नई दिल्ली । चक्रवाती तूफानों और प्राकृतिक आपदाओं (Cyclonic Storms-Natural Disasters) की बढ़ती घटनाओं की वजह से भारतीय बीमा क्षेत्र (Insurance Sector India) को भारी क्षति का सामना करना पड़ा है। आने वाले समय में इसमें और वृद्धि की आशंका है। हाल में जारी आईपीसीसी की रिपोर्ट (IPCC Report) में यह दावा किया गया है। इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का असर भारत (India) में कई क्षेत्रों पर पड़ सकता है।
वैश्विक बीमा उद्योग से प्राप्त जलवायु प्रकटीकरणों की वर्ष 2020 की समीक्षा के मुताबिक, भारतीय बीमा कंपनियां अपने वैश्विक साथियों में से सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली कंपनियों में शामिल हैं। जिसकी वजह उनके जलवायु जोखिमों से जुड़े ज्यादा वादों का सामना करना भी है।
क्लाईमेट ट्रेंड्स के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 में महाराष्ट्र में बीमा क्षेत्र सहित लघु, बड़े एवं मध्यम उद्योगों की जलवायु जोखिमशीलता आकलन सर्वे में खुलासा हुआ है कि करीब आधे उद्योग यह महसूस करते हैं कि कारोबार मॉडल और योजना का फिर से आकलन करने की जरूरत है। वहीं, एक तिहाई से ज्यादा ने पूंजी को हुए नुकसान के लिए जलवायु परिवर्तन को दोषी माना। हर 10 में 6 उद्योग जलवायु से खतरे को खत्म करके एक कामयाब जोखिम-अंतरण तथा मूल्य निर्धारण प्रणाली विकसित करना चाहते हैं, जो बाहरी पर्यावरण के अनुकूल हो।
इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. साओन रे के अनुसार, भारतीय बीमा क्षेत्र विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है। जैसे कि बीमा की कम पैठ, उसके घनत्व की कम दर और ग्रामीण इलाकों में बीमाकर्ताओं की कम भागीदारी। देश में कुदरती विनाशकारी घटनाओं जैसे विशिष्ट जोखिमों के बीमे का बाजार काफी हद तक अविकसित है। उदाहरण के तौर पर भारत में बाढ़ का जोखिम पहले से कहीं ज्यादा स्पष्ट है। मगर बीमा कंपनियों ने वर्ष 2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान हुए वास्तविक नुकसान के 10 प्रतिशत से भी कम हिस्से के बराबर के दावों का ही भुगतान किया। क्योंकि, जिस हिसाब से खतरा बढ़ रहा है बीमा अभी भी कम हो रहे हैं।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला के अनुसार, वर्ष 2020-21 में भारत में किए गए कुल बीमा दावों में सबसे ज्यादा संख्या ऐसे दावों की थी जो अम्फान चक्रवात के कारण हुए नुकसान से संबंधित थे। इस चक्रवात की वजह से पश्चिम बंगाल समेत पूर्वी भारत में बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था। फिर भी पूरे एशिया में बीमा की पैठ के मामले में भारत की दर सबसे कम है।
सेटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी के अधिशासी निदेशक जो एथियाली के अनुसार, पूरी दुनिया में इसके प्रमाण हैं कि जलवायु परिवर्तन जनित आपदाएं कैसे बीमा कंपनियों को घुटनों पर ला रही हैं, क्योंकि उन्हें इन आपदाओं से हुए नुकसान के बीमा दावों के भुगतान के रूप में बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी है। बीमा कंपनियों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कंपनियां महत्वपूर्ण जलवायु संबंधी वित्तीय प्रकटीकरण प्रदान करें।
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