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    प्रदेश की नदियों का संरक्षण प्लान तैयार कर रही सरकार

  • June 26, 2023

    • नर्मदा सहित 4 नदियों के पानी की होगी मॉनीटरिंग

    भोपाल। नर्मदा, चंबल, ताप्ती, बेतवा सहित प्रदेश की 15 नदियों के संरक्षण पर सरकार का फोकस है। इसके लिए मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने फिलहाल चार नदियों नर्मदा, बेतवा, ताप्ति और मंदाकनी के पानी की निगरानी की कार्ययोजना बनाई है। इसके तहत इन नदियों के पानी की 24 घंटे निगरानी की जाएगी। दरअसल, प्रदेश की नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के लिए यह कवायद की जा रही है। गौरतलब है कि प्रदेश में लगभग 207 छोटी-बड़ी नदियां बहती हैं। एक दर्जन से अधिक नदियां पड़ोसी राज्यों की आबादी और खेतों की प्यास बुझाती हैं। इनमें से ज्यादातर नदियों की स्थिति खराब है।
    सरकार की कार्ययोजना के अनुसार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने फिलहाल चार नदियों नर्मदा, बेतवा, ताप्ति और मंदाकनी के पानी की निगरानी की तैयारी की है। अब हर घंटे इनके पानी जांच की जाएगी। इसके लिए चारों नदियों के 10 स्थानों पर रियल टाइम वॉटर क्वालिटी मॉनीटरिंग सिस्टम लगाए जाएंगे। यह नर्मदा नदी के नरसिंहपुर स्थित बरमान घाट, नेमावर, खंडवा के पास हनुवंतिया, खरगोन के महेश्वर व बड़वानी के राजघाट में स्थापित किए जाएंगे। बेतवा नदी में बीना के महूघाट, निवाड़ी जिले के ओरछा, ताप्ती नदी में नेपानगर और मंदाकिनी नदी पर चित्रकूट के रामघाट व जानकी कुंड से गुणवत्ता की मॉनीटरिंग की जाएगी। हर दिन, महीने और साल की रिपोर्ट तैयार होगी। इसके आधार पर पानी की गुणवत्ता में सुधार के उपाय किए जाएंगे।

    पानी का रियल टाइम डाटा होगा प्रदर्शित
    रियल टाइम वॉटर क्वालिटी मॉनीटरिंग सिस्टम में जीएसएम, जीपीआरएस, क्लाउड या ऐसी किसी अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग होगा। इसका फायदा यह होगा कि चारों नदियों की दस लोकेशन से प्रत्येक घंटे का डाटा सेंट्रल सर्वर को भेजा जा सकेगा। इस डाटा में पानी का पीएच, तापमान, डिसॉल्वड ऑक्सीजन, बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड की जानकारी होगी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नॉम्र्स के मुताबिक पानी की गुणवत्ता का डाटा भी इक_ा किया जाएगा। इसका विश्लेषण करने 24 घंटे सातों दिन के लिए एनालिस्ट तैनात किया जाएगा। इस सिस्टम के ऑपरेशन व मेंटेनेंस का जिम्मा पांच साल तक चयनित फर्म को संभालना होगा। हर लोकेशन पर स्क्रीन लगा कर पानी का रियल टाइम डाटा प्रदर्शित किया जाएगा।

    क्षिप्रा के क्षरण की रिपोर्ट तैयार की एजी ने
    वहीं क्षिप्रा नदी को किन कारणों से नुकसान पहुंचा, पानी का स्तर क्यों कम हुआ, इसकी रिपोर्ट महालेखाकार ने शासन को सौंप दी है। एकाउंटेट जनरल की टीम ने वर्ष 2016-17 से 2020-21 की अवधि में यह परफॉर्मेस ऑडिट किया। नदी के क्षरण के संभावित कारणों और परिणामों के बारे मे परिकल्पना की गई। इनका परीक्षण फील्ड में घूम कर किया गया। अब यह रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत की जाएगी। यहां बता दें कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी की स्थिति काफी खराब है। अकसर इसमें पानी नहीं रहता है। धार्मिक आयोजनों के दौरान वैकल्पिक स्त्रोतों से नदी में पानी पहुंचाना पड़ता है।


    नदियों के लिए थ्री डी मास्टर प्लान
    प्रदेश की नदियों को पुनर्जीवित और संरक्षित करने के लिए सरकार थ्री डी कार्ययोजना (मास्टर प्लान) तैयार करवा रही है। पहले चरण में नदी से संबंधित समस्त जानकारी (शुद्धता का स्तर, लंबाई, प्रमुख घाट, इनके आसपास आबादी, जलस्तर और जिलों से जुड़ा डाटा) एकत्र की जा रही है। यह भी देखा जाएगा कि नदियां कहां प्रदूषित हो रही हैं और कहां उनकी धारा टूट रही है। कार्ययोजना तैयार होने के बाद प्राथमिकता के आधार पर उनके संरक्षण के उपाय किए जाएंगे। प्रदेश में लगभग 207 छोटी-बड़ी नदियां बहती हैं। एक दर्जन से अधिक नदियां पड़ोसी राज्यों की आबादी और खेतों की प्यास बुझाती हैं। इनमें से ज्यादातर नदियों की स्थिति खराब है। कुछ की धारा अपने उत्पत्ति स्थल के करीब ही टूटने लगी है, तो कुछ उत्पत्ति स्थल के करीब से ही प्रदूषित हो गई हैं। इनमें सैकड़ों गंदे नाले मिल रहे हैं। इससे इन नदियों का पानी पीने व नहाने योग्य भी नहीं बचा है। इसका डाटा एकत्रित किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि ताप्ती नदी बैतूल से निकलकर महाराष्ट्र और गुजरात में भी बहती है। सोन नदी मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य में बहती है। चंबल नदी मध्य प्रदेश से निकलकर उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बहती है। बेतवा नदी रायसेन जिले से निकलकर उत्तर प्रदेश में हमीरपुर के पहले यमुना नदी में मिलती है। केन नदी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से होकर बहती है।

    उद्गम स्थल से आखिरी छोर तक का सर्वे
    संरक्षण कार्ययोजना में नदियों के उद्गम स्थल से आखिरी छोर तक का सर्वे होगा। इसमें नदी की श्रेणी (रेतीली, चट्टानी, मैदानी, दलदली) देखी जाएगी। यह भी देखेंगे कि नदी में किस-किस प्रजाति के जलीय जीव, वनस्पति है। सहायक या उप नदियों का खाका भी तैयार होगा। कार्ययोजना में नदियों के प्रदूषण स्तर की अध्ययन रिपोर्ट होगी। हर महीने प्रदूषण के स्तर की जांच होगी। शहरों के मास्टर प्लान की तरह नदियों की कार्ययोजना भी सैटेलाइट इमेज से तैयार होगी। इससे शोध आसान होगा। इसमें नदी पर बने बांध, उसके निर्माण, अधिकतम जलभराव, उससे पानी के उपयोग का बिंदु भी शामिल होगा। नदी के उच्चतम बाढ़ स्तर से थ्री डी नक्शे को बनाने की प्लानिंग है। इससे नदी की वास्तविक स्थिति की जानकारी घर बैठे मिल सकेगी। नदियों का संयुक्त नक्शा भी बनेगा। पर्यावरण विभाग ने अब तक निकाले गए नदियों से जुड़े आदेश, प्रविधान और नदियों के संबंध में केंद्र के नियमों का अध्ययन प्रारंभ कर दिया है। प्रारंभिक खाका तैयार होने के बाद इससे जुड़े अन्य विभागों के अफसरों के साथ मंथन किया जाएगा। इसके बाद तय होगा कि कहां क्या काम किया जाना है। पहले चरण में चंबल, ताप्ती, बेतवा, केन, तवा, सोन, क्षिप्रा, सिंध, वेनगंगा, शक्कर, कालीसिंध, वर्धा, कुंवारी, पार्वती, गार आदि नदियों की कार्ययोजना तैयार की जाएगी।

    तीन शहरों में होगी ध्वनि प्रदूषण की निगरानी
    ध्वनि प्रदूषण की निगरानी के लिए प्रदेश के तीन शहरों में रियल टाइम एंबियंट नॉइस मॉनीटरिंग सिस्टम लगाए जाएंगे। इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में चार-चार स्थानों पर यह स्थापित किए जाएंगे। यह सिस्टम 4 जी या 5 जी नेटवर्क के जरिए ध्वनि प्रदूषण का डाटा मुहैया कराएंगे। हर स्टेशन क्लाउड तकनीक के जरिए सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, केंद्र सरकार और केंद्र व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से ऑनलाइन डाटा शेयर करेगा। तय मानकों से ज्यादा प्रदूषण होने पर एसएमएस के जरिए सूचित करेगा।

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