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अटके Project से सरकार को लगी 6,800 करोड़ की चपत

August 23, 2021

  • रेरा में नहीं हुआ पिछले एक साल से नए प्रोजेक्टों का पंजीयन
  • प्रमुख सचिव को नए प्रोजेक्ट का पंजीयन नहीं होने पर भेजा गया लीगल नोटिस

भोपाल। रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (Real Estate Regulatory Authority) में पिछले एक साल से नए प्रोजेक्टों का पंजीयन नहीं हो रहा है। इसकी वजह से हजारों की संख्या में मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं। मजदूर रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। यही नहीं अटके प्रोजेक्ट से सरकार को भी करीब 6,800 करोड़ की चपत लगी है। इस मामले में नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्रालय को नोटिस भेजा है। नोटिस में कहा गया है कि यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की जाएगी। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच, जबलपुर के प्रांताध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपांडे (Provincial President Dr. PG Najpande) व नयागांव, जबलपुर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता रजत भार्गव की ओर से भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि वर्ष 2016 में रेरा का गठन किया गया था। रेरा में सक्षम अधिकारियों की नियुक्तियां नहीं होने से पूरा कामकाज ठप पड़ा है। नए प्रोजेक्टों का पंजीयन नहीं किया जा रहा है। पंजीयन आवेदन महीनों से लंबित पड़े हुए हैं। नोटिस में कहा गया है कि 15 दिनों में भू-संपदा विनियम एवं विकास अधिनियम के संबंधित रजिस्ट्रेशन की कार्रवाई की जाए, ताकि निर्माण की गतिविधियां सुचारू रूप से शुरू हो सके। उधर रियल एस्टेट प्रोजेक्ट (Real Estate Project) को मंजूरी देने में हो रहा विलंब डेवलपर के साथ बैंक, सरकार, आम आदमी, व्यापारी और मजदूर सब पर भारी पड़ रहा है। रियल एस्टेट डेवलपर की संस्था क्रेडाई ने अनुमान लगाया है कि पिछले एक साल से मंजूरी अटकने से डेवलपर के पूरे प्रदेश में 32,600 करोड़ रुपए अटक गए हैं। इस राशि पर डेवलपर को हर माह 1200 करोड़ रुपए से अधिक का ब्याज चुकाना पड़ रहा है। अटके प्रोजेक्ट्स पर करीब 1.10 लाख घर बनाए जाने थे। 80 प्रतिशत लोग बैंकों से होम लोन लेकर घर खरीदते हैं। प्रोजेक्ट्स को मंजूरी न मिलने से संकटग्रस्त बैंकों ने 25 हजार करोड़ रुपए से अधिक के कारोबार का अवसर गंवा दिया है।

50 हजार मजदूरों के काम विराम
पूरे प्रदेश में सभी डेवलपर्स से मिले फीडबैक के आधार पर क्रेडाई ने अनुमान लगाया है कि इन प्रोजेक्ट्स पर काम होने की स्थिति में करीब 50 हजार प्रवासी मजदूरों को एक साल तक लगातार काम मिलता। अब वे बेकार हो गए हैं। क्रेडाई का अनुमान कहता है कि प्रोजेक्ट्स को समय पर मंजूरी मिल जाती तो अब तक सरकार के खाते में 6,800 करोड़ रु. आ चुके होते। क्रेडाई मप्र के अध्यक्ष नितिन अग्रवाल का कहना है कि हमने यह अध्ययन हर सेक्टर से जुड़े लोगों के बीच किया है। रेरा और सरकार को स्थिति की भयावहता समझनी चाहिए।

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