भोपाल। यूक्रेन-रूस में चल रहे युद्ध का असर अब पर्यावरण और इको सिस्टम पर दिखाई देने लगा है। यह जानकारी मध्यप्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक में पक्षियों पर चल रहे अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन में भोपाल भी शामिल है। दरअसल, अध्ययन के दौरान समर बर्ड वॉचिंग और गणना में पता चला कि मप्र में इस सीजन में 266 प्रजाति के प्रवासी पक्षी आए हुए थे, लेकिन इनमें से 150 विंटर प्रवासी पक्षी अभी भी यहां बने हुए हैं। इनमें ज्यादातर रूस के साइबेरिया के हैं। ये पक्षी पहले चले गए थे, लेकिन दोबारा लौट आए हैं। भोपाल बर्ड संस्था के मोहम्मद खालिक बताते हैं कि प्रारंभिक पड़ताल में साइबेरियाई पक्षियों के वापस न लौटने की दो बड़ी वजह निकली हैं। पहली- जिस मैग्नेटिक फील्ड के सहारे वो इतना लंबा सफर तय करते हैं, वो रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण डिस्टर्ब हो गई है। दूसरी- युद्ध के कारण हुए वायु प्रदूषण ने इनके लौटने का रास्ता बंद कर दिया है। अब जब तक रास्ता साफ नहीं होगा, ये आगे नहीं बढ़ेंगे।
रूस-यूक्रेन रूट से ये पक्षी भारत आए
यूरेशियन विजन, यूरेशियन कूट, नॉर्थेर्न शोवलर, नॉर्थेर्न पिनटेल, बार हेडेड गीज, ग्रे लेग गीज, रोज़ी स्टर्लिंग, यूरेशियन स्पूनबिल, गढ़वाल, मल्लार्ड, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड, कॉमन पोचार्ड, गार्गेनि, केंटिश प्लोवर, कॉमन स्निप आदि।
उत्तराखंड-कर्नाटक में भी यही स्थिति
यही स्थिति उत्तराखंड और कर्नाटक में भी है। दोनों राज्यों में कुल 384 प्रजाति के विंटर प्रवासी पक्षी मिले हैं। इनमें से 195 पक्षी अभी भी होम टेरेटरी में नहीं लौटे हैं। भोपाल बर्ड संस्था और व्हीएनएस नेचर सेवियर संस्था के मुताबिक जो साइबेरियाई पक्षी अब तक लौट जाने चाहिए थे। वे अब भी यहां बड़ी संख्या में दिखाई दे रहे हैं, जबकि चीन और मंगोलिया के पक्षी लौट चुके हैं। कर्नाटक की पक्षी विशेषज्ञ अपूर्वा लक्ष्मी का कहना है कि पहले कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी। साइबेरियाई पक्षियों के न लौटने की मुख्य वजह यदि रूस-यूक्रेन युद्ध है तो इस पर और अध्ययन की जरूरत है, ताकि पक्षियों के इको सिस्टम को गहनता से समझा जा सके। उत्तराखंड में पक्षियों पर काम कर रहे विशेषज्ञ डॉ. फैय्याज खुदसर के मुताबिक यह समय प्रवासी पक्षियों के प्रजनन का होता है। यदि ये अपने डेस्टिनेशन पर नहीं लौटे तो अपनी नस्ल आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। यदि ये ज्यादा दिन यहां रुके तो मर भी सकते हैं। मोहम्मद खालिक का मानना है कि युद्ध एक वजह है, यह प्रारंभिक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है, लेकिन इस पर विस्तृत डाटा जुटाना जरूरी है।
क्या है मैग्नेटिक फील्ड
पक्षी मैग्नेटिक फील्ड के आधार पर ही उड़ान भरते हैं और लंबी दूरी तय करते हैं। नेचर मैग्जीन में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि पक्षियों की आंख में ऐसा रसायन होता है जो मैग्नेटिज्म के प्रति संवेदनशील रहता है। यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड में रसायन के प्रोफसर पीटर होर का कहना है कि पक्षी पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड देख सकते हैं। फिलहाल यह शोध रॉबिन पक्षी पर हुआ है।
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