा जो देश की भावी राजनीति का नया विकल्प होने के लिए तेजी से फैलता बरगद साबित हो सकता है। बेशक आम आदमी पार्टी की हैसियत अब क्षेत्रीय दल से बाहर आ रही है जिसको लेकर सभी मानते हैं कि वही काँग्रेस की जगह लेती दिखेगी। बिना लाग लपेट कहें तो 10 सालों में जिस तेजी से आम आदमी पार्टी ने अपना जनाधार तैयार किया है उससे भाजपा के शुरुआती दिनों की याद ताजा हो रही है। गोवा और मणिपुर में भाजपा की प्रभावी बढ़त बताती है कि भाजपा अभी भी अविजित है।
अब काँग्रेस कहाँ होगी? कह पाना मुश्किल है 2024 के आम चुनाव से पहले 10 राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इसी साल के आखिर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश तो 2023 में 8 राज्यों के चुनाव होने हैं। इनमें मार्च में पूर्वोत्तर के तीन राज्य मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा तो मई में कर्नाटक और दिसंबर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान और तेलंगाना जैसे बड़े राज्यों के चुनाव होंगे। जाहिर है 2024 के आम चुनावों की तैयारियों तक 10 राज्यों के चुनावों की झड़ी सामने दिख रही है जिसके लिए भाजपा अड़ी दिख रही है।
यकीनन 2024 का इसे शंखनाद कह सकते हैं। विरोधी दलों को एक बार फिर से सोचने को मजबूर करने वाले 5 राज्यों के नतीजों से एक बात तो तय है कि देश की राजनीतिक छवि काफी बदलने वाली है। भाजपा को अव्वल मानने से किसी को भी गुरेज नहीं है लेकिन जिस तरीके से आप पार्टी ने जहाँ जीतती तो वह किसी सुनामी से कम नहीं होती लाकर आने वाले दिनों में खुद को देश के तमाम राज्यों में विकल्प और मजबूत विपक्ष बनने की ओर अग्रसर कर लिया है।
उप्र में दलित कार्ड पर राजनीति का बदलता रंग एक बड़ा संकेत जरूर है। हाशिए पर आई बसपा और काँग्रेस में इसकी अगर सबसे ज्यादा कीमत किसी भी दल को चुकानी पड़ेगी तो वह है काँग्रेस। बेशक अगले पौने दो बरस में 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें बसपा कहीं भी लड़ाके की मुद्रा में नहीं है। हाँ, काँग्रेस जरूर है जो अंर्तकलह और रणनीतियों में उलझी होगी। काँग्रेस के लिए यह नतीजे बड़े कुठाराघात से कम नहीं है। काँग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ को छोड़कर उम्मीद की किरण कहीं दिखती नहीं। वहीं आम आदमी पार्टी की पैनी नजर हिमाचल प्रदेश और गुजरात में है। पंजाब में आप की सुनामी से उत्साहित इस पार्टी के हौसले निश्चित रूप से बुलंदियों पर हैं और इसे लेकर जनधारणा, अगले विधानसभा चुनावों में नतीजों में कितनी तब्दील होगी या नहीं इसके लिए तो इंतजार ही करना होगा। हाँ, शिक्षा, स्वास्थ्य, मुफ्त बिजली और गुड गवर्नेंस को लेकर आम आदमी पार्टी का दिल्ली मॉडल धीरे-धीरे जरूर लोकप्रियता की ओर बढ़ रहा है। आगे यह भाजपा के लिए चुनौती जरूर होगा।
पंजाब में आप की सुनामी के आगे तमाम दिग्गजों का धराशायी होना राजनीति की नई इबारत लिखने जैसा है। इसके अलग ही परिणाम दिखेंगे, नशा से लेकर किसान आन्दोलन का असर भी बस पंजाब में ही दिखा। लेकिन उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में ऐसा नहीं रहा। हाँ, देश में भाजपा को एक नई और जन आकांक्षाओं के अनुरूप बड़े और कड़े निर्णय लेने का रास्ता उत्तर प्रदेश ने जरूर साफ कर दिया है। योगी आदित्यनाथ को बुलडोजर बाबा के रूप में प्रचारित कर खुद विपक्ष ने आगे बढ़ा कर वो हथियार दे दिया जो उन्हें ले डूबा। जाहिर है इन नतीजों को भू-माफियाओं, अपराधियों पर किए गए प्रहारों पर मुहर कही जा सकती है।
हाँ, इसे लेकर मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी सोच अब समझ आने लगी है। उन्होंने भी अपराधियों और माफियाओं, सूदखोरों पर हाल ही में जो ताबड़तोड़ कार्रवाइयाँ की हैं, वह उत्तर प्रदेश की तर्ज पर हैं। 2023 के आखिर में मप्र में चुनाव हैं। जो तेवर शिवराज के दिख रहे हैं उससे लगता है कि यहाँ भी बच्चों में मामा के नाम से लोकप्रिय शिवराज भी अगर बुलडोजर मामा बन गए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उत्तर प्रदेश की भाँति मध्यप्रदेश में भी भू, रेत और खनन माफियाओं की बढ़ती आपाराधिक गतिविधियों पर जो प्रहार, बतौर प्रयोग शुरू हुआ था, लगता है कि वह अब बड़े स्तर पर कर वो नया करेंगे जो अब तक नहीं हुआ।
मणिपुर और गोवा में भी बढ़त से उत्साहित भाजपा के लिए अब पूरे देश में राजनीतिक रूप से नए फैसलों को लेने के लिए इन नतीजों को हरी झण्डा मान देश में राजनीति की नई तस्वीर जरूर दिखेगी और दिखनी भी चाहिए। बेशक उप्र ने योगी आदित्यनाथ को पहले इस्तेमाल करो, फिर विश्वास करो के जुमला से ही सही दोबारा सत्ता में पहुंचाया। लेकिन क्या उनके कड़े फैसले देश में सुशासन की नई इबारत लिखेंगे? वहीं अपने कामों के प्रचार से दिल्ली के बाद पंजाब में भी सत्ता में आने वाली आम आदमी पार्टी भी आम लोगों के लिए खास बनकर देश में नया विकल्प बनेगी।
हाँ, इतना तो कहा जा सकता है कि भाजपा में सत्ता की धुरी की जोड़ी अब दो नहीं तीन होकर पार्टी को और मजबूत करेंगे। अब योगी, मोदी और अमित शाह ही वो तिकड़ी होंगे जिन पर न केवल भाजपा बल्कि भावी फैसलों का सारा दारोमदार होगा जो कोरोना से लड़ने के बावजूद तमाम आरोप, प्रचार-दुष्प्रचार से इतर अपने लक्ष्य में कामयाब रहे। भारत के परिपक्व और मजबूत लोकतंत्र के लिए हर चुनाव बेमिसाल ही होते हैं, ठीक वैसे यह भी रहा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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