15 साल में ठेकेदार फर्मों को किए भुगतान की जानकारी निगम ने तो सौंप दी, मगर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अभी तक आरटीजीएस के जरिए जमा करवाई गई राशि का नहीं दे सकी विवरण
इंदौर। निगम (corporation) में हुए फर्जी बिल महाघोटाले (fake bill scam) की जांच की दिशा जहां फर्जी आरोपों के जरिए मोडऩे के प्रयास शुरू हो गए, तो दूसरी तरफ शासन (Government) द्वारा गठित उच्च स्तरीय (high level) जांच कमेटी (committee) भी फिलहाल खामोश नजर आ रही है। जबकि 15 दिन में जांच रिपोर्ट तैयार होने के दावे भी सामने आए थे। जांच कमेटी के सदस्यों ने भोपाल से इंदौर नगर निगम पहुंचकर इसकी जानकारी भी अधिकारियों से ली थी और 15 साल का रिकॉर्ड भी मांगा। नगर निगम ने 2010 से लेकर अभी 2024 तक जितनी भी ठेकेदार फर्में हैं उनको किए गए भुगतान की जानकारी समिति को भिजवा दी है। मगर अभी तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इन 15 सालों में ठेकेदार फर्मों को आरटीजीएस के जरिए कितना भुगतान किया उसका ब्योरा नहीं दे पाई है। अब देखना यह है कि कल 4 जून को चुनाव परिणाम आने के बाद मोहन सरकार निगम के इस महाघोटाले की जांच कितनी गंभीरता से करवाती है या पूरा मामला कुछ दिन सुर्खियों में रहने के बाद ठंडे बस्ते में पहुंच जाएगा।
अग्रिबाण द्वारा लगातार इस महाघोटाले से जुड़े तमाम तथ्यों को उजागर किया जाता रहा है, जिसमें यह भी बताया गया कि घोटाले को किस तरह अंजाम दिया गया। अभी तक नगर निगम की खुद की जांच और उसके बाद पुलिस द्वारा की गई जांच में मास्टरमाइंड निगम इंजीनियर अभय राठौर ही निकला है, जिसने ठेकेदारों के साथ मिलकर फर्जी फाइलें तैयार करवाई और सीधे ऑडिट और लेखा शाखा के जरिए इस महाघोटाले को अंजाम दिया। पुलिस ने दर्ज एफआईआर के आधार पर ठेकेदारों के अलावा अभय राठौर और निगम के कुछ कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है और अभी पिछले दिनों ट्रेंचिंग ग्राउंड का जो घोटाला सामने आया उसमें नई एफआईआर दर्ज करते हुए जेल से लाकर ठेकेदारों से पूछताछ भी की गई। उसमें भी इन तीनों ठेकेदारों ने राठौर को ही घोटाले का मुख्य कर्ताधर्ता बताया। दूसरी तरफ अब शातिर अभय राठौर ने इस पूरी जांच की दिशा को मोडऩे के प्रयास भी अपने राजनीतिक सम्पर्कों और जोड़-तोड़ के जरिए शुरू कर दिए। उसकी पत्नी द्वारा दिए गए शपथ-पत्र में पूर्व निगमायुक्तों से लेकर संभागायुक्त और अभी पुलिस के उन अधिकारियों पर भी आरोप लगा दिए जो इस महाघोटाले की जांच में शामिल हैं। थाना प्रभारी से लेकर डीसीपी झोन क्र.-3 पर भी ये आरोप लगा दिए। हालांकि अभी तक किसी भी दस्तावेज में निगम के किसी बड़े अधिकारी की कोई लिप्तता सामने नहीं आई है और अंतत: कोर्ट में भी लगाए गए आरोपों को साबित करना पड़ेगा, भले ही मंत्री से लेकर कोई कुछ भी बयानबाजी करता रहे। इधर नगर निगम का कहन ा है कि शासन ने जो उच्च स्तरीय कमेटी यानी एसआईटी गठित की है उसने 15 साल की जो जानकारी मांगी थी वह उपलब्ध करा दी है। पिछले दिनों जांच समिति ने नगर निगम मुख्यालय पहुंचकर सवा घंटे तक इस महाघोटाले से जुड़ी जानकारी कलेक्टर आशीष सिंह और आयुक्त शिवम वर्मा सहित अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में हासिल की और उसके बाद 2010 से लेकर 2024 तक नगर निगम ने जितने भी भुगतान सभी ठेकेदार फर्मों को किए उसका लेखा-जोखा मांग लिया है। निगम की लेखा शाखा ने इन 15 सालों में ठेकेदार फर्मों को किए गए भुगतान की जानकारी तो दे दी है मगर एसबीआई ने आरटीजीएस के जरिए जो भुगतान निगम खाते से ठेकेदारों के खातों में किया उसका ब्योरा नहीं दे सकी है। दूसरी तरफ शासन की उच्च स्तरीय जांच समिति भी खामोश है, उसने अब तक कितनी जांच-पड़ताल की या आगे क्या कदम उठाएगी, उसकी जानकारी मीडिया को भी नहीं दी है।
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